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भिक्षावृति देश और समाज के सामने बड़ी समस्या

अशोक मधुप

पहले हम दया और ममता के कारण इन गरीबों भिखारियों की मदद करते थे। अब समझदार लोग, मेरे मित्र इनकी मदद करने से मना करते हैं। वे कहते हैं कि भीख देने से इनमें आरामतलबी आ गई। दुनिया का हर प्राणी अपनी जरूरत के लिए संघर्ष करता है।
देश बेरोजगारी, गरीबी, अशिक्षा जैसी कई समस्याओं का सामना कर रहा है। इनमें एक है भिक्षावृति। ये गरीबी और विवशता के कारण कम हमारे द्वारा ओढ़ी हुई समस्या ज्यादा है। समय की जरूरत है कि सब लोग देश के विकास में योगदान करें। क्षमतानुसार काम करें। जो जितना कर सकता है, योगदान करे। देश के विकास में अवरोध बनी भिक्षावृति की समस्या से निपटने के लिए बॉम्बे हाईकार्ट का निर्णय पूरे देश में लागूकर इस समस्या से निजात पाई जा सकती है।

हम भारतवासियों को शुरुआत से, बचपन से दया, ममता, करूणा और जरूरतमंद की मदद का पाठ पढ़ाया जाता है। उनमें ये सारे गुण विकसित किए जाते हैं। आज दुनिया बहुत चतुर हो गई, वह हमारी इस कमजोरी का लाभ उठाने लगी। हमारी भावनाओं का दोहन करती है। आज देश में भिक्षावृति एक बड़ी समस्या बन चुकी है। समाज की दया और मदद करने की भावना का लोग बड़ी तादाद में लाभ उठाते हैं।

2011 की जनगणना के अनुसार देश में 4,13760 भिखारी हैं। सामाजिक कल्याण मंत्री ने लोकसभा में एक सवाल के जवाब में बताया था कि देश में इस कुल 413760 भिखारी हैं। इनमें 221673 भिखारी पुरुष और बाकी महिलाएं हैं। भिखारियों की इस लिस्ट में टॉप पर पश्चिम बंगाल है। बंगाल में भिखारियों की संख्या सबसे अधिक है। आंकड़ों के अनुसार पश्चिम बंगाल में कुल 81224 भिखारी हैं। इनमें 33086 पुरुष और 48158 महिलाएं हैं। उत्तर प्रदेश में कुल 65838 भिखारी हैं। इनमें 41859 पुरुष और 23976 महिलाएं है। वहीं बिहार में 29723 भिखारी हैं, इनमें 14842 पुरुष और 14881 महिलाएं हैं। सबसे कम भिखारियों की संख्या लक्षद्वीप में है। लक्षद्वीप में केवल दो भिखारी हैं। ये सरकारी आंकड़े हैं। वैसे भी ये दस साल पुराने आंकड़े हैं। अब तो ये भी बढ़कर दुगने हो गए होंगे। वास्तविकता में हालत बहुत खराब है। सही से जांच कराई जाए तो इनकी संख्या करोड़ों में होगी। ये अधिकांश पेशेवर हैं। इनसे आप काम करने का कहेंगे, तो नहीं करेंगे। ये समझते हैं कि जब बिना काम किए मिल रहा है, तो हम क्यों काम करें। रेलवे स्टेशन, ट्रेन आदि में इनकी गुंडागर्दी देखते बनती है। मुझे ट्रेन से बंगलौर जाना था। टैक्सी से मैं जब हजरत निजामुदीन रेलवे स्टेशन पहुँचा तो पाया कि चौराहे से दूर तक मांगने वालों की लाइन लगी है। टैक्सी का मेरी साइड का शीशा उतरा हुआ था। एक 30−35 साल की महिला ने मांगने के लिए हाथ फैलाया। मैंने इंकार करते हुए उसकी ओर दोनों हाथ जोड़ दिए। इस पर उसका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया। उसने कहा− जा तेरा एक्सीडेंट हो जा। ये भिखारी रास्ते पर ही नहीं प्लेटफार्म पर जाने वाले ओवर ब्रिज पर भी दोनों ओर काफी संख्या में जमे थे। तीर्थस्थल की तो हालत ओर भी खराब है। वहां तो मांगने वालों के समूह के समूह मिलेंगे। भिक्षा न देने पर ये अभद्रता पर उतर आते हैं। अब तो मांगने वालों के घुमक्कड़ समूह भी बन गए। ये एक जगह पर कुछ समय मांगते और फिर आगे बढ़ जाते हैं। ये काम−धाम कुछ करेंगे नहीं, हमारी दया और मदद करने की भावना का लाभ उठांएगे और अय्याशी करेंगे। बिजनौर रोडवेज पर एक वृद्ध बेटे की मौत की बात बताकर अंतिम संस्कार के नाम पर पैसे मांगता था। शाम को एकत्र किए पैसे की शराब पी जाता था। बहुत दिन तक उसका कार्य लगा। धीरे−धीरे लोगों को पता चल गया। उन्होंने उसे भगाया।

