सेवा में
अध्यक्ष पार्लियामेंटरी स्टैंडिंग कमेटी ऑन एजुकेशन ,वूमेन, चिल्ड्रन, यूथ एंड स्पोर्ट्स
नई दिल्ली
महोदय
आपको सादर अवगत कराना चाहूंगा कि मेरे द्वारा भारतीय इतिहास पर विशेष अनुसंधान कार्य करते हुए सन 712 से लेकर 1947 तक के भारत के 1235 वर्षीय स्वाधीनता संग्राम के इतिहास पर छह खंडों में विशेष प्रकाश डाला गया है। जिसे भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय द्वारा वर्ष 2017 में सम्मानित / पुरस्कृत भी किया गया है । इसके अतिरिक्त भारतीय धर्म, संस्कृति, इतिहास और वर्तमान राजनीति पर मेरे द्वारा कुल मिलाकर 57 पुस्तकों को का लेखन कार्य किया गया है । जिससे वर्तमान पीढ़ी को विशेष लाभ मिलना निश्चित है।
आपके द्वारा ”रिफॉर्म्स इन द कंटेंट एंड डिजाइन ऑफ स्कूल टेक्सट बुक्स” के लिए मांगे गए सुझावों के संदर्भ में मेरी ओर से निम्नलिखित सुझाव सादर प्रस्तुत हैं :-
1 – हमारे स्कूलों के पाठ्यक्रम को इस भ्रांति से पूर्णतया मुक्त किया जाए कि आर्य विदेशी थे और हमारे वेद, उपनिषद, गीता, रामायण, महाभारत आदि सभी ग्रंथ काल्पनिक हैं। इसके स्थान पर यह तथ्य स्थापित किया जाना चाहिए कि आर्यों का आर्यावर्त अर्थात आज का भारत वर्ष मूल और प्राचीन देश है। वेदादि सभी धर्म ग्रंथ हमें मानवतावाद की अनुपम शिक्षा प्रदान करते हैं।
2 – भारत के संदर्भ में पश्चिमी और इस्लामिक जगत की ओर से स्थापित इस भ्रांति को भी समूल नष्ट किया जाना चाहिए कि भारत में प्राचीन काल में लोग विज्ञान से परिचित नहीं थे और वे अंधविश्वासी पाखंडी लोग थे। इसके स्थान पर यह तथ्य स्थापित किया जाना चाहिए कि सत्य सनातन वैदिक धर्म पूर्णतया वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखने वाला धर्म है और संसार के जितने भर भी आविष्कार हुए हैं उन सबके आविष्कारक हमारे ऋषि लोग ही थे।
3 – जो लोग हमारे बारे में यह कहते हैं कि भारत के लोग इतिहास जैसी पुस्तक को लिखने के प्रति सावधान नहीं थे, उनके इस झूठ का पर्दाफाश करते हुए यह तथ्य स्थापित किया जाना चाहिए कि भारत के लोगों ने इतिहास को संजोने और संवारने के लिए रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथ इस शैली में लिखे कि लोग उनसे युग – युगों तक शिक्षा ग्रहण करते रहेंगे। इसके साथ ही पुराण आदि ग्रंथों की रचना भी प्राचीन इतिहास को संजोने और संवारने के दृष्टिकोण से ही की गई।
4 – भारत की सत्य सनातन वैदिक संस्कृति को ही सर्वोपरि और सर्वोच्च मानते हुए आजादी के बाद विकसित की गई तथाकथित ‘गंगा जमुनी संस्कृति’ की भ्रान्त धारणा को भी समूल नष्ट किया जाए और उसकी परछाई से वर्तमान पाठ्यक्रम को मुक्त किया जाए। यह भी स्पष्ट किया जाना चाहिए कि इस ‘गंगा जमुनी संस्कृति’ ने भारत के ऋषियों के बहुत से मानवीय मूल्यों को नष्ट कर दिया है। जैसे लोगों का एक दूसरे को परस्पर के वार्तालाप तक में गाली देना इसी गंगा जमुनी संस्कृति का परिणाम है, हिंदू का विरोध करना और भारत की संस्कृति को उपेक्षित
करना भी इसी संस्कृति की देन है। वास्तव में ‘गंगा जमुनी संस्कृति’ भारत को मिटाने के लिए काम कर रही है।
5 – ताजमहल को तेजोमहालय मंदिर घोषित किया जाए। प्रमाणों के आधार पर दिल्ली के लाल किले को भी किसी मुस्लिम बादशाह द्वारा बनवाया जाना न दिखाकर उसके वास्तविक निर्माता राजा अनंगपाल को इसका श्रेय दिया जाना चाहिए। इसके साथ ही कुतुबमीनार को भी राजा विक्रमादित्य के शासनकाल में बनाए गए एक अनुसंधान केंद्र अर्थात वेधशाला के रूप में सम्मान दिया जाना चाहिए और इसके वास्तविक निर्माता खगोलविद वराह मिहिर को इतिहास में विशेष सम्मान दिया जाना चाहिए। इसी प्रकार देश में उपेक्षित पड़े हजारों ऐतिहासिक स्थलों, दुर्गों, भवनों को भी विशेष रूप से महिमामंडित किया जाना चाहिए, जो किसी न किसी हिंदू राजा के द्वारा किसी न किसी काल विशेष में बनाए गए थे।
