भारत की छवि धूमिल करने के प्रयास में द लन्सेट आईएचएमई और एनडीटीवी ने बढ़ा चढ़ाकर कोरोना से मौत के अनुमानित आंकड़े पेश किए
अमेरिका स्थित ग्लोबल हेल्थ रिसर्च संस्था इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेडिकल एंड इवैल्यूएशन (IMHE) ने अगस्त 2021 तक भारत में कोविड-19 से 1.4 से 1.6 मिलियन यानी 14 से 16 लाख लोगों के मरने का अनुमान लगाया था। IHME सीएटल स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन का स्वतंत्र रिसर्च विंग है। उसका यह अनुमान 25 से 30 अप्रैल के बीच के डेटा पर आधारित है।
हालाँकि, महीनों बाद ऐसा प्रतीत होता है कि इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेडिकल एंड इवैल्यूएशन (IMHE) ने उस समय कोविड मौतों का जो अनुमान लगाया था, वह बिल्कुल गलत था। क्योंकि उसके ताजा आँकड़े इसके उलट हैं। यहाँ ध्यान दें कि ताजा आँकड़े अंतरराष्ट्रीय मेडिकल जर्नल द लॅन्सेट में प्रकाशित एक रिपोर्ट है, जिसमें IHME के अनुमानों को गलत साबित किया गया है। हालाँकि, अब यू-टर्न लेते हुए IHME ने द लॅन्सेट की रिपोर्ट सामने आने के बाद अगस्त तक 1.6 मिलियन (16 लाख) मौतों के पूर्वानुमान को 1 मिलियन (10 लाख) मौतों तक सीमित कर दिया है।
फिर भी, IHME द्वारा कोरोना से होने वाली मौतों का लगाया गया पूर्वानुमान अभी भी अपने निशान से बेहद दूर है। उदाहरण के लिए वर्तमान पूर्वानुमानों के अनुसार, भारत में आज यानी 29 जून को COVID-19 से अनुमानित मौतों की संख्या 1.11 मिलियन (11 लाख) है। यह मृत्यु की वर्तमान संख्या का 2.8 गुना है, जो कि 3.97 लाख है।
मौतों की अनुमानित संख्या की तुलना में रिपोर्ट की गई मौतों की संख्या में स्पष्ट अंतर देखा जा सकता है। इस तरह अत्यधिक बढ़ा-चढ़ा कर पेश किए गए अनुमान IHME के नियोजित संदिग्ध तरीकों और उसके गलत इरादों पर सवाल उठाते हैं। शायद, संगठन का उद्देश्य वास्तव में COVID-19 से संबंधित मौतों की वास्तविक संख्या को पेश करना नहीं है, बल्कि अनुमानित मौतों को बढ़ा-चढ़ाकर बताकर मोदी सरकार की छवि खराब करना है।
भारत में कोरोना वायरस की दूसरी लहर अब स्थिर होती दिख रही है। इन दिनों देश भर के जारी आँकड़ों से स्पष्ट है कि कोरोना वायरस की बेकाबू दूसरी लहर पर काबू पा लिया गया है। हर दिन कोरोना के कम मामले सामने आना, यह साबित करता है कि भारत में स्थिति अभी नियंत्रण में है। देश अब ऑक्सीजन संकट का सामना भी नहीं कर रहा है, जैसा कि अप्रैल 2021 में अचानक दूसरी लहर के कहर बरपाने से ऑक्सीजन, अस्पतालों में बेड, आइसोलेशन वार्ड सेंटर, वेंटिलेटर और अन्य उपकरणों का संकट गहरा गया था। हालाँकि, मोदी सरकार चिकित्सा सुविधाओं को बढ़ाने, वेंटिलेटर और अन्य आवश्यक उपकरणों का लगातार विस्तार कर रही है, ताकि कोरोनो वायरस की तीसरी लहर से निपटा जा सके।
इसके अलावा भारत अपने टीकाकरण अभियान को तेजी से बढ़ा रहा है। 21 जून से जब से केंद्र सरकार ने देश के सभी राज्यो में टीकाकरण अभियान का कार्यभार संभाला है, तब से वैक्सीन लगवाने वालों की संख्या काफी तेजी से बढ़ी है। टीकाकरण केंद्रों की साप्ताहिक छुट्टी के दिन यानी रविवार को छोड़कर लगातार हर हफ्ते 50 लाख का आँकड़ा पार कर रहा है। इस सप्ताह सोमवार को भारत ने एक और ऐतिहासिक रिकॉर्ड बनाया है। दरअसल, टीकाकरण के मामले में भारत संयुक्त राज्य अमेरिका से भी आगे निकल गया है। भारत में अब तक लगभग 32.5 करोड़ से अधिक लोग COVID-19 वैक्सीन की कम से कम एक खुराक ले चुके हैं।
