भारत में जिहाद का इतिहास
लव जिहाद का जो ज्वलंत मुद्दा हम आज उठता देख रहें हैं उसका इतिहास आज से दरसल 100 वर्ष पुराना है. 1920 के दशक में इस तरह की घटनाएं बहुत हो रहीं थीं जिसमें हिंदू लड़कियों और महिलाओं को प्रेमजाल में फंसाकर या फिर उनका अपहरण कर उनका जबरन धर्मांतरण कराया जा रहा था. इसी बीच कुछ ऐसे भी मामले आए जो अफवाह साबित हुए मगर इसका असर कितान अधिक था यह उस समय के हिंदुओं में जो खौफ था उसी से स्पष्ट पता चलाता है.
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उस समय आर्य समाज और हिंदू महासभा ने इसके खिलाफ मोर्चा खोला था. “हिंदू औरतों की लूट” और “हिंदू स्त्रियों की लूट के कारण” जैसी पत्रिकाएं और पैम्पलेट उस समय छापे गए हिंदुओं में इसके खिलाफ जागरूकता लाने के लिए. 1928 में “चंद मुसलमानों की हरकतें” नाम की पुस्तक भी बकायदा प्रकाशित की गईं थीं इस विषय पर कि कैसे हिंदू लड़कियों और महिलाओं का धर्मांतरण कराया जाता है और फिर किस तरह उन्हें प्रताड़ित किया जाता है.
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Patriot नाम की एक पत्रिका ने उत्तर प्रदेश के हिंदुओं की शिकायत को अपने एडिटोरियल में लिखा था कि “एक भी दिन ऐसा नहीं जाता जिस दिन यह न सुनने को मिलता हो कि किसी हिंदू लड़की को कोई मुसलमान भगा ले गया या अगवा कर ले गया. उससे भी दुखद बात यह है कि आए दिन हो रही इस तरह की डकैती का कोई हिंदू तीखी प्रतिक्रिया भी नहीं दे रहा है”. यह दिखाता है कि उस समय कितने बड़े स्तर पर यह काम हो रहा था और कितने ज्यादा ऐसे मामले आते रहें होंगे और हिंदू समाज की इस निष्क्रियता पर लोगों में तब भी गुस्सा था.
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1924 में कानपुर में “हमारा भीषण ह्यास” जिसका अर्थ हुआ हमारा भीषण नुकसान नाम का पैम्पलेट जारी किया गया था जिसमें यह बताया गया था कि किस तरह से हिंदू लड़कियों को अगवा किया जा रहा है सिर्फ और सिर्फ अपनी आबादी और जनसंख्या अनुपात को बदलने के उद्देश्य से.
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1924 में मेरठ में हिंदू नेताओं की एक बैठक हुई थी जिसमें इस बात की चर्चा उठी थी कि कैसे मुसलमान लड़के हिंदू लड़कियों का शीलभंग कर दे रहें हैं ताकि लड़की के पास कोई विकल्प ही न बचे और उसका धर्मांतरण करा दे रहे हैं. इस तरह के मामलों से इस हद तक उस समय भी परेशान था हिंदू समाज.
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एक अमेरिकन मिशनरी का व्यक्ति जिसका नाम Clifford Manshardt था जो 1920 और 1930 के दशक में भारत में रहा था उसने अपनी किताब “The Hindu Muslim Problem in India” जो कि लंदन में 1936 में छपी थी उसमें उसने उस समय के हिंदुओं से की गई बातचीत को छापा गया था जिसमें उसने लिखा था कि “भारत में हिंदुओं के मन में मुसलमानों को लेकर बहुत डर और गुस्सा है. हिंदू कहते हैं कि मुसलमान गुंडे हमारी लड़कियों को उठाकर ले जाते हैं हमारी महिलाओं के साथ गलत करते हैं. किसी मुसलमान पर भरोसा नहीं किया जा सकता, वे हमारी महिलाओं को रिझाने और उन्हें भगा ले जाने के फिराक में रहते हैं”. यह बातें उस समय के हिंदू कह रहे थे.
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1920 के ही दशक में आर्य समाज के प्रचारक स्वामी श्रद्धानन्द को ख्वाजा हसन निज़ामी द्वारा लिखी पुस्तक ‘दाइए-इस्लाम’ पढ़कर बड़ी हैरानी हुई. श्रद्धानन्द के एक शिष्य ने अफ्रीका से इसकी प्रति श्रद्धानन्द को भेजी थी. इस पुस्तक को चोरी छिपे-केवल मुसलमानों में उपलब्ध करवाया गया था. इसमें मुसलमानों को हर अच्छे-बुरे तरीके से हिन्दुओं को मुसलमान बनाने की बात कही गयी थी. हिन्दुओं के घर-मुहल्लों में जाकर औरतों को चूड़ी बेचने से, वैश्याओं को ग्राहकों में, नाई द्वारा बाल काटते हुए इस्लाम का प्रचार करने एवं मुस्लमान बनाने के लिए कहा गया था. श्रद्धानन्द ने निज़ामी की पुस्तक का पहले अनुवाद प्रकाशित किया जिसका नाम “हिन्दुओं सावधान, तुम्हारे धर्म-दुर्ग पर रात्रि में छिपकर धावा बोला गया हैं” रखा. इसके बाद इस पुस्तक का “अलार्म बेल अर्थात खतरे का घंटा” नाम से ‘उत्तर’ प्रकाशित किया.
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अब जरा आप सोचिए, यह वह दौर था जब देश गुलाम था, आजादी की लड़ाई चल रही थी मगर मुसलमानों को केवल अपनी आबादी बढ़ाने से मतलब था, सोचिए कि तब भी हिंदू यही शिकायत करता था कि मुसलमान हमारी लड़कियों और महिलाओं को या तो फंसा रहे हैं या फिर उठा ले जा रहें हैं, उस समय भी यह कहा जा रहा था कि मुसलमान भरोसे के लायक नहीं हैं उस समय भी यह शिकायत थी कि हिंदू समाज इतने सब के बावजूद चुप क्यों हैं. यह 1920 के दशक का दौर था जब अविभाजित भारत में मुसलमानों की आबादी तब के हिंदुओं के मुकाबले अच्छे अनुपात में हो चुकी थी और इस तरह की घटनाएं आए दिन घटित हो रहीं थीं, फिर उसके बाद मुसलमानों ने मोपला दंगे, कोहाट दंगे, नोआखली दंगे, डायरेक्ट एक्शन डे जैसे बड़े स्तर पर दंगे कर हिंदुओं को लहूलुहान कर दिया और अंततः देश का बंटवारा करवाकर अलग से अपना इस्लामिक देश ले लिया. मगर कहानी अब भी खत्म नहीं हुई… अधिकतर मुसलमान जिन्होंने पाकिस्तान बनाने के लिए वोट तो किया था मगर वे पाकिस्तान गए नहीं, भारत में ही रूक गए. धीरे-धीरे कर आबादी बढ़ाने लगे और अब फिर से वही हालात दोहराए जा रहें हैं. सोचिए…. सोचिए कि हमनें इतिहास से क्या सबक लिया, सोचिए कि हम तब से अब तक में क्या उसी स्थिति में नहीं खड़े हैं, कौन सी ऐसी शिकायतें उस समय के लोगों की आज भी घटित नहीं हो रहीं हैं. विचार अवश्य करिए.