देर आए दुरुस्त ‘किसान’ नेता
अशोक मधुप
दरअसल वार्ता की मेज पर जब दो पक्ष बैठते हैं तो दोनों को झुकना पड़ता है। एक पक्ष के झुकने से काम नहीं चलता। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के साथ 11 दौर की वार्ता में बुलाने पर किसान नेता गए तो किंतु कृषि कानून में कमी नहीं बता सके।
पिछले दिनों संसद में पास हुए तीन कृषि कानूनों की वापसी को लेकर लगभग सात माह से कुछ किसान संगठन आंदोलन कर रहे हैं। दिल्ली के चारों ओर ये संगठन डेरा डाले हैं। आंदोलनकारी संगठनों की मांग है कि तीनों कृषि कानून निरस्त किये जाएं। इससे कम पर वे तैयार नहीं हैं। भाजपा के अलावा अन्य अधिकांश राजनैतिक दल भी इन कानून की वापसी की मांग कर रहे हैं। शुरुआत से ही केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर कहते रहे हैं किसान संगठन आएं और बात करें तथा कानून में क्या कमियां हैं, यह बताएं। कमियों के बारे में कृषि कानून में संशोधन कर लिया जाएगा। कृषि कानून का निरस्त किया जाना संभव नहीं है। केंद्रीय कृषि मंत्री का दावा है कि देश के अधिकांश क्षेत्र, यूनियन और किसान कृषि कानूनों के समर्थन में हैं। जिन लोगों को आपत्ति है, उनसे सरकार ने कई दौर की वार्ता की है। हाल ही में केंद्रीय कृषि मंत्री ने फिर कहा कि हमने किसान यूनियन के लोगों को कहा है कि कानूनों को रद्द करने के अलावा सरकार किसी भी प्रस्ताव पर चर्चा करने के लिए तैयार है।
दरअसल वार्ता की मेज पर जब दो पक्ष बैठते हैं तो दोनों को झुकना पड़ता है। एक पक्ष के झुकने से काम नहीं चलता। केंद्रीय कृषि मंत्री के साथ 11 दौर की वार्ता में बुलाने पर किसान नेता गए तो किंतु कृषि कानून में कमी नहीं बता सके। उनकी एक ही रट रही कि सरकार तीनों किसान कानून वापस ले। अन्य किसान संगठन इन कानून के समर्थन में हैं, इसलिए सरकार इन्हें वापिस लेने की हालत में नहीं हैं। सरकार को डर है यदि कानून वापिस होतें हैं तो इनका समर्थन करने वाले संगठन आंदोलन न करने लगें। वार्ता शुरू होते ही किसान संगठन तीनों कानून वापिस करने की मांग करते हैं। सरकार की ओर से कानून की कमी बताने को कहने पर वे कुर्सी घुमाकर बैठ जाते हैं। वार्ता ऐसे नहीं होती, वार्ता में दोनों पक्ष जब मेज पर बैठते हैं तो ये सोचकर बैठते हैं कि समझौते के लिए दोनों पक्षों को ही झुकना पड़ता है। एक पक्ष के झुकने से कभी समझौता नहीं होता। तीन कृषि कानून पर आंदोलनकारी किसान नेता झुकने को तैयार नहीं हैं।
तीनों कृषि कानून संसद में पास हुए हैं। संसद में विचार के समय रखे जाने पर अधिकांश दल ने इनका विरोध नहीं किया। दरअसल ये कृषि कानून वह हैं जो पिछली सरकारों में तैयार हुए, पर पास नहीं हो पाए। वर्तमान सरकार में संसद में इन कानूनों के आने के दौरान भी कोई विरोध नहीं हुआ। इन कानून के बारे में आज आंदोलनरत कई किसान संगठनों ने समर्थन भी किया। आज इस कानून का विरोध करने वाले भाकियू के एक बड़े नेता तो शुरुआत में इनका समर्थन कर रहे थे। उन्होंने कहा था कि इन कानून के बनने से भाकियू के दिवंगत राष्ट्रीय अध्यक्ष महेंद्र सिंह टिकैत के सपने साकार हुए हैं। अब ये नेता तीनों कानून वापसी की मांग को लेकर आंदोलनरत हैं।
