जीवन का संघर्ष व्यक्ति को अनुभव और अनुभूतियों के बहुत सारे हीरे मोती देता चला जाता है । सफल और सार्थक जिंदगी जीने वाले लोगों के लिए अनुभव और अनुभूतियों के ये हीरे मोती उनके जीवन की बहुत बड़ी उपलब्धि होते हैं। जिन्हें वे सहेज कर रखते हैं। समय आने पर वे इन हीरे मोतियों को लोगों में मुफ्त बांटने का काम किया करते हैं। जिससे लोगों को इन अनुभव और अनुभूतियों के हीरे मोतियों का लाभ प्राप्त हो सके। जीवन की अनुभूतियां अनुभवों के सांचे में जब ढलकर बाहर निकलती हैं तो वे निश्चय ही दूसरे लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत बन जाती हैं ।
ऐसा ही कुछ इस पुस्तक के लेखक पी0एस0 सूदन के साथ हुआ है। जिनका जीवन बहुत सारी अनुभूतियों के सांचे में ढला है, तपा है, सधा है । उन अनुभूतियों और अनुभवों से उन्होंने जो कुछ भी पाया उन हीरे मोतियों को उन्होंने अपनी इस पुस्तक के माध्यम से पाठकों के सामने वैसे ही बखेर दिया है जैसे कोई सदगृहिणी छत पर जाकर अनाज के दाने पक्षियों के सामने बिखेर देती है। वास्तव में हीरे मोतियों को अनाज के दानों की तरह बिखेर देना किसी भी लेखक की महानता और उदारता का प्रतीक होता है। बहुत लोग होते हैं जो समाज और संसार में रहते हुए अपने अनुभवों को भी आम आदमी के लिए बिखेर नहीं पाते हैं या उन्हें शब्द नहीं दे पाते हैं । ऐसे लोग अपने अनुभवों के खजाने को अपने साथ ही ले जाते हैं।
लेखक इस बात के लिए बधाई के पात्र हैं कि उन्होंने अपने अनुभवों को शब्द दिए हैं। उन्होंने अपने अनुभवों को फेसबुक पर अपने मित्रों के साथ सांझा करना आरंभ किया । समय के साथ – साथ लेखनी की धार पैनी होती चली गई और फिर उनके साथियों की ओर से ही नहीं बल्कि उनकी आत्मा की ओर से भी यह आवाज आने लगी कि उन्हें अब अपने अनुभवों को एक पुस्तक का रूप दे ही देना चाहिए। बस, इसी का परिणाम यह पुस्तक है।
इस पुस्तक में लेखक ने अपनी छोटी से छोटी बातों को भी शब्दों के ऐसे मोतियों में पिरो दिया है कि वह पाठकों के लिए एक माला बनकर रह गई है। पुस्तक का नाम ‘अतीत का झरोखा’ भी बहुत ही सार्थक है। वास्तव में झरोखों से जैसे व्यक्ति को मंद सुगंध पवन के झोंके अनुभव होते हैं, वैसे ही जिंदगी की खिड़की से कभी – कभी अनुभूतियों के बेशकीमती संस्मरण आते – जाते अनुभव होते हैं। वे संस्मरण हमसे बहुत कुछ कहते हैं और हमारे भीतर की प्रतिभा यदि थोड़ी सी भी सरस्वती की प्रेरणा से प्रेरित होती है तो ऐसे संस्मरण कभी-कभी खुली ‘किताब’ भी बन जाते हैं। यह संस्मरण जब ‘अतीत का झरोखा’ जैसी पुस्तक के पृष्ठों पर उतरते हैं तो ‘मील का पत्थर’ बन जाते हैं। यह बात बहुत ही गर्व के साथ कहीं जा सकती है कि लेखक श्री पी0एस0 सूदन अपने संस्मरणों को ‘मील का पत्थर’ बनाने में सफल हुए हैं।
छोटे – छोटे अध्यायों में लेखक ने अपनी बातों को कुल 123 पृष्ठों में कह दिया है। जिसके कुल 73 अध्याय हैं। हर एक अध्याय कुछ न कुछ नई शिक्षा पाठक को देता हुआ दिखाई देता है। वास्तव में लोग आत्मकथा लिखते हैं तो उसको इतना बोझिल या आत्म केंद्रित बना देते हैं कि वह लोगों के लिए उपयोगी नहीं रह पाती। लेखक श्री पी0 एस0 सूदन ने अपनी इस पुस्तक में जो कुछ लिखा है वह उनकी आत्मकथा भी जान पड़ती है परंतु उनकी भाषा शैली इस प्रकार की है कि वह आत्मकथा न होकर लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गई है।
पुस्तक बहुत ही सरल भाषा में लिखी गई है । जिसे समझने में किसी भी पाठक को कोई परेशानी नहीं हो सकती। पुस्तक ‘ग्रंथ विकास’ सी 37 बर्फखाना, राजा पार्क ,जयपुर से प्रकाशित हुई है। जिसका मूल्य ₹225 है । पुस्तक प्राप्ति के लिए 0141 – 2322 382 , 2310785 पर संपर्क किया जा सकता है।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत
मुख्य संपादक, उगता भारत
One reply on “पुस्तक समीक्षा : अतीत का झरोखा”
इस आत्म कथा लेखक ने प्रथम बार मे लेखन कला से अपने आपको रुबरू करवाया लगता है ,की लेखक को बहुत अनुभव है लेखन का अप्नी परिस्थितयों से अवगत कराया है वह सराहनीय है बिना किसी भेदभाव के