डॉ. वेदप्रताप वैदिक
अफगानिस्तान से अमेरिकी फौजें जैसे सिर पर पाँव रखकर भागी हैं, क्या उससे भी भारत सरकार ने कोई सबक नहीं लिया। बगराम सहित सात हवाई अड्डों को खाली करते वक्त अमेरिकी फौजियों ने काबुल सरकार को खबर तक नहीं की। नतीजा क्या हुआ? बगराम हवाई अड्डे में सैकड़ों शहरी लोग घुस गए और उन्होंने बचा-खुचा माल लूट लिया। अमेरिकी फौज अपने कपड़े, छोटे-मोटे कंम्प्यूटर और हथियार, बर्तन-भांडे-फर्नीचर वगैरह जो कुछ भी छोड़ गई थी, उसे लूटकर काबुल में कई कबाड़ियों ने अपनी चलती-फिरती दुकानें खोल लीं। यहां असली सवाल यह है कि अमेरिकियों ने अपनी बिदाई भी भली प्रकार से क्यों नहीं होने दी ?
डर के मारे कई राष्ट्रों ने अपने वाणिज्य दूतावास बंद कर दिए हैं और काबुल स्थित राजदूतावासों को भी वे खाली कर रहे हैं। भारत ने अभी अपने दूतावास बंद तो नहीं किए हैं लेकिन उन्हें कामचलाऊ भर रख लिया है।
अफगानिस्तान में भारत की हालत अजीब-सी हो गई। तीन अरब डॉलर वहां खपानेवाला और अपने कर्मचारियों की जान कुर्बान करनेवाला भारत हाथ पर हाथ धरे बैठा है। भारत की वैधानिक सीमा (कश्मीर से लगी हुई) अफगानिस्तान से लगभग 100 किमी. लगती है। अपने इस पड़ौसी देश के तालिबान के साथ चीन, रूस, तुर्की, अमेरिका आदि सीधी बात कर रहे हैं और दिग्भ्रमित पाकिस्तान भी उनका दामन थामे हुआ है लेकिन भारत की विदेश नीति बगलें झांक रही है। यह ठीक है कि भाजपा में विदेश नीति के जानकर नहीं के बराबर हैं और मोदी सरकार नौकरशाहों पर पूरी तरह निर्भर है। आश्चर्य है कि नरेंद्र मोदी ने दक्षता के नाम पर अपने लगभग आधा दर्जन वरिष्ठ मंत्रियों को घर बिठा दिया लेकिन विदेश नीति के मामले में उनकी कोई मौलिक पहल नहीं है। इस समय भारत की विदेश नीति की सबसे बड़ी चुनौती अफगानिस्तान है। उसके मामले में अमेरिका का अंधानुकरण करना और भारत को अपंग बनाकर छोड़ देना राष्ट्रहित के विरुद्ध है। यदि अफगानिस्तान में अराजकता फैल गई तो वह भारत के लिए सबसे ज्यादा नुकसानदेह साबित होगी।