लचर तर्क का उत्तर : जीव ईश्वर का अंश है तो ईश्वर के समान शक्ति उसमें क्यों नहीं है ?
जीव ईश्वर का अंश है, तो ईश्वर के समान शक्ति उसमें क्यों नहीं हैं।
👆यह प्रश्न एक शिष्य ने गुरु से पूछा।गुरु ने विस्तार पूर्वक उत्तर दिया पर शिष्य की समझ में न आया, शंका बनी ही रही। एक दिन गुरु और शिष्य गंगा स्नान के लिये गये। शिष्य से कहा-एक लोटा गंगा जल भर लो। उसने भर लिया घर आकर गुरु ने कहा-बेटा, इस गंगा जल में नाव चलाओ। शिष्य ने कहा, “नाव तो गंगाजी के बहुत जल में चलती हैं। इतने थोड़े जल में कैसे चल सकती हैं।” गुरु ने कहा, “यही बात जीव और ईश्वर के सम्बन्ध में है। जीव अल्प है। इसलिये उसमें शक्ति भी थोड़ी है। ईश्वर विभु है उसमें अनन्त शक्ति है। इसलिये दोनों की शक्ति और कार्य क्षमता न्यूनाधिक है। वैसे लोटे का जल भी गंगाजल ही था, इसी प्रकार जीव अल्प होते हुये भी ईश्वर का अंश ही है। जीव अपने को जब ईश्वर का सान्निध्य प्राप्त कर उसी में निमग्न हो जाता है। तो उसमें भी ईश्वर जैसी शक्ति आ जाती है।”
राकेश तिवारी
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उत्तर :-
जीव ईश्वर का अंश है या नहीं उस पर तर्क करने से पूर्व यह जान लेना चाहिये कि ईश्वर सर्वव्यापक है और जीव एकदेशीय |
सर्वव्यापक ईश्वर के टुकड़े नहीं हो सकते | ईश्वर अखण्ड , एकरस है। सबमें ओतप्रोत है | सूक्ष्म आत्मा में भी व्यापक होने से ईश्वर के टुकड़े होना सम्भव नहीं है। जीव ईश्वर का अंश नहीं है। वह भी नहीं सकता।वह भी एक स्वतन्त्र सत्ता है |
प्रस्तुत तर्क में “गंगा नदी के जल व लोटे के जल” का उदाहरण देकर कहा है कि यह लोटे का जल – गंगाजल का अंश है लेकिन इसमें नाव नहीं चला सकते | तर्क देने वाले को यह ध्यान नहीं रहा कि गंगानदी एकदेशीय है।अतः टुकड़े हो सकते हैं, उसका अंश बनाया जा सकता है ….. लेकिन यदि गंगा नदी का जल सर्व-व्यापक होता तो कोई भी व्यक्ति उस जल का अंश रूप भर कर अपने- अपने घर क्यों ले जाता ? लोटे में हो या कमण्डल में, गिलास में हो या कटोरी में …… सर्व-व्यापक जल को कोई व्यक्ति क्यों भरने लगेगा ? गंगा नदी एक देशीय है अतः अंश बनना सम्भव है। लेकिन ईश्वर सर्वव्यापक होने से अंश नहीं बन सकता |
अब रहा नाव चलाने वाले शेष तर्क की बात। नाव चलाने के लिए सामर्थ्य की आवश्यकता है। लोटे में नाव चलाने का सामर्थ्य होगा तो लोटे में भी नाव चल सकती है। यदि लोटे के आकार से बहुत छोटी नाव बनाई जाये तो लोटे में भी नाव चलाई जा सकती है ….. दूसरी ओर यह भी सम्भव है कि नाव, गंगा नदी में भी न चले। गंगा नदी के मध्य में जो नाव चलती है वह क्या गंगा नदी के किनारे-किनारे चलाई जा सकती है? यदि किनारे-किनारे नाव चलाई जाएगी तो वह नाव जमीन में धंस जायेगी। इससे सिद्ध हुआ कि नाव चलाने के लिए तदनुसार ही सामर्थ्य भी आवश्यक है।
इसलिए हम सबको ऐसे निरर्थक लचर तर्कों के चक्कर में नहीं आना चाहिये। ईश्वर, जीव और प्रकृति, तीनों की सत्ताओं को अलग अलग जानना वह मानना व चाहिये।
हाँ ! यदि कोई यह कहना चाहे कि ईश्वर सर्वव्यापक है और जीव एकदेशीय, ईश्वर सर्वज्ञ है और जीव अल्पज्ञ, ईश्वर सर्वशक्तिशाली है और जीव अल्प-शक्ति-सम्पन्न तो ….. जीव आंशिक सामर्थ्य वाला होने के अर्थ में अंश है लेकिन यदि कोई जीव को ईश्वर का अंश बतला कर यह कहे कि मोक्ष में जीव का विलय ईश्वर में हो जाएगा और अपनी सत्ता को गंवा देगा तो यह मान्यता गलत है – अवैदिक है| धन्यवाद
नमस्तेजी।
सादर विदुषामनुचर,
विश्वप्रिय वेदानुरागी।+9198980 18440