मुकुल व्यास
मनुष्यों और पौधों में बहुत अंतर है। हम चल फिर सकते हैं, बातचीत कर सकते हैं, देख सकते हैं, सुन सकते हैं और स्पर्श कर सकते हैं। लेकिन पौधों में एक ऐसी खूबी है जो हमारे पास नहीं है। वे सीधे सूरज से ऊर्जा पैदा कर सकते हैं। इस प्रॉसेस को प्रकाश-संश्लेषण या फोटोसिंथेसिस कहते हैं। दुनिया के वैज्ञानिक पिछले काफी समय से सौर ऊर्जा पाने के लिए इसी प्रॉसेस को दोहराने की कोशिश कर रहे हैं। इस बारे में हो रही रिसर्च के परिणाम खासे उत्साहवर्धक हैं।
ऐसा लगता है कि मनुष्य जल्द ही प्रकाश-संश्लेषण की प्रॉसेस को कॉपी करके सूरज से स्वच्छ ईंधन प्राप्त करने में सफल हो जाएगा। इस तरह के ईंधन का भंडारण भी किया जा सकेगा। अगर ऐसा हुआ तो ग्रीन एनर्जी का समूचा नया क्षेत्र खुल जाएगा। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि पृथ्वी पर एक घंटे में सूरज की रोशनी के रूप में इतनी ऊर्जा पहुंचती है कि उससे समस्त मानव सभ्यता की एक साल तक की ऊर्जा जरूरतें पूरी की जा सकती हैं। अमेरिका में परजू यूनिवर्सिटी की जैव-भौतिकविद यूलिया पुष्कर सौर ऊर्जा पाने के लिए पौधों के तरीके को कॉपी करने की कोशिश कर रही हैं।
इस समय पवन ऊर्जा और सूरज ऊर्जा स्वच्छ ऊर्जा के मुख्य स्रोत हैं। पवन ऊर्जा में टर्बाइनों और सौर ऊर्जा में फोटोवोल्टैक सेलों की जरूरत पड़ती है। इन दो ऊर्जा स्रोतों के साथ कृत्रिम प्रकाश-संश्लेषण के रूप में तीसरे विकल्प को जोड़ने से न्यू एनर्जी का समूचा सीन ही बदल जाएगा। भारी भरकम बैटरियों के बिना ऊर्जा को स्टोर करने की क्षमता से समाज को ज्यादा प्रभावी ढंग से स्वच्छ ऊर्जा की सप्लाई की जा सकेगी। पर्यावरणीय प्रभावों के कारण टर्बाइनों और फोटोवोल्टैक सेलों के उपयोग की कुछ सीमाएं हैं। पुष्कर को उम्मीद है कि कृत्रिम प्रकाश संश्लेषण के उपयोग से ये खामियां दूर हो जाएंगी। प्रकाश-संश्लेषण बड़ी जटिल प्रक्रिया है, जिसके जरिए पौधे सूरज की रोशनी और पानी के मॉलिक्यूल को ग्लूकोज के रूप में ऊर्जा में बदल देते हैं। यह सब करने के लिए उन्हें क्लोरोफिल, प्रोटीन, एंजाइम और धातुओं की जरूरत पड़ती है।
इस वक्त फोटोवोल्टैक टेक्नॉलजी प्रकाश-संश्लेषण प्रक्रिया के सबसे नजदीक है। इसमें एक सौर सेल सूरज की ऊर्जा को बिजली में बदलता है। लेकिन यह टेक्नॉलजी बहुत कारगर नहीं है। यह सौर ऊर्जा का सिर्फ 20 प्रतिशत हिस्सा ही ग्रहण कर पाती है। दूसरी तरफ प्रकाश-संश्लेषण की प्रक्रिया ज्यादा कारगर है। यह 60 प्रतिशत सौर ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा के रूप में जमा कर सकती है। प्रकाश ऊर्जा को ग्रहण करने की सेमीकंडक्टर की क्षमता और ऊर्जा उत्पादन की सौर सेल की क्षमता सीमित है। इसी वजह से एक साधारण फोटोवोल्टैक सेल एक सीमा से ज्यादा काम नहीं कर सकता।
वैज्ञानिक कृत्रिम प्रकाश-संश्लेषण के जरिए इन सीमाओं को खत्म कर सकते हैं। पुष्कर ने कहा कि कृत्रिम प्रकाश-संश्लेषण के साथ कोई बुनियादी भौतिक सीमा नहीं है। हम एक ऐसे सिस्टम की कल्पना कर सकते हैं जो 60 प्रतिशत तक कारगर हो। यह सिस्टम उन्नत होने पर 80 फीसद कारगर हो सकता है। पुष्कर की टीम ने पौधों में प्रकाश-संश्लेषण की प्रक्रिया का अनुकरण करने के लिए एक कृत्रिम पत्ता बनाया है, जो प्रकाश इकट्ठा करता है और पानी के मॉलिक्यूल विभक्त करके हाइड्रोजन पैदा करता है। इस हाइड्रोजन को ईंधन सेलों के जरिए ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है या प्राकृतिक गैस जैसे दूसरे ईंधनों के साथ मिलाया जा सकता है। हाइड्रोजन ईंधन सेलों से छोटे-मोटे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से लेकर वाहन, मकान,अस्पताल और प्रयोगशालाओं तक हर चीज को बिजली दी जा सकती है।
प्रकाश संश्लेषण के दौरान पानी के मॉलिक्यूल के विखंडन के बारे में पुष्कर का अध्ययन ‘केम कैटालिसिस : सेल प्रेस’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। वैज्ञानिक कुदरती प्राकृतिक प्रकाश-संश्लेषण की प्रक्रिया का अनुकरण करने के लिए सत्तर के दशक से रिसर्च कर कर रहे हैं। यह बहुत लंबा समय लगता है, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि पृथ्वी पर इस प्रक्रिया को विकसित होने में करोड़ों साल लगे थे। प्रकाश-संश्लेषण की शुरुआत करीब 3 अरब वर्ष पहले हुई। तब तक पृथ्वी करीब 1.5 अरब वर्ष पुरानी हो चुकी थी। इस बारे में चल रही रिसर्च को देखते हुए हम अगले 10-15 वर्षों में व्यावसायिक फोटोसिंथेसिस सिस्टम की उम्मीद कर सकते हैं।
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