हो सकता है, आप धनवान व्यक्ति हों। आपके घर में बहुत संपत्ति हो। कुछ नौकर चाकर भी हों। और वे आपका सब काम कर सकते हों, करते भी होंगे।
“परंतु जैसे आप पुरुषार्थी हैं, अपना बहुत सा कार्य स्वयं करते हैं। अपने काम की जिम्मेदारी को समझते हैं। इसी प्रकार से अपने बच्चों को भी प्रशिक्षण देवें।” बच्चों को भी आत्मनिर्भर एवं पुरुषार्थी बनाएं। आप के बच्चे भी अपने बहुत से कार्य स्वयं करें। सब काम नौकर चाकरों से न करवाएं। “घर में कुछ काम नौकर चाकर भी कर सकते हैं, परंतु बच्चों के व्यक्तिगत काम तो बच्चे स्वयं ही करें। जैसे उनकी पुस्तकें अलमारी में कहां रखनी हैं, किस प्रकार से सजाकर अर्थात ढंग से रखनी हैं। जूते चप्पल कपड़े जुराबे तथा अन्य भी उनका व्यक्तिगत सामान बच्चे स्वयं उठाएं और स्वयं रखें। जहां से उठाएं , वापस वहीं रखें। इधर उधर न छोड़ दें।”
हमने बहुत बार बहुत घरों में देखा है, कि बच्चे जब स्कूल से लौटते हैं, तो जूते कहीं उतार देते हैं, जुराबे कहीं छोड़ देते हैं। स्कूल बैग कहीं रख देते हैं। “फिर सुबह जब जूते और जुराबे नहीं मिलती, फिर शोर मचाते हैं। घर के सदस्यों को परेशान करते हैं। उनके काम में बाधा डालते हैं, और स्कूल जाने में देरी करते हैं।” इन सब समस्याओं से बचने का यही एक रास्ता है, कि बच्चों को इस प्रकार का प्रशिक्षण दिया जाए, कि वे अपने सामान की सुरक्षा स्वयं करें। इस प्रकार के कार्य नौकरों से न करवाएं।
हां, घर में झाड़ू पोछा लगाना, बर्तन मांजना, साफ सफाई करना आदि आदि अन्य कार्य तो नौकर चाकर भी कर दें। चलो रसोई से डाइनिंग टेबल तक भोजन भी नौकर लाकर रख दें। यहां तक भी चल सकता है। परंतु अपने व्यक्तिगत कार्य तो बच्चे स्वयं ही करें। “इससे बच्चों में आत्मनिर्भरता अनुशासन पुरुषार्थता बुद्धिमत्ता अपनी वस्तुओं की सुरक्षा व्यवस्था करना इत्यादि अनेक गुणों का विकास होगा। जो उनके भविष्य के लिए अत्यंत सुखदायक होगा। इस प्रकार से बच्चों को प्रशिक्षित करें।”
“भविष्य में आपके बच्चे जब आपके इस प्रशिक्षण के कारण सुखी होंगे, तो आपको अर्थात माता-पिता एवं गुरुजनों को भी बहुत धन्यवाद देंगे, कि हमें माता-पिता एवं गुरुजनों ने बहुत अच्छी सभ्यता सिखाई। उन्हीं के प्रशिक्षण के कारण से आज हम बहुत सुखी हैं।”
—– स्वामी विवेकानंद परिव्राजक, रोजड़, गुजरात।
प्रस्तुति : आर्य सागर खारी