उगता भारत ब्यूरो
ब्रह्माण्ड हमेशा से ही मानव को आकर्षित करने के साथ-साथ चुनौतियां भी देता रहा है। ब्रह्माण्ड असीमित है, अंतहीन है। उसके समक्ष मानव का कोई अस्तित्व ही नहीं है। इस ब्रह्माण्ड की आयु का सही-सही पता लगाना तो लगभग असंभव है लेकिन अगर हम सौर मंडल की बात करें, जिसके एक ग्रह सदस्य पृथ्वी का हम हिस्सा हैं, तो अनुमान है कि उसका निर्माण लगभग 100 करोड़ साल पहले होना शुरू हो गया था। पृथ्वी का जन्म करीब 86 करोड़ साल पहले एक महाविस्फोट के कारण हुआ था। दो निहारिकाओं के टकराव से बने हमारे सौर मंडल में पृथ्वी सहित अनगिनत ग्रहों, उपग्रहों और करोड़ों छोटी-बड़ी खगोलीय वस्तुओं का निर्माण हुआ जो विभिन्न ग्रहों सहित सूर्य का चक्कर लगा रही हैं। एक-एक निहारिका में असंख्य ग्रह, नक्षत्र, तारे और सूर्य विद्यमान हैं। इस विशाल संरचना के समक्ष मानव बहुत ही क्षणभंगुर एवं लघु है परंतु उसके ज्ञान की प्यास और साहस की कोई सीमा नहीं है। वह किसी बात को जानने के लिए कोई भी हद पार कर सकता है। अगर ऐसा न होता तो आज हम आदिमानव के रूप में ही इस पृथ्वी पर विचरण कर रहे होते। ज्ञान ने हमें विज्ञान की ओर अग्रसर किया और ब्रह्माण्ड के हर रहस्य को समझ पाने के लिए हमने तकनीकें विकसित कीं।
वैसे तो अंतरिक्ष की प्रारंभिक उड़ानें कुत्ते, चूहों आदि ने रॉकेटों के जरिये की थीं क्योंकि मनुष्य के समक्ष अंतरिक्ष की समझ सीमित थी और कई तरह के अनदेखे खतरे थे। इंसान का इस दिशा में सबसे बड़ा कदम 20 जुलाई, 1969 को नील आर्मस्ट्रांग और बज एल्ड्रीन का रहा जब उन्होंने अपोलो-11 नामक रॉकेट के जरिये चन्द्रमा की सतह पर अपने कदम रखे थे। उस वक्त नील ने कहा था कि ”उनका यह छोटा सा कदम समस्त मनुष्यता के लिए एक बड़ी छलांग साबित होगा।” अमेरिका, अविभाजित सोवियत संघ, चीन आदि देशों के साथ भारत का भी अंतरिक्ष विज्ञान में बड़ा योगदान है। जहां दुनिया के इन देशों ने अंतरिक्ष में अपने अनेक उपग्रह स्थापित किये हैं वहीं कई देशों के अंतरिक्ष यात्रियों ने पृथ्वी की कक्षा के बाहर थोड़ा या लंबा समय व्यतीत किया है। अंतरिक्ष की ये यात्राएं ज्ञान और विज्ञान को विकसित करने में बेहद महत्वपूर्ण साबित हुई हैं। पहले के मुकाबले आज मौसम विज्ञान, संचार, परिवहन आदि सहित मानव गतिविधियों के अनेक ऐसे क्षेत्र हैं जहां हमें बेहतर सुविधाएं प्राप्त हो रही हैं। दूसरी तरफ, विभिन्न ग्रहों-उपग्रहों का अध्ययन मानव के अस्तित्व और विकास को लेकर नई खोजों और आविष्कारों का मार्ग प्रशस्त करता रहा है।
