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पुस्तक समीक्षा : स्वयं सिद्धा

पुस्तक समीक्षा : ‘स्वयं सिद्धा’

 

कोई भी कवि या साहित्यकार अपने आसपास घट रही घटनाओं के प्रति कभी भी निरपेक्ष या उदासीन नहीं रह सकता। सचमुच में वह कवि या लेखक हो ही नहीं सकता जो अपने चारों ओर घट रही घटनाओं के प्रति निरपेक्ष हो जाए। शांत हो जाए। मौन हो जाए। उदासीन हो जाए । जब किसी लेखक या कवि को उसके आसपास की घट रही घटनाएं झकझोरने लगती हैं तो उसके भीतर का क्रांतिकारी कवि मचलने लगता है। उसके भीतर का लेखक या कवि उससे नई कृति तैयार करा देता है । जिससे समाज नई दिशा लेता है। नवक्रांति का सूत्रपात होता है । यह हर लेखक या कवि के साथ होता है।
इस पुस्तक की कवयित्री नंदिता रवि चौहान के साथ भी ऐसा ही हुआ है। उन्होंने अपने आसपास की घट रही घटनाओं के प्रति अपना सापेक्ष भाव प्रदर्शित करते हुए अपने भीतर की प्रतिभा को सहज रूप में बहने दिया है। उसी के परिणाम स्वरूप उन्होंने स्वयं को सिद्ध करते हुए ‘स्वयं सिद्धा’ की रचना कर डाली। बात भी सही है ‘स्वयं सिद्धा’ से पहले स्वयं को सिद्ध करना आवश्यक होता है। प्रतिभा वही होती है जो सिर चढ़कर बोलने लगती है और सोते हुए इंसान को उठ बैठकर कुछ लिखने और क्रांति मचाने के लिए प्रेरित करने लगती है।
नंदिता रवि चौहान की प्रस्तुत पुस्तक के अध्ययन से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि उनकी प्रत्येक कविता कुछ न कुछ ऐसा महत्वपूर्ण संदेश देती हुई आती है जो हमारे मानस को प्रभावित किए बिना नहीं रहती। उनकी कविता शैली में वर्तमान क्रांतिकारी स्वर में बोल रहा है और भविष्य के लिए एक आवाहन पैदा कर रहा है। इसी से वह स्वयं को सिद्ध करने में सफल हो पाई हैं।
कुल 111 पेजों की इस पुस्तक में कवयित्री ने 81 कविताएं प्रस्तुत की हैं । उनकी यह पहली पुस्तक है, लेकिन उनकी लेखन शैली और भावों को सहज रूप में प्रकट करने की कला से ऐसा एहसास नहीं होता कि यह उनकी पहली पुस्तक होगी। एक सुलझी हुई कवयित्री की भांति उन्होंने बहुत बेहतरीन ढंग से अपनी कविताओं और रचना को उत्कृष्टता प्रदान की है। जिसके लिए कवयित्री बधाई की पात्र हैं।
‘विरासत है मां’- नामक कविता में कवयित्री के पवित्र संस्कार परिलक्षित होते हैं। जिसमें वह एक सच्चाई को बड़ी सादगी के साथ प्रस्तुत करती हुई कहती हैं कि ;-
‘नहीं मेरी कलम में सामर्थ्य
जो मां को भाषित कर पाऊं,
कहां मेरी कलम में वह दर्शन
जो मां को परिभाषित कर पाऊँ।’
बेटियों के साथ समाज में हो रहे अन्याय पर भी उनकी कलम बड़ी बेबाकी से चलती है ,और वह कहती हैं कि :-
बेटी सा पालो बेटों को
नियति की धारा को
सामाजिक तरीकों को
कुलीन पोषित, सुसज्जित
कुल के चिरागों को
भरोसा करने लायक
बेटी सा पालो बेटों को …..

कवित्री नंदिता रवि चौहान के विषय में रासबिहारी गौड़ का यह कथन सच ही है कि – ”नंदिता कविताओं में स्त्री का सच अलाव में पकाती हैं। वह नए रूपकों को गढ़ते समय का सच बयां करती हैं। उसे चाहे आत्मदाह कहें, अग्निपरीक्षा कोई फर्क नहीं पड़ता। नंदिता ना आत्मदाह करती देह बनना स्वीकार करती है ना उन्हें अग्नि परीक्षा वाली देवी होने की कामना है।”
कहने का अभिप्राय है कि नंदिता रवि चौहान ने अपनी प्रस्तुत पुस्तक में अपने स्वतंत्र चेतन विचारों को बहुत ही गहराई और उत्तमता से प्रस्तुत करने का सफल और सार्थक प्रयास किया है ।
पुस्तक का मूल्य ₹200 है जो कि साहित्त्यागार धामाणी मार्केट की गली चौड़ा रास्ता जयपुर 30 2003 से प्रकाशित हुई है । पुस्तक मंगाने के लिए फोन नंबर 0141 – 2310785, 4022382 पर संपर्क किया जा सकता है।

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

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