चमगादड़ें कई प्रकार के कोरोना वायरसों की वाहक

मुकुल व्यास

कुछ वैज्ञानिक दुनिया में कोविड के उभरने का कारण जलवायु परिवर्तन से जोड़ रहे हैं जबकि दूसरे वैज्ञानिक ऐसे स्थानों की पहचान कर रहे हैं जहां भविष्य में नये कोरोना वायरस प्रकट हो सकते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि पिछली सदी में दुनिया में हुए कार्बन उत्सर्जन के कारण दक्षिणी चीन की वनस्पति में भारी बदलाव हुए हैं। इन बदलावों के बाद वहां ऐसे जंगल उग गए हैं, जिन्हें चमगादड़ पसंद करते हैं। मनपसंद जंगल में चमगादड़ों की आबादी तेजी से बढ़ी और यह इलाका चमगादड़ जनित कोरोना वायरसों का केंद्र बन गया। यह अध्ययन साइंस ऑफ टोटल एनवायरनमेंट पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

अध्ययन में कहा गया है कि पिछली सदी के दौरान दक्षिणी चीन के युनान प्रांत और उससे जुड़े म्यांमार और लाओस के इलाकों के पेड़-पौधों की किस्मों में बड़े पैमाने पर परिवर्तन हुए हैं। जलवायु परिवर्तनों के कारण तापमान में वृद्धि हुई और वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा भी बढ़ गई। इन परिवर्तनों का प्रभाव जंगलों पर भी पड़ा। जहां पहले सिर्फ झाड़ियां उगती थीं वहां पतझड़ी पेड़ उग गए। इससे चमगादड़ों की अनेक प्रजातियों के लिए अनुकूल स्थितियां पैदा हो गईं।

किसी इलाके में कोरोना वायरसों की संख्या का सीधा संबंध वहां मौजूद चमगादड़ों की प्रजातियों की संख्या से होता है। अध्ययन से पता चला कि पिछली सदी में चमगादड़ों की 40 अतिरिक्त प्रजातियां चीन के युनान प्रांत में बस गई। ये प्रजातियां सौ से अधिक कोरोना वायरसों की वाहक हैं। यही वह ग्लोबल हॉट स्पॉट है जहां संभवतः सार्स-कोव-2 की उत्पत्ति हुई है। यहां के आनुवंशिक डेटा के अध्ययन से यह बात सामने आई है। पिछली सदी में जलवायु परिवर्तन के कारण सिर्फ चीन ही नहीं, मध्य अफ्रीका, मध्य और दक्षिण अमेरिका में भी चमगादड़ों की आबादी बढ़ी है। कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के रिसर्चर और इस अध्ययन के लेखक डॉ. रॉबर्ट बेयर का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया में चमगादड़ों की आबादी के वितरण में हुए बदलाव को समझ कर हम सार्स-कोव-2 के उदय की सही तस्वीर बना सकते हैं। उन्होंने कहा कि जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन ने कुदरती आवास बदले, प्रजातियां अपनी जगह छोड़ कर दूसरे इलाकों में पहुंच गईं और अपने साथ वायरसों को भी ले गई, इससे वायरसों और जानवरों के बीच संपर्क बढ़ा। इसके फलस्वरूप ज्यादा खतरनाक वायरसों का प्रसार या विकास हुआ।

विश्व की चमगादड़ों की आबादी विभिन्न किस्म के 3000 कोरोना वायरसों की वाहक है। चमगादड़ की प्रत्येक प्रजाति में 2.7 कोरोना वायरस मौजूद हैं। इनमें से अधिकांश चमगादड़ों में वायरस के कोई लक्षण नहीं दिखते। जलवायु परिवर्तन के कारण किसी एक इलाके में चमगादड़ों की आबादी बढ़ने से वहां ऐसे कोरोना वायरस की उपस्थिति, उसका विकास या प्रसार संभव है जो मनुष्य के लिए नुकसानदायक है। चमगादड़ों में मौजूद अधिकांश कोरोना वायरस मनुष्यों में जंप नहीं कर सकते। लेकिन मनुष्यों को संक्रमित करने वाले अधिकांश कोरोना वायरसों की उत्पत्ति संभवतः चमगादड़ों से हुई है। इनमें मेर्स, सार्स-कोव-1 और सार्स-कोव-2 जैसे संक्रामक रोग शामिल हैं।