हालाँकि, ऐसा प्रतीत होता है कि आईएचएमई द्वारा मौतों का लगाया गया अनुमान जमीनी हकीकत से कोसों दूर है। अत्यधिक बढ़ाचढ़ा कर मौत के आँकड़े बताते हुए IHME ने सभी मानकों को दरकिनार कर दिया। इसके बजाए अगस्त 2021 तक 1.14 मिलियन (11 लाख से अधिक) मौतों के अविश्वसनीय अनुमानों को पेश कर इसने मोदी सरकार के खिलाफ अपने पूर्वाग्रह जगजाहिर कर दिया है।
साभार: https://covid19.healthdata.org/india
द लॅन्सेट के पूर्वानुमान के बाद IMHE ने अपना अनुमान किया कम
हालाँकि, यह पहली बार नहीं है जब आईएचएमई ने ऐसे अनुमान लगाए हैं, जो तर्कसंगत नहीं हैं। इससे पहले मई में, IHME द्वारा इस्तेमाल किए गए संदिग्ध मॉडल ने अनुमान लगाया था कि भारत में कोरोना से अगस्त 2021 तक 1.4 से 1.6 मिलियन (14 से 16 लाख) लोगों की मौत हो जाएगी। अंतरराष्ट्रीय मेडिकल जर्नल द लॅन्सेट ने तब IHME रिपोर्ट का हवाला देते हुए मोदी सरकार के खिलाफ अपना दुष्प्रचार किया था।
इसने एक लेख प्रकाशित किया था, जो ढेरों गलतियों से भरा हुआ था। जिसकी व्याख्या आम आदमी भी कर सकते हैं। लेख में कहा गया है, “भारत को जब तक टीका लगाया जा रहा है, तब तक SARS-CoV-2 ट्रांसमिशन को जितना संभव हो कम करना चाहिए। जैसे-जैसे मामले बढ़ते जा रहे हैं, सरकार को सटीक आँकड़े समय पर प्रकाशित करने चाहिए। इसके साथ ही जनता को स्पष्ट रूप से समझाएँ कि क्या हो रहा है और महामारी से निपटने के लिए लॉकडाउन के अलावा क्या आवश्यक है।”
IHME ने अपने कोविड मॉडल को संशोधित किया
भले ही IHME ने अनुमान लगाया था कि भारत में अगस्त 2021 तक 1.4 से 1.6 मिलियन (14 से 16 लाख) लोगों की मौत होगी। वहीं, द लॅन्सेट में प्रकाशित लेख ने इसे लगभग 1 मिलियन (10 लाख) मौतों तक ही सीमित कर दिया। ऐसे में साफ दिखाई देता है कि द लॅन्सेट ने अपने लेख से 600000 मौतों में से 300000 मौतों को कम कर दिया है। यह दर्शाता है कि यहाँ तक कि वे भी आईएचएमई के अत्यधिक बढ़ाचढ़ा कर पेश किए गए आँकड़ों पर विश्वास नहीं करते थे। द लॅन्सेट ने जैसे ही भारत में 1 मिलियन मौतों की भविष्यवाणी की, उसके बाद तुरंत IHME ने अपने मॉडल को संशोधित किया।
इसमें दो राय नहीं है कि 1 मिलियन (10 लाख) का आँकड़ा भी एक अतिश्योक्ति ही है। इस तरह के आँकड़े विश्वसनीय नहीं हैं। IHME ने नवंबर 2020 में नियमित रूप से 1000 से अधिक कोविड-19 मौतों का अनुमान लगाया था, जबकि उस दौरान कोरोना अपने पीक पर भी नहीं था। इसने 29 जून तक की रिपोर्ट में मौतों की संख्या के संबंध में वर्तमान डेटा को बदलने की जहमत भी नहीं उठाई थी। स्पष्ट रूप से, अधिक यथार्थवादी अनुमानों को प्रतिबिंबित करने के लिए अपने मॉडल को मौलिक रूप से फिर से तैयार करने की आवश्यकता आईएचएमई के लिए प्राथमिकता नहीं थी, जो खुद को COVID-19 संबंधित रुझानों का सबसे प्रमुख भविष्यवक्ता बताने से नहीं थकता है।