बिजनौर में ही एक वृद्धा स्कूल रोड के एक बरांडे में पड़ी रहती थी। कुछ साल पूर्व सरकार ने गरीबों का कांशीराम आवास आवंटित किए थे। फिर भी वह वहीं दिखाई देती। एक दिन सुबह घूमने जाते मैंने उस महिला के बरांडे में लेटे देखा। मैं उससे मकान न मिलने के बारे में पूछने उसके पास चला गया। उसकी कमर मेरी ओर थी। देखा वह पांच सौ के नोट की काफी मोटी गड्डी लिए उसके नोट गिन रही थी। उसने मुझे नहीं देखा, मैं चुपके से वापस लौट आया। कई मांगने वाले ऐसे मिले हैं कि उनके मरने पर उनके पास लाखों की सम्पत्ति मिली।

पहले हम दया और ममता के कारण इन गरीबों भिखारियों की मदद करते थे। अब समझदार लोग, मेरे मित्र इनकी मदद करने से मना करते हैं। वे कहते हैं कि भीख देने से इनमें आरामतलबी आ गई। दुनिया का हर प्राणी अपनी जरूरत के लिए संघर्ष करता है। हरेक का अपना-अपना संघर्ष है। मांगने वालों को जब बिना मांगे मिल रहा है, तो काम क्यों करें। आज ये हम पर, समाज पर और देश पर बोझ बन गए हैं। कुछ राज्यों ने भिक्षावृति पर रोक लगाई। भीख मांगते पकड़े जाने पर सजा की व्यवस्था की, पर आज भी समस्या वैसी ही बनी हुई है।

हाल में एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान बॉम्बे हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस जीएस कुलकर्णी की बेंच ने कहा कि बेघरों और भिखारियों को भी देश के लिए कुछ काम करना चाहिए। उन्हें राज्य ही सब कुछ उपलब्ध नहीं करा सकता। अगर उन्हें सब कुछ फ्री में दिया तो वे काम नहीं करेंगे। अदालत की यह टिप्पणी मुंबई के रहने वाले बृजेश आर्य की याचिका पर आई है। आर्य ने लॉकडाउन के दौरान अदालत से बृहन्मुंबई महानगरपालिका (BMC) को शहर में बेघरों, भिखारियों और गरीबों को तीन वक्त का खाना, पीने का पानी, रहने के लिए जगह और पब्लिक टॉयलेट का इंतजाम करने के लिए निर्देश देने की गुजारिश की थी। डबल बेंच ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि बेघर और भिखारियों को भी देश के लिए काम करना चाहिए। हर कोई काम कर रहा है। सब कुछ राज्य नहीं दे सकता है। आपकी याचिका इस वर्ग की आबादी बढ़ाने वाली है। अदालत ने याचिकाकर्ता पर सवाल उठाते हुए कहा कि अगर याचिका में किए गए सभी अनुरोध मान लिए जाएं तो यह लोगों को काम नहीं करने का न्योता देने जैसा होगा।

निर्णय बहुत अच्छा है। पूरे देश को इस पर काम करना चाहिए। अपंग, अक्षम लोगों की मदद की जाए। उन्हें दवा, आसरा व भोजन दिया जाए बाकी से काम लिया जाए। कुछ लोग परंपरा के नाम पर भीख मांगते हैं। भीख मांगने की प्रवृति को रोका जाए। मांगने के लिए ऐसे परिवार के बुजुर्ग बच्चों और किशोर को भी सवेरे ही घर से निकाल देते हैं। जरूरत है इन्हें समझाने की, समाज की मुख्य धारा में लाने की। जरूरत है इन्हें देश के विकास के योगदान में प्रेरित करने की। ऐसा करने से देश और समाज का बड़ा बोझ कम होगा। राष्ट्र और समाज के निर्माण को कुछ नए हाथ मिल पाएंगे। कुछ नए हाथ विकास में योगदान कर सकेंगे।

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