- बहराइच में तुर्की हमलावर गाजी सालार मसूद की दरगाह पर चादर चढ़ाने के बाद एक बार फिर महाराज सुहेलदेव का नाम सुर्खियों में आ गया है।
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वो इसलिए क्योंकि महाराजा सुहेदलेव ही थे जिन्होंने 17 बार सोमनाथ मंदिर का विध्वंस करने वाले महमूद गजनवी और उसके भांजे गाजी सालार मसूद से ऐतिहासिक बदला लिया था।
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गाजी सालार मसूद की जीवनी 17वीं शताब्दी में लिखी गई जिसका नाम था मिरात-ए-मसूदी… इसे लिखा था उस वक्त के सूफी अब्दुर्रहमान चिश्ती ने ।
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जिस युद्ध में गाजी सालार मसूद मारा गया उस युद्ध को इतिहास में बैटल ऑफ बहराइच कहा जाता है । बहराइच के इस युद्ध का पूरा वर्णन… मिरात-ए-मसूदी में मौजूद है ।
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सालार मसूद की जीवनी मिरात-ए-मसूदी में अब्दुर्रहमान चिश्ती लिखता है… मौत का सामना है फिराक सूरी नजदीक है हिंदुओं ने जमाव किया है इनका लश्कर बेइन्तिहा हैं सुदूर नेपाल से पहाड़ों के नीचे घाघरा नदी तक फौज मुखालिफ का पड़ाव है । ये कहकर वो बिलख बिलख कर रो पड़ा । रहम कर जान बख्शी दे।
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चिश्ती ने लिखा है कि महाराजा सुहेलदेव की घेराबंदी इतनी जबरदस्त थी कि जबरदस्त तुर्की मिलिट्री लीडर रहा गाजी सालार मसूद भी फफक फफक कर रोने लगा।
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चिश्ती आगे लिखता है कि इस समय कौन रहम दिल इंसान हो सकता था जो ऐसी हालत में सालार मसूद का साथ छोड़ता । रजब महीने की 14वीं तारीख (14 जून 1033) के दिन सालार मसूद सहित उसकी संपूर्ण सेना का सुहेलदेव की सेना ने सर्वनाश कर दिया । कोई पानी देने वाला भी ना रहा।
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अपनी इसी किताब में आगे शेख अब्दुर्रहमान चिश्ती लिखता है… मजहब के नाम पर जो अंधड़ अयोध्या बहराइच तक जा पहुंचा था वो सब नष्ट हो गया । इस युद्ध में अरब और ईरान के घर घर का चिराग बुझ गया ।
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राजा सुहेलदेव की सेना ने इस युद्ध में लाखों की संख्या में तुर्की मुसलमानों को मार दिया था । ये रक्तपात इतना बड़ा था कि इसके बाद 160 साल तक भारत पर कोई इस्लामी शासक हमला करने की हिम्मत भी नहीं जुटा सका ।
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लेकिन राजा सुहेलदेव के इतिहास को वामपंथी इतिहासकारों ने अपनी कुत्सित मानसिकता को संतुष्ट करने के लिए विचारधारा के ताबूत में दफन कर दिया।
प्रस्तुति : देवेंद्र सिंह आर्य
चेयरमैन उगता भारत