श्री वेद प्रकाश मिगलानी से ऋषि भक्त दर्शन अग्निहोत्री पर चर्चा
ओ३म्
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हमने एक सप्ताह पूर्व श्री दर्शन कुमार अग्निहोत्री जी (कीर्तिशेष दिनांक 16-5-2021) के मामा जी से बात की थी। वह दिल्ली में रहते हैं और लगभग उन्हीं की आयु के आर्य सत्पुरुष हैं। वह भी श्री दर्शन कुमार अग्निहोत्री की तरह आर्यसमाज की विचारधारा और महात्मा प्रभु आश्रित के प्रति समर्पित हैं। उन्होंने हमें बताया था कि श्री दर्शन अग्निहोत्री जी ने महात्मा प्रभु आश्रित जी की लगभग 60-70 पुस्तकों को प्रकाशित किया था। अग्निहोत्री जी के पिता का नाम श्री गणेश दास अग्निहोत्री तथा माता जी का नाम श्रीमती शान्ति देवी अग्निहोत्री था। दोनों पति पत्नि वैदिक आर्य पद्धति से किए जाने वाले यज्ञ-हवन में अटूट निष्ठा रखते थे और दैनिक यज्ञ करते थे। ऐसे ही उनके पुत्र दर्शन कुमार अग्निहोत्री जी भी थे। दर्शन अग्निहोत्री जी की एक बहिन श्रीमती राज बुद्धिराजा जी और एक भाई थे। दर्शन अग्निहोत्री सन् 2008 से वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून के निरन्तर प्रधान रहे। आपने आश्रम में अनेक कमरे बनाये तथा यहां की दो वृहद यज्ञशालाओं एवं अनेक भवनों के निर्माण में भी आपका सहयोग व योगदान किया था।
श्री वेद प्रकाश मिगलानी जी ने हमें बताया कि श्री दर्शन अग्निहोत्री जी वैदिक साधन आश्रम के ग्रीष्मोत्सव एवं शरदुत्सव में प्रत्येक वर्ष आते थे। यह इस आश्रम से सन् 1950 से जुड़े थे। इनके माता-पिता भी अपने जीवन काल में यहां आते रहे और यज्ञ आदि साधनाओं को करते रहे। आपने यहां एक कुटिया भी बनवाई थी जिसमें आर्यजगत के सुप्रसिद्ध विद्वान श्री आशीष दर्शनाचार्य जी निवास करते हैं। अग्निहोत्री जी ने आश्रम में कई वर्ष पूर्व स्वामी दीक्षानन्द सरस्वती जी के ब्रह्मत्व में राष्ट्र-भृत यज्ञ भी कराया था। इन पंक्तियों के लेखक को भी इस यज्ञ में उपस्थित होने का अवसर का मिला था। इस घटना को लगभग 20 वर्ष व्यतीत हो चुके हैं, ऐसा हमारा अनुमान है। दर्शन अग्निहोत्री जी आश्रम के उत्सवों पर पधारने वाले विद्वानों व भजनोपदेशकों को आश्रम के अतिरिक्त अपनी ओर से भी व्यक्तिगत रूप से अर्थ-दान वा दक्षिणा प्रदान करते थे। आश्रम के तपोवन विद्या निकेतन जूनियर हाई स्कूल के छात्र छात्राओं को भी आप छात्रवृत्तियां व पुरस्कार दिया करते थे। हमें आश्रम के मंत्री श्री प्रेमप्रकाश शर्मा जी ने बताया है कि अग्निहोत्री जी आश्रम द्वारा संचालित विद्यालय की अध्यापिकाओं व अन्य कर्मचारियों के लिए दिल्ली से साड़ी आदि वस्त्र व अन्य भेट लेकर आते थे जिससे सभी लोग सन्तुष्ट व प्रसन्न रहते थे और सभी को अग्निहोत्री जी की मृत्यु से गहरा धक्का लगा है। मिगलानी जी ने यह भी बताया कि अग्निहोत्री जी आश्रम में आते समय प्रचुर मात्रा में हवन सामग्री, विद्वानों को भेंट करने के लिए शालें आदि लेकर भी आते थे।
विभाजन से पूर्व जब अग्निहोत्री जी का परिवार पाकिस्तान में रहता था तो वहा कपड़ा बुनने की खड्डियों का काम करते थे। महात्मा प्रभु आश्रित जी के सत्सग से आपके माता-पिता अविभाजित पाकिस्तान में वैदिक विचारधारा के सम्पर्क में आये थे और प्रति दिन यज्ञ करना आरम्भ किया था। दर्शन अग्निहोत्री जी के पिता व माता में यज्ञ के प्रति इतनी निष्ठा थी कि सन् 1947 में पाकिस्तान बनने पर वायुयान में स्वदेश भारत आते समय वह अपनी समस्त भौतिक सम्पत्ति वहां छोड़कर मात्र एक यज्ञकुण्ड लेकर भारत आये थे। रोहतक का वैदिक भक्ति साधन आश्रम महात्मा प्रभु आश्रित जी की कर्म व तपस्थली है। अग्निहोत्री भी आजीवन इस आश्रम से जुड़े रहे और इसकी सफलता व उन्नति का अधिकांश श्रेय आपकी कर्मठता, पुरुषार्थ व मुक्त हस्तों से दान देने को दे सकते हैं। भक्ति साधन आश्रम, रोहतक से 6 किमी. की दूरी पर महात्मा प्रभु आश्रम जी की एक कुटिया है। महात्मा जी ने इस कुटिया में लम्बी साधनायें की हैं व वर्ष भर की अवधि के लिए वह मौन व्रत भी रखते थे। महात्मा प्रभु आश्रित जी ने देहरादून के तपोवन आश्रम में लम्बी अवधि तक तप करने के बाद महात्मा आनन्द स्वामी जी को एक पत्र लिख कर सूचित किया था कि यहां तपोवन आश्रम, देहरादून में उनकी साधना को पूर्णता और लक्ष्य की प्राप्ति हुई है जिससे आभाष लगता है कि उनको यहां ईश्वर के साक्षात्कार का लाभ हुआ था।
