—मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”
राजनीतिक गलियारों में खुसर-फुसर है कि चांदपुर विधानसभा क्षेत्र में कई दिग्गज नेता रालोद के खेमे में घुसने की तैयारी कर रहे हैं। ख़बर है कि भाजपा के भी कुछ नेता रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी के लगातार संपर्क में हैं। भाजपा के अतिरिक्त अन्य पार्टियों के भी कुछ दिग्गज नेताओं ने रालोद की ओर रूख़ करने का मन बनाया हुआ है। लेकिन यह सारा खेल केवल टिकट की भागदौड़ तक ही सीमित है। मतलब रालोद की विचारधारा और उसके आदर्शों में किसी को कोई ख़ास दिलचस्पी नहीं है, असल मकसद केवल गठबंधन का टिकट पाना है।
दरअसल, पश्चिमी उत्तरप्रदेश में सपा, लोकदल, महान दल और कांग्रेस का गठबंधन होनेल की चर्चाएं बहुत जोर-शोर से सुनाई पड़ रही हैं। इन तमाम चर्चाओं का असर उन लोगों पर ज़्यादा गहराई से पड़ता दिखाई दे रहा है जिन्हें उनकी अपनी पार्टियों से टिकट मिलने की सम्भावनाएं बहुत कम दिखाई दे रही हैं।
मज़े की बात यह है कि सारी खिचड़ी तैयार करने में स्वामी ओमवेश लगे हैं, और तैयार खिचड़ी में थोड़ा सा घी डालकर खाने को बाकी लोग अपनी-अपनी प्लेट लेकर तैयार बैठे हैं। मतलब कहने का यह कि मार खाये सासू, और बहू बहाए आंसू।
आजकल चांदपुर विधानसभा का जो-जो भाजपा नेता गंगा-जमुनी तहज़ीब की दुहाई ज़्यादा दे रहा हो और सेक्युलरवाद और समाजवाद का पाठ पढ़ रहा हो, समझ लीजिए कि वही-वही नेता रालोद के टिकट की लाइन में खड़ा है। उधर भाजपा के एक बड़े नेताजी ने हमसे फोन पर नाम न लिखने की शर्त पर बताया कि “भाजपा भी चाहती है कि गद्दारों को पहले ही पहचान लिया जाए ताकि बाद में पछताना न पड़े।” और हमारे दृष्टिकोण से ऐसे नेताओं को पहचानने का केवल एक ही तरीका है कि जो नेताजी अपने ड्राइंगरूमों में “छद्म सेक्युलर जमात” वालों को ब्रेडपकौडे और दही-भल्ले खिला रहे हों, समझ लो कि वही “गद्दीदार” हैं। आगे आप सब ख़ुद समझदार हैं।
यहां यह भी जानना जरूरी है कि राजनीति में वक़्त और ज़बान पलटते देर नहीं लगती है। सम्भावनायें यह भी बन सकती हैं कि रालोद और भाजपा गलबहियां कर लें। अगर ऐसा होता है तो यह कोई दुनिया का 8वां अजूबा तो नहीं होगा। इससे पहले भी भाजपा और रालोद का गठबंधन हो चुका है, उस समय स्वामी ओमवेश उस गठबंधन के उम्मीदवार थे और विजयी घोषित हुए थे। और यह भी सम्भव है कि बहन मायावती की माया का जादू जयंत चौधरी साहब पर चल जाये और बसपा-रालोद के गठबंधन के आसार बन जाएं। तब इन दोगले और अदूरदर्शी नेताओं का हश्र बहुत बुरा होगा। मतलब कि-
न ख़ुदा ही मिला, न विसाले सनम।
न इधर के रहे और न उधर के रहे।।
इसलिए हमारी नेक सलाह यह है कि अभी तेल देखिये, और तेल की धार देखिये।।
🖋️ मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”
समाचार सम्पादक- उगता भारत हिंदी समाचार-
(नोएडा से प्रकाशित एक राष्ट्रवादी समाचार-पत्र)
*विशेष नोट- उपरोक्त विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं। हमारा उद्देश्य जानबूझकर किसी की धार्मिक-जातिगत अथवा व्यक्तिगत आस्था एवं विश्वास को ठेस पहुंचाने नहीं है। यदि जाने-अनजाने ऐसा होता है तो उसके लिए हम करबद्ध होकर क्षमा प्रार्थी हैं।