जयशंकर गुप्त
राष्ट्रपति के वेतन पर आयकर लगता है कि नहीं और लगता है तो किस स्लैब में। आम धारणा है कि राष्ट्रपति का वेतन आयकर के दायरे से मुक्त होता है। इसको लेकर अलग-अलग तरह की राय है। लेकिन हम मानकर चलते हैं और शायद यही सच भी है कि उनके वेतन पर आयकर लगता है। शायद इसीलिए पहले इस तरह के पदों पर बैठे लोगों को मूल वेतन कम और भत्ते ज्यादा मिलते थे ताकि उन पर आयकर का बोझ कम पड़े।
हाल फिलहाल में आज चर्चा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जी की, उनकी आमदनी और बचत को लेकर उनके ताजा बयान की और फिर उत्तराखंड में पिछले छह महीनों के भीतर भाजपा के आलाकमान के द्वारा तीसरी बार मुख्यमंत्री बदले जाने की।
सबसे पहले राष्ट्रपति महामहिम कोविंद जी और उनके ताजा बयान की चर्चा। कोविंद जी चार साल पहले इसी जुलाई महीने में देश के 14वें राष्ट्रपति चुने गए थे। इससे पहले वह बिहार के राज्यपाल, राज्य सभा में दो कार्यकाल तक भाजपा के सदस्य भी रह चुके हैं। हम उन गिने-चुने पत्रकारों में हो सकते हैं जिन्होंने एक दलित चेहरे के रूप में श्री कोविंद के राष्ट्रपति बनने की संभावना व्यक्त की थी। संयोगवश हुआ भी वैसा ही था।
कोविंद जी अगले साल जुलाई महीने में रिटायर होने वाले हैं। अगला राष्ट्रपति कौन बनेगा! भाजपा और उसे संचालित करने वाले आरएसएस का शिखर नेतृत्व उन्हें एक और कार्यकाल देना चाहेगा या फिर उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू को पदोन्नत कर राष्ट्रपति बनाया जाएगा या कोई तीसरा व्यक्ति रायसीना हिल्स पर बने राष्ट्रपति भवन की शोभा बढ़ाएगा! इस तरह के सवालों के जवाब भविष्य के गर्भ में है। इसके बारे में चर्चा फिर कभी।
पिछले दिनों राष्ट्रपति कोविंद जी अपने गृह जनपद कानपुर में अपने गांव-घर गए थे। राष्ट्रपति बनने के बाद संभवत: पहली बार वह वहां गए थे। उनके कानपुर प्रवास के दौरान लोगों ने बढ़-चढ़ कर उनका स्वागत सत्कार किया। उनके स्वागत सम्मान में तमाम कार्यक्रम आयोजित हुए। कई अवसरों पर महामहिम अतीत को याद कर भावुक भी हो गए। इस दौरान कानपुर में एक दुखद वाकया भी हो गया। राष्ट्रपति के लिए वीवीआईपी ट्रैफिक प्रोटोकोल के कारण रास्ते में एंबुलेंस में फंसी 50 वर्षीय महिला उद्यमी वंदना मिश्र की मौत हो गई थी। इस पर राष्ट्रपति महोदय ने अफसोस भी जाहिर किया था। लेकिन इस वाकये को लेकर यह बहस भी छिड़ी कि वीवीआईपी के लिए ट्रैफिक प्रोटोकॉल का पालन करते हुए भी क्या एंबुलेंस जैसी आपातकालीन सेवा-सुविधाओं को लिए किसी तरह की छूट मिल सकती है। तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के बेंगलुरु प्रवास के दौरान ऐसी समस्या सामने आने पर निजलिंगप्पा नाम के एक इंस्पेक्टर ने एंबुलेंस के लिए रास्ता खोल दिया था और मरीज की जान बच गई थी। इसके लिए उसकी बहुत सराहना भी हुई थी। लेकिन वह एक निजी पहल थी। इस तरह की कोई आधिकारिक व्यवस्था अभी इस देश में नहीं है। इस पर विचार करने की आवश्यकता है।
कानपुर में महामहिम के स्वागत सम्मान में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने बताया कि उन्हें राष्ट्रपति के रूप में हर महीने पांच लाख रुपये का जो वेतन मिलता है, उसमें से पौने तीन लाख रुपये टैक्स कट जाता है और बचते हैं केवल सवा दो लाख रुपए उन्होंने यह भी कहा कि इससे अधिक तो सरकारी अधिकारी और वहां मौजूद शिक्षक-शिक्षिकाओं को मिलता है। यह बात उन्होंने संभवत: लोगों को बढ़-चढ़ कर करों के भुगतान के लिए प्रेरित करने के इरादे से कही होगी। लेकिन उनका यह बयान वायरल होते ही सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई कि क्या महामहिम को इतना कम वेतन मिलता है, या बचता है कि इसकी चर्चा उन्हें सार्वजनिक मंच से करनी पड़े! एक सवाल उनके वेतन पर लगने वाले कर के स्लैब को लेकर भी उठा। और यह भी कि ऐसा कौन सा अधिकारी, शिक्षक-शिक्षिका है जिसे इतना अधिक वेतन मिलता है कि कर लगने के बाद उसकी प्रति माह बचत सवा दो लाख के आसपास होती है।