वैज्ञानिकों के अन्य दल का मत है कि दुनिया में जमीन के इस्तेमाल में परिवर्तन की वजह से वायरस के नये केंद्र बन रहे हैं। उन्होंने दुनिया में ऐसे स्थानों का पता लगाया है जहां नये कोरोना वायरस प्रकट हो सकते हैं। उनका कहना है कि बड़े जंगलों को छोटे-छोटे जंगलों में बांटने, कृषि के विस्तार और मवेशी उत्पादन के कारण मनुष्य ‘हॉर्सशू’ चमगादड़ों के संपर्क में आ रहे हैं। इन चमगादड़ों को कोविड-19 सहित विभिन्न जूनोटिक बीमारियों का वाहक समझा जाता है। जानवरों से मनुष्यों में होने वाले संक्रमण को जूनोटिक रोग कहा जाता है। चीन जैसे देशों में चमगादड़ों से मनुष्यों में बीमारियों के हस्तांतरण के लिए परिस्थितियां बहुत अनुकूल हैं जहां मीट उत्पादों के लिए बढ़ती हुई मांगों को पूरा करने के लिए बड़े पैमाने पर औद्योगिक मवेशी फार्मिंग का विस्तार किया जा रहा है। इस तरह की फार्मिंग चिंता का विषय है क्योंकि इससे आनुवंशिक दृष्टि से एक समान जानवरों की बड़ी तादाद एक जगह केंद्रित हो जाती है।

अधिकांश जानवरों में इम्युनिटी भी कम होती है। शोधकर्ताओं का कहना है कि इस तरह के जानवरों में बीमारी फैलने का खतरा बहुत होता है। चीन के अलावा दूसरे हॉटस्पॉट इंडोनेशिया के जावा, भूटान, पूर्वी नेपाल, उत्तरी बांग्लादेश, पूर्वोत्तर भारत और केरल में पाए गए हैं। शोधकर्ताओं ने पाया कि दक्षिणी चीन में कम खतरे वाले स्थानों के अलावा शंघाई के दक्षिण में कई स्थान जंगलों को विभक्त करने की वजह से हॉटस्पॉट में तबदील हो सकते हैं। जापान और उत्तरी फिलीपींस में भी इस तरह की स्थितियां बन रही हैं। अध्ययन से पता चलता है कि दक्षिण-पूर्वी एशिया और थाईलैंड में मवेशी उत्पादन बढ़ने की वजह से वायरस के हॉटस्पॉट बन सकते हैं।

यह अध्ययन बर्कले स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, मिलान की पोलीटेक्निक यूनिवर्सिटी और न्यूजीलैंड की मैसी यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने किया है। उन्होंने दूरसंवेदन तकनीकों से हॉर्सशू चमगादड़ों की समूची रेंज में जमीन के इस्तेमाल के पैटर्न का विश्लेषण किया। यह रेंज पश्चिमी यूरोप से लेकर दक्षिण पूर्व एशिया तक फैली हुई है। उन्होंने बड़े जंगलों को बांट कर बने छोटे जंगलों, मानव बस्तियों, कृषि और मवेशी उत्पादन के क्षेत्रों की पहचान की। इससे उन्हें उन संभावित हॉटस्पॉट खोजने में आसानी हो गई जहां पर्यावास हॉर्सशू परिवार की चमगादड़ों की प्रजातियों के लिए अनुकूल है। इन जगहों पर बीमारी वाहक वायरस चमगादड़ों से मनुष्यों में जंप कर सकते हैं। 2017 में किए गए एक पिछले अध्ययन में शोधकर्ताओं ने अफ्रीका में इबोला वायरस के प्रकोप का संबंध जंगलों के विखंडन और पर्यावास विनाश के साथ जोड़ा था।

अभी हम कोविड-19 फैलाने वाले कोरोना वायरस की उत्पत्ति की असलियत नहीं जानते। चीन के वुहान शहर की प्रयोगशाला से वायरस के लीक होने की खबरें इन दिनों फिर चर्चा में हैं। हालांकि अधिकांश वैज्ञानिक यह मानते हैं कि चमगादड़ को संक्रमित करने वाले वायरस के मनुष्य में जंप करने से यह बीमारी फैली। ऐसा मनुष्य और वन्य जीवों के बीच प्रत्यक्ष संपर्क के जरिए या पैंगोलिन जैसे बिचौलिए जानवर के जरिए परोक्ष संपर्क से हुआ होगा। माना जाता है कि हॉर्सशू परिवार की चमगादड़ें कई प्रकार के कोरोना वायरसों की वाहक हैं, जिनमें ऐसी किस्में भी शामिल हैं जो आनुवंशिक दृष्टि से कोविड और सार्स (सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम) फैलाने लाने वायरस से मिलती हैं।

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