श्री वेदप्रकाश मिगलानी जी ने हमें बताया कि अग्निहोत्री गुरुकुल एटा के भी प्रधान रहे थे। उन्होंने वृन्दावन न्यास को एक गाड़ी वा वाहन दान में दिया था। मिगलानी जी ने हमें महात्मा प्रभु आश्रित जी से जुड़ी एक चमत्कारिक घटना सुनाई जिसमें उन्होंने बताया कि किशोरावस्था में वह एक बार बीमार हुए। उनको भोजन करना अच्छा नही लगता था। इस कारण उन्हें दिल्ली के विलिंग्टन अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था। जांच के बाद उन्हें पेट के आपरेशन को कहा गया और इसकी तैयारी की गई थी। इसी बीच महात्मा प्रभु आश्रित जी उनके घर दिल्ली आये। उनकी बहिन से बातें की तो ज्ञात हुआ कि बालक वेदप्रकाश अस्पताल में भर्ती हैं। महात्मा जी अस्पताल आये और वेदप्रकाश जी से मिले। उन्होंने उनसे हालचाल पूछा। उन्हें बताया गया कि पेट का आपरेशन होना है। सभी टैस्ट हो गये हैं। आपरेशन अगले दिन होना था। महात्मा जी ने वेदप्रकाशजी के जिस स्थान पर पेट में विकार था, उस पर हाथ फेरते रहे। ऐसा उन्होंने 10 मिनट तक किया। वेदप्रकाश जी की नाक व मुंह आदि में नलियां लगी हुई थीं। कुछ देर महात्मा जी बोल कर गये कि ईश्वर सब ठीक करेगा। अगले दिन वेद प्रकाश जी पूर्णतया स्वस्थ थे। सभी विकार व दर्द आदि ठीक हो गये थे। प्रातः 8.00 बजे उनको आपरेशन थियेटर ले जाने के लिए अस्पताल की चिकित्सक डाक्टर सीमा जी आईं। डा. सीमा वेद प्रकाश जी की बहिन की सहेली थी। वेदप्रकाश जी ने डात्र सीमा को कहा कि अब उन्हें उदर रोग की कोई प्राब्लम दर्द आदि नहीं है। वह अचानक ठीक हो गये हैं।
बालक वेदप्रकाश जी के स्वास्थ्य में सुधार के कारण उनके सभी टैस्ट वा परीक्षण दोबारा किए गये। इन परीक्षणों में वह पूर्ण स्वस्थ पाये गये। इस प्रकार से वेद प्रकाश मिगलानी जी का आपरेशन टल गया। आपरेशन करने वाले वरिष्ठ डाक्टर के पूछने पर वेदप्रकाश जी ने उन्हें बताया कि उनके परिवार के परिचित एक महात्मा योगी आये थे। ‘उन्होंने पेट पर हाथ फेरा था और कहा था कि ईश्वर सब ठीक करेगा।’ जिन दिनों की यह बात है तब मिगलानी जी कक्षा 8 में पढ़ते थे। उनका एक भाई आसनसोल में रहता था। दर्शन कुमरी अग्निहोत्री जी की माता जी श्रीमती शान्ति देवी वेदप्रकाश मिगलानी जी के मामा की सुपुत्री व उनकी ममेरी बहिन थी। मिगलानी जी ने महात्मा प्रभु आश्रित जी से जुड़ी कुछ चमत्कारिक घटनायें और सुनाई जिसके बारे में हमें आश्चर्य होता है परन्तु मिगलानी जी कहते हैं कि वह बातें सत्य हैं। पूर्व वर्णित घटना के ही समान हमारी उपस्थिति में भी एक घटना घटी थी। हमारे एक आर्य मित्र श्री शिवनाथ आर्य के पुत्र श्री रणवीर सिंह आर्य को अस्पताल के डाक्टरों ने जवाब दे दिया था। उसके मस्तिष्क में तीव्र ज्वर था। उसकी आंखे पलट गई थी। हमारे मित्र कीर्तिशेष श्री सत्यदेव सैनी अस्पताल में हमारे साथ थे। उन्होंने हम मित्रों व परिवार के सदस्यों को बाहर भेजकर उस बच्चे के सिर पर हाथ फेरते रहे और ईश्वर से प्रार्थना व वेदमन्त्रों का पाठ करते रहे थे। लगभग एक घंटे बात वह बाहर आये और हमें बालक रणवीर से मिलने को कहा। एक घण्टे बाद बालक बिलकुल सामान्य व स्वस्थ था। डाक्टर भी इस पर आश्चर्य कर रहे थे। हम चमत्कारों को नहीं मानते परन्तु यह घटना हमारी उपस्थिति में घटी। आज भी वह बालक रणवीर सिंह आर्य स्वस्थ है और उसका भरा पूरा परिवार है।
यद्यपि हमारी यह वार्ता कोई विशेष महत्व की नही है फिर भी हमने इसे शब्दरूप दे दिया है। यह शब्दमाला हमारे मित्रों के लिए प्रस्तुत है। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य