मूर्ख और दुष्ट लोग आलसी प्रमादी बनकर स्वयं में विद्यमान गुणों को भी धीरे-धीरे खो देते हैं : स्वामी विवेकानंद परिव्राजक

“गुणवान लोग अपने गुणों की रक्षा करने में पुरुषार्थ करते हैं। मूर्ख एवं दुष्ट लोग आलसी प्रमादी बनकर, स्वयं में विद्यमान गुणों को भी धीरे-धीरे खो देते हैं।”
गुण और दोष सभी मनुष्यों में होते हैं, किसी में कम, तथा किसी में अधिक। “जिस मनुष्य में गुण अधिक होते हैं, उसे हीरा रत्न भूषण पद्मविभूषण इत्यादि उपाधियों से सम्मानित किया जाता है। और जिस में दोष अधिक होते हैं उसे गधा, उल्लू, मूर्ख, कीचड़ में पड़ा हुआ इत्यादि शब्दों से अपमानित किया जाता है।”


“जो गुणवान एवं बुद्धिमान व्यक्ति होते हैं, सत्यनिष्ठा सेवा नम्रता परोपकार दया दान आदि गुणों से संपन्न होते हैं, वे इन उपाधियों से प्राप्त होने वाले सम्मान से प्रेरित होकर अपने गुणों की रक्षा करते रहते हैं।” और आगे भी नए गुणों की प्राप्ति में पुरुषार्थ करते रहते हैं, अथवा अपने जीवन के मुख्य लक्ष्य की ओर आगे बढ़ते रहते हैं। परंतु जो हठी दुराग्रही असत्यप्रिय दुष्ट और मूर्ख व्यक्ति होते हैं, वे सम्मान प्राप्त करने से प्रेरित नहीं होते, अपने मुख्य लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भी उत्साहित नहीं होते। ऐसे लोग अपने दोषों को नहीं छोड़ते। “बल्कि अपने हठ मूर्खता अदूरदर्शिता अभिमान आदि दोषों के कारण स्वयं में विद्यमान गुणों को भी प्रभावहीन बनाते रहते हैं। जैसे सूअर गंदगी में ही रहना पसंद करता है, उसे दुर्गंध ही अच्छी लगती है। वैसे ही दोषों की दुर्गंध उन्हें अच्छी लगती है।” समाज के बुद्धिमान लोग कुछ समय में उनके इन दोषों को जानकर समझकर उनसे किनारा कर लेते हैं।
यदि ऐसे हठी दुराग्रही अभिमानी लोग अपने दोषों का निवारण करने में थोड़ा भी पुरुषार्थ करें, तो उनके गुणों की रक्षा हो सकती है। वे समाज के बुद्धिमान लोगों द्वारा अपमानित होने से बच सकते हैं। महर्षि दयानंद सरस्वती जी की भाषा में, “वे हैं तो हीरे, परंतु पड़े हैं कीचड़ में।”
ईश्वर ऐसे लोगों पर कृपा करे, कि वे अपनी दुष्टता हठ दुराग्रह अभिमान एवं मूर्खता आदि दोषों को समझें और समाज की भर्त्सना निंदा आदि से बचने के लिए, “अपने कीचड़ को धोकर चमकदार हीरे बनें। अपना तथा देश दुनियां का कल्याण करें।”
हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं, कि “हे भगवन् ऐसे गुणवान तथापि दुर्भाग्यशाली लोगों को कृपा कर सन्मार्ग में प्रेरित कीजिए। वे अपनी मूर्खता दुष्टता हठ अभिमान आदि दोषों को छोड़कर महापुरुषों के मार्ग पर चलें। अपने कीचड़ को धोकर साफ करें, अपना तथा देश दुनियां का कल्याण करें।”
स्वामी विवेकानंद परिव्राजक, रोजड़, गुजरात।

 

प्रस्तुति देवेंद्र सिंह आर्य

चेयरमैन : उगता भारत

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