राष्ट्रपति हमारे देश का सर्वोच्च संवैधानिक पद होता है और इस पद पर बैठे व्यक्ति को किसी भी सरकारी लोकसेवक अथवा अधिकारी के मुकाबले अधिक या कहें सर्वाधिक वेतन मिलता है। देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद को केवल दस हजार रुपए वेतन और 15 हजार रुपए के भत्ते मिलते थे। 1985 में राष्ट्रपति के वेतन-भत्ते को बढ़ाकर 15 हजार और 30 हजार रुपए कर दिया गया। 1989 में उनका वेतन 20 हजार हो गया, भत्ते अलग से। 1998 में एक बार फिर राष्ट्रपति के वेतन में वृद्धि कर 50 हजार रुपए तथा भत्ते अलग से कर दिया गया। 2008 में एक बार फिर बढ़ोतरी कर राष्ट्रपति का वेतन डेढ़ लाख रुपए कर दिया गया जबकि उन्हें भत्ते अलग से मिलते थे। 2017 राष्ट्रपति के वेतन-भत्ते में बदलाव कर इसे पांच लाख रुपए कर दिया गया। इसके अलावा उन्हें तमाम तरह के भत्ते अलग से मिलने की बात कही गई।
सुविधाओं के नाम पर राष्ट्रपति को सपरिवार विश्व के विशालतम कहे जाने वाले राष्ट्रपति भवन में मुफ्त निवास, चलने के निए बेशकीमती बुलेट प्रूफ मर्सिडीज कार। जल, थल और नभ में अति विशिष्ट श्रेणी में मुफ्त यात्रा सुविधा, मुफ्त टेलीफोन, इंटरनेट के साथ ही आजीवन मुफ्त चिकित्सा और दवा की सुविधा प्रदान की जाती है। राष्ट्रपति भवन के सूत्रों के अनुसार खान-पान से लेकर तमाम मामलों में राष्ट्रपति भवन पूरी तरह से आत्मनिर्भर है। उनकी यात्राओं के लिए अलग से सज्जित विमान की व्यवस्था है। इस हिसाब से देखें तो दैनंदिन के मामलों में राष्ट्रपति को अपनी जेब से कुछ खास खर्च नहीं करना पड़ता है।
राष्ट्रपति के वेतन पर आयकर लगता है कि नहीं और लगता है तो किस स्लैब में। आम धारणा है कि राष्ट्रपति का वेतन आयकर के दायरे से मुक्त होता है। इसको लेकर अलग-अलग तरह की राय है। लेकिन हम मानकर चलते हैं और शायद यही सच भी है कि उनके वेतन पर आयकर लगता है। शायद इसीलिए पहले इस तरह के पदों पर बैठे लोगों को मूल वेतन कम और भत्ते ज्यादा मिलते थे ताकि उन पर आयकर का बोझ कम पड़े। लेकिन आयकर का अधिकतम स्लैब तो 30 फीसदी ही है जो सबके लिए लागू है। फिर महामहिम कोविंद जी के पांच लाख रुपए के प्रति माह वेतन से पौने तीन लाख रुपए कर किस हिसाब से कट जाता है। और फिर भारत में वह कौन सा अधिकारी और शिक्षक है जिसे आयकर भुगतान के बाद राष्ट्रपति महोदय से अधिक वेतन मिल पाता है।
दरअसल, देश में कोरोना का कहर बढ़ने के बाद उससे युद्ध के नाम पर सरकार में उच्च और सर्वोच्च पदों पर बैठे लोगों के वेतन में से 30
फीसदी कटौती का फैसला हुआ था जो महामहिम पर भी लागू हुआ था। इस हिसाब से उन्हें प्रति माह डेढ़ लाख रुपए कम मिल रहे होंगे और उसके बाद मिलने वाले 3.5 लाख रुपए के वेतन पर कर भी लगते होंगे। इन दोनों कटौतियों को मिला दें तो वाकई उनके वेतन से करीब पौने तीन लाख रुपए कट जाते होंगे। लेकिन कोरोना से युद्ध के नाम पर हो रही अस्थायी कटौती कर का हिस्सा नहीं है। उसे भी महामहिम ने शायद कर मान लिया!
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