पिछले लगभग 60-65 वर्ष हमारे लिए अंतरिक्ष विज्ञान के लिहाज से अत्यन्त महत्वपूर्ण साबित हुए हैं। अनेक रॉकेटों की एक के बाद एक उड़ानों ने बहुत ज्ञान हमारे लिए बटोरा है। इसके बावजूद अब तक अंतरिक्ष की यात्राएं विभिन्न सरकारों या संस्थानों के अधीन अथवा उनकी देखरेख में ही होती आई हैं। काफी बड़ी संख्या में ऐसे लोग पूरे विश्व में मौजूद रहे हैं जो उत्सुकता और आनंद के लिए पृथ्वी को पृथ्वी से ऊपर जाकर देखने के इच्छुक हैं। नीलवर्णी वसुंधरा और गहन काले शून्य यानी दो ग्रहों के बीच का खाली स्थान देखने का रोमांच सिवा अंतरिक्ष यात्रियों के अन्य लोगों के नसीब में नहीं था। रविवार की रात 8 बजे ब्रिटेन की अंतरिक्ष पर्यटन कंपनी वर्जिन समूह के संस्थापक रिचर्ड ब्रैनसन (71 वर्ष) अपने निजी रॉकेट के जरिये पृथ्वी के अंतिम छोर तक पहुंचे जहां से अंतरिक्ष का प्रारंभ होता है। यहां हमारी पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण समाप्त हो जाता है और अंतरिक्ष में प्रवेश का द्वार खुलता है। 53 मील (करीब 88 किलोमीटर) की ऊंचाई पर ब्रैनसन अपनी कंपनी के 5 अन्य साथियों के साथ वहां तक गये, करीब 4 मिनट भारहीनता को महसूस किया तथा धरती का मनोरम दृश्य देखने के बाद लौट आये। उनके रॉकेट ने अमेरिका के न्यू मैक्सिको से उड़ान भरी थी।
भारत के लिए इसमें विशेष खुशी की बात यह है कि उनके साथ गये यात्रियों में भारतीय मूल की सिरिशा बांदल भी थीं जो पिछले 6 वर्षों से ब्रैनसन की स्पेस कंपनी वर्जिन गैलेक्टिक में वाईस प्रेसिडेंट हैं। राकेश शर्मा, सुनीता विलियम्स, कल्पना चावला आदि के बाद सिरिशा भी उस क्लब में शुमार हो गई हैं। यह तो सही है कि यह उनकी निजी यात्रा थी, लेकिन यह उपलब्धि समग्र विश्व की है। इंसान की जिज्ञासा, रोमांच की प्रवृत्ति और आनंद के लिए सभी तरह की सीमाओं को लांघने का उसका जज़्बा इस यात्रा में देखने को मिलता है।
वैसे तो विश्व के एक और नामी-गिरामी जेफ बेजोज भी 20 जुलाई को वेस्ट टेक्सास से अपने रॉकेट के जरिये अंतरिक्ष में जाने की घोषणा कर चुके हैं। हालांकि वे पहले इस ग्रीष्म के अंत में निकलने वाले थे लेकिन हाल ही में उन्होंने नई तारीख की घोषणा कर दी है। उनकी यात्रा के पहले ही बै्रनसन अपनी टीम के साथ यह कारनामा कर आये। हालांकि वे स्वयं यह नहीं मानते कि उन्होंने बेजोज को परास्त किया है।
अंतरिक्ष पर्यटन के ही क्षेत्र के उनके एक और प्रतिद्वंद्वी एलन मस्क ने उन्हें बधाई दी है। पिछले कुछ समय से ऐसी कंपनियां दुनिया भर में उभर रही हैं जो अंतरिक्ष में पर्यटन को विकसित करना चाहती हैं। कुछ कंपनियां तो चंद्रमा पर भूखंड तक बेचने की कोशिशें कर चुकी हैं। वैसे भी किसी ब्रह्माण्डीय घटना, जलवायु परिवर्तन या इंसानी लापरवाही के कारण पृथ्वी के कभी भी नष्ट होने का खतरा बताया जाता है। ऐसे में बै्रनसन व उनकी टीम की यात्रा पूरे मानव जाति के लिए महत्वपूर्ण है।
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