अगस्त तक 50 लाख लोगों की मौत, NDTV ने भी लोगों को काफी डराने का काम किया
द लॅन्सेट और IMHE के अलावा अन्य लोगों ने भी कोरोना से भारत में होने वाली मौतों को लेकर जमकर प्रोपेगेंडा फैलाया और लोगों को डराने का काम किया। कोरोना की रफ्तार कम होने के बीच NDTV ने भी लोगों को काफी डराने का काम किया। उन्होंने महामारी विज्ञानी एरिक फीगल-डिंग (epidemiologist’ Eric Feigl-Ding) को आमंत्रित किया। एरिक ने एक चौंका देने वाला दावा किया कि अगस्त 2021 तक भारत में कोरोना से 5 मिलियन यानी 50 लाख लोगों की मौत का आँकड़ा पार हो जाएगा।
पत्रकार विष्णु सोम के साथ इंटरव्यू के दौरान, एरिक फीगल-डिंग ने दावा किया, ”भारत में कोरोना के आँकड़ें बेहद खराब हैं। मरने वालों की संख्या ठीक से नहीं बताई जा रही है। भारत में 1 अगस्त तक लाखों लोगों की मौत होना निश्चित है।”
जैसा कि सब जानते हैं एनडीटीवी के हाथों एरिक के रूप में एक तुरूप का इक्का लग गया था, जिसके बहाने इस चैनल ने देश में कोरोना वायरस के मामलों को लेकर अपनी राय व्यक्त की थी। आपको जानकर हैरानी होगी कि एरिक एक संक्रामक रोग विशेषज्ञ नहीं है। हार्वर्ड टीसी चैन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ (Harvard TC Chan School of Public Health) के अनुसार, एरिक फीगल-डिंग एक सार्वजनिक स्वास्थ्य महामारी विज्ञानी (public health epidemiologist), पोषण विशेषज्ञ (nutritionist) और स्वास्थ्य अर्थशास्त्री (health economist) हैं। वह एक संक्रामक रोग विशेषज्ञ भी नहीं है, बल्कि एक पुरानी महामारी विज्ञानी है।
5 मिलियन का आँकड़ा और भी हास्यास्पद है। फीगल-डिंग ने टिप्पणी की थी कि अप्रैल और अगस्त के बीच लगभग 2430000 लोगों की मौत हो जाएगी। वहीं, यहाँ पर वह (ndtv) 5 मिलियन यानी 50 लाख मौतों की भविष्यवाणी कर रहे थे। इतनी बड़ी संख्या में मौत का सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव दूरगामी होगा। इससे देश के बड़े हिस्से में अराजकता फैल जाएगी, लेकिन ऐसी घटनाएँ कहीं देखने को नहीं मिलीं।
कोरोन वायरस पर एक ‘स्टार एक्सपर्ट’ के रूप में एरिक का उदय किसी भी स्वास्थ्य शोधकर्ता, महामारी विज्ञानी या वैज्ञानिक के लिए अस्वाभाविक था। उन्हें कोरोना वायरस पर एक शोध पत्र पढ़ने का मौका दिया गया और उन्होंने पिछले साल जनवरी में एक महामारी के फैलने की भविष्यवाणी की। इस प्रसिद्धि के बाद, कई महामारी विज्ञानी उनकी साख पर सवाल उठाने के लिए आगे आए। नाम न छापने की शर्त पर एक महामारी विज्ञानी ने क्रॉनिकल ऑफ हायर एजुकेशन को बताया कि एरिक फीगल-डिंग की संक्रामक रोगों पर शोध शून्य है। यानी यह उनकी पृष्ठभूमि के विपरित है।
मोदी सरकार के खिलाफ दुष्प्रचार को बढ़ावा देने का प्रयास
ऐसा प्रतीत होता है कि भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को धूमिल करने के प्रयास में द लॅन्सेट, आईएचएमई (IHME) और एनडीटीवी (ndtv) ने कोविड मौतों का बढ़ा-चढ़ाकर अनुमानित आँकड़ा पेश किया है। COVID मौतों के अनुमान की सटीकता शायद ही चिंता का विषय हो, लेकिन यह सब देखकर तो केवल यही लगता है कि उन्होंने ऐसा मोदी सरकार के खिलाफ दुष्प्रचार को बढ़ावा देने के लिए किया है।