कृषि कानूनों पर पिछले सात महीने से चले आ रहे विरोध-प्रदर्शन के बीच केंद्र सरकार को पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) चीफ शरद पवार का साथ मिला है। पवार ने गुरुवार को कहा कि कृषि कानूनों को पूरी तरह से खारिज नहीं किया जा सकता। हां, इतना जरूर है कि कानून के उस हिस्से में संशोधन करना चाहिए, जिसको लेकर किसानों को दिक्कत है। शरद पवार से मीडिया ने पूछा कि क्या महाविकास अघाड़ी (MVA) सरकार केंद्र के कृषि कानूनों के विरोध में प्रस्ताव लाएगी? इसके जवाब में उन्होंने कहा, ‘पूरे बिल को खारिज कर देने की बजाय हम उस भाग में संशोधन की मांग कर सकते हैं जिसे लेकर किसानों को आपत्ति है। उन्होंने कहा कि इस कानून से संबंधित सभी पक्षों पर विचार करने के बाद ही प्रस्ताव को विधानसभा के पटल पर लाया जाएगा।
एनसीपी चीफ ने यह भी कहा कि महाविकास अघाड़ी (MVA) सरकार के मंत्रियों का एक समूह केंद्र के इस बिल के अलग-अलग पहलुओं का अध्ययन कर रहा है। शरद पवार ने आगे कहा कि राज्यों को अपने यहां इस कानून को लागू करने से पहले इसके विवादित पहलुओं पर विचार करना चाहिए। शरद पवार की बात बिल़्कुल सही है कि कानून में जो गलत हो, उस पर अमल न किया जाए। उन प्रावधानों को ही निरस्त किया जाए। बाकी कानून लागू रहे। ये ही स्वस्थ विचार है।
पर इस समय राजनीति जनता के लाभ और हित के लिए नहीं हो रही। राजनीति सिर्फ विरोध के लिए हो रही है। देश हित के विषय, राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे भी अब विरोध के शिकार हो रहे हैं। किसानों के दिल्ली में प्रदर्शन और उत्पात के बाद राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन और भाकियू भानु आंदोलन से अलग हो गए थे। अब अन्य संगठन भी आंदोलन की सच्चाई समझने लगे हैं। टीकरी कलां गांव में सोमवार को भारतीय किसान यूनियन (अंबावता) के प्रदेश अध्यक्ष सुरेश कुमार छिल्लर की अध्यक्षता में यूनियन की बैठक हुई। बैठक में सुरेश कुमार छिल्लर ने कहा कि कृषि कानूनों को रद्द करवाने की जिद छोड़कर नेता सरकार से किसानों के हित की बात करें। केंद्र सरकार ने 11 दौर की बैठक में नेताओं द्वारा पेश किए गए संदेह, सुझाव व बदलाव पर स्पष्टीकरण भी दिया। आवश्यकतानुसार बदलाव करना भी स्वीकार किया। यह केंद्र सरकार का किसानों के प्रति सम्मान, किसानों के महत्व, किसानों के प्रति प्रतिबद्धता और जवाबदेही को दर्शाता है। उन्होंने संयुक्त किसान मोर्चा के प्रमुख नेताओं से पूछा कि आखिर इस जिद से क्या मिलेगा। संयुक्त किसान मोर्चे के बड़े नेताओं को चाहिए कि सरकार के प्रतिद्वंद्वी की छवि को बदलते हुए पूर्व निर्धारित जिद को छोड़कर जल्द से जल्द किसान हित की ही सरकार के साथ बातचीत की पहल करें।
अब भी समय है कि आंदोलनकारी किसान नेता समय की मांग को स्वीकारें। जिद छोड़ें। किसान हित की बात करें। कृषि कानून में कथित गलती को सुधारने की ही मांग करें। किसान यूनियन (अंबावता) के प्रदेश अध्यक्ष सुरेश कुमार छिल्लर के संदेश को समझें। आंदोलन जिद पर नहीं, मुद्दों पर होना चाहिए। दिल्ली में प्रदर्शन के दौरान लाल किले पर जो हुआ, वह क्षम्य नहीं है, पुलिस पर ट्रैक्टर चढ़ाने की घटना उचित नहीं है। आंदोलनकारियों के तंबू में युवतियों से रेप को माफ नहीं किया जा सकता। एक गांव वाले को जिंदा जलाने को घटना भी क्षम्य नहीं है। आंदोलनस्थल के आसपास के गांव वाले अब तक चुप थे, किंतु अब ये भी इनका खुल कर विरोध कर रह हैं। किसान नेता समय की नजाकत समझें, सरकार बार−बार वार्ता के लिए बुला रही है, वार्ता में शामिल हों, किसानों के लाभ के सुझाव सरकार को देकर उन्हें लागू करवाएं।
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