क्या मोहन भागवत का बयान वास्तव में हास्यास्पद है या राजनीति से प्रेरित ?
🙏बुरा मानो या भला🙏
—मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”
महाभारत में अर्जुन और कर्ण दो महायोद्धा थे, दोनों का ही DNA एक था। दोनों ही आपस में भाई-भाई थे। लेकिन इसके बावजूद महायोद्धा कर्ण ने अपने ही भाई पांडवों के विरुद्ध कौरवों के पक्ष में युद्ध लड़ा। उसका प्रमुख कारण था कर्ण की दुष्ट संगति। कर्ण ने अहंकारी दुर्योधन और कपटी शकुनि का साथ धरा जबकि अर्जुन को सत्यवादी युधिष्ठिर का सानिध्य और प्रभु श्रीकृष्ण का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। दोनों ही योद्धाओं पर उनकी संगति का प्रभाव हुआ। कर्ण हर तरह से अर्जुन से अधिक बलशाली और पराक्रमी था परन्तु अधर्म का साथ देने के कारण उसका यश भी अपयश में परिवर्तित हो गया।
ठीक उसी प्रकार भारत में रहने वाले हम सभी लोगों के DNA तो आपस में समान हैं क्योंकि हम सबके पूर्वज तो एक ही हैं। लेकिन हममें से कुछ लोगों ने दुष्टों की संगति में रहकर अपने धर्म और संस्कृति का परित्याग कर दिया। और हमने भारत पर आक्रमण करने वाले आक्रांताओं, लुटेरों, बलात्कारियों और हमारे वास्तविक पूर्वजों के हत्यारों को अपना पूर्वज मान लिया। जैसे अंगराज कर्ण ने अपने को सूत पुत्र मान लिया था जबकि अंगराज कर्ण वास्तव में सूर्यपुत्र थे और पांडवों के ज्येष्ठ भ्राता (सबसे बड़े भाई) थे।
उसका एक प्रमुख कारण यह भी था कि अंगराज कर्ण और पांडवों के बीच कभी संवाद ही नहीं हुआ, इसलिए न तो पांडव कर्ण को अपना पाए और न ही कर्ण पाण्डवों को अपना सके। उनके बीच संवाद नहीं बल्कि हमेशा विसंवाद हुआ।
इसका एक और ताजा उदाहरण देखिये कि आज एक महान अभिनेता और ट्रेजडी किंग कहे जाने वाले दिलीप कुमार की मृत्यु हो गई। अब जरा सोचिए कि दलीप कुमार स्वर्गवासी हुए या फिर मौहम्मद यूसुफ़ खान का इंतक़ाल हुआ है। यहाँ बता दें कि दलीप कुमार का वास्तविक नाम मौहम्मद यूसुफ़ खान था। अब यूसुफ खान और दलीप कुमार का DNA तो एक ही था। हम किसका शोक मनाएं दलीप कुमार के मरने का या यूसुफ खान के इंतक़ाल का? जबकि दोनों नाम एक ही शख़्स के थे।
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने यही समझाने का प्रयत्न किया है, उन्होंने कहा कि- “हिन्दू-मुस्लिम एकता की बात भ्रामक है क्योंकि वे अलग नहीं, बल्कि एक हैं। सभी भारतीयों का डीएनए एक है, चाहे वे किसी भी धर्म के हों.’’ आरएसएस प्रमुख ने इस बात पर जोर दिया कि एकता का आधार राष्ट्रवाद और पूर्वजों का गौरव होना चाहिए।हिन्दू-मुस्लिम संघर्ष का एकमात्र समाधान ‘संवाद’ है, न कि ‘विसंवाद’.
यही एकमात्र सत्य है। अगर भारत का प्रत्येक व्यक्ति यह मान ले कि कोई भी विदेशी लुटेरा, आक्रांता और हत्यारा उनका पूर्वज नहीं हो सकता बल्कि उसके पूर्वज तो भारत में ही जन्मे थे, उसकी मातृभूमि तो भारत माता ही है, उसे अपने राष्ट्र और पूर्वजों के नाम को गौरवांवित करना है। तब आपस में कभी मनभेद नहीं होगा। एकता का आधार राष्ट्र और पूर्वजों का गौरव ही होना चाहिये। इसके लिए हमें परस्पर संवाद की आवश्यकता है न कि विसंवाद की।
🖋️ मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”
समाचार सम्पादक- उगता भारत हिंदी समाचार-
(नोएडा से प्रकाशित एक राष्ट्रवादी समाचार-पत्र)
विशेष नोट- उपरोक्त विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं। उगता भारत समाचार पत्र के सम्पादक मंडल का उनसे सहमत होना न होना आवश्यक नहीं है। हमारा उद्देश्य जानबूझकर किसी की धार्मिक-जातिगत अथवा व्यक्तिगत आस्था एवं विश्वास को ठेस पहुंचाने नहीं है। यदि जाने-अनजाने ऐसा होता है तो उसके लिए हम करबद्ध होकर क्षमा प्रार्थी हैं।
🖋️ *मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”
समाचार सम्पादक- उगता भारत हिंदी समाचार-
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*विशेष नोट- उपरोक्त विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं। उगता भारत समाचार पत्र के सम्पादक मंडल का उनसे सहमत होना न होना आवश्यक नहीं है। हमारा उद्देश्य जानबूझकर किसी की धार्मिक-जातिगत अथवा व्यक्तिगत आस्था एवं विश्वास को ठेस पहुंचाने नहीं है। यदि जाने-अनजाने ऐसा होता है तो उसके लिए हम करबद्ध होकर क्षमा प्रार्थी हैं।
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