6 — भारत वर्ष के इतिहास को रामायण काल और संभव हो तो उदसे भी पहले से लिखा जाना चाहिए। राजा मांधाता , श्री राम, मनु महाराज ,अश्वपति, युधिष्ठिर, श्रीकृष्ण जी जैसे अनेकों राजाओं के जीवन के प्रशंसनीय और अनुकरणीय प्रसंगों को पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया जाना चाहिए। महामति चाणक्य, विदुर, भीष्म पितामह जैसे महापुरुषों की आदर्श जीवनी को भी पाठ्यक्रम में स्थान दिया जाना चाहिए। इस विषय में अनेकों ऋषि, साहित्यकार, कवि, लेखक और विद्वानों के जीवन वृतांत सम्मिलित किए जा सकते हैं।
7 – पाठ्यक्रम में ‘नैतिक शिक्षा’ और ‘हमारे पूर्वज’ जैसी पुस्तकों को स्थान दिया जाना चाहिए। जिनमें भारत और भारतीयता को मजबूत करने वाले उन सभी महापुरुषों को स्थान दिया जाना चाहिए जो हमारे गौरवशाली इतिहास की महान विरासत के एक अंग रहे हैं। इसके साथ ही नैतिक शिक्षा में हमारे वेदादि धर्म शास्त्रों के मंत्रों / श्लोकों आदि को स्थान दिया जाकर बच्चों को अपनी प्राचीन गौरवशाली विरासत के साथ जोड़ने का प्रयास किया जाना चाहिए।
8 – भारतीय स्वाधीनता संग्राम पर जिस तथाकथित गांधीवाद की छाया पड़ी हुई है, उसे हटाकर भारत के क्रांतिकारी आंदोलन के इतिहास को स्कूलों के पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया जाना चाहिए। अपने उन सभी क्रांतिकारी वीर – वीरांगनाओं को इसमें स्थान दिया जाना चाहिए जिन्होंने सन 712 में मोहम्मद बिन कासिम के आक्रमण से लेकर 1947 तक किसी न किसी प्रकार से या तो अपना बलिदान दिया या स्वाधीनता संग्राम की ज्योति को जलाए रखने में अपना कोई भी योगदान किया। इतिहास पर हिंदू समाज के कायर होने की परछाई को भी मिटाने का प्रयास किया जाना चाहिए और यह स्पष्ट करना चाहिए कि विश्व में वैदिक हिंदू धर्म के मानने वाले लोग ही ऐसे हैं जिन्होंने अपनी स्वाधीनता को बचाए रखने के लिए 1235 वर्ष तक संघर्ष किया।
9 — भारतवर्ष में इस्लामिक आक्रमणकारियों ने यदि यहां के लोगों का धर्मांतरण कर अपनी संख्या बढ़ाने का प्रयास किया तो भारत के लोगों ने उनके इस प्रकार के कार्य का उचित प्रतिशोध और प्रतिरोध भी किया। इस तथ्य को स्पष्ट करने के लिए बप्पा रावल, नागभट्ट प्रथम, नागभट्ट द्वीतीय, सम्राट मिहिर भोज और उनके समकालीन अन्य अनेकों राजाओं / शासकों के उन प्रयासों को भी वंदनीय मानते हुए इतिहास की पुस्तकों में स्थान दिया जाना चाहिए जिन्होंने अपने अपने समय पर ‘घर वापसी’ और ‘शुद्धि आंदोलन’ के कार्य किए। इनमें राजा लूणकरण भाटी जैसलमेर और दुल्ला भट्टी जैसे लोगों के सार्थक प्रयासों को भी सम्मिलित किया जा सकता है।
10 – भारतीय इतिहास को गति देने वाले उन हिंदू वीर योद्धाओं को भी हमें सम्मान देना चाहिए जिन्होंने आज के पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान ,इराक, अरब , चीन, तिब्बत, बांग्लादेश नेपाल, लंका, बर्मा, जावा, सुमात्रा, बोर्निओ, कंबोडिया इंडोनेशिया आदि उन देशों में रहते हुए भारतीय संस्कृति और धर्म की रक्षा करते हुए और इनके प्रचार प्रसार में सहयोग प्रदान करते हुए महान कार्य किए, जो कभी वृहत्तर भारत के भाग हुआ करते थे।
11 – दिल्ली के पुराने किले को महाभारत कालीन किला होने के कारण सबसे पुराना किला मानकर इसके किले के महाभारत कालीन भव्य भवनों को फिर से स्थापित किया जाए और यहां पर महाभारत कालीन चित्रों को झांकियों के माध्यम से प्रदर्शित किए जाने की व्यवस्था की जानी चाहिए। इसी किले में आकर हेमचंद्र विक्रमादित्य ने भारत के खोए हुए वैभव को फिर से स्थापित कर अपना राजतिलक कराया था, उस ऐतिहासिक दृश्य को भी यहां पर झांकियों के माध्यम से स्थापित किया जाना चाहिए।
12 – चित्तौड़गढ़ के किले को विशेष रूप से गरिमा प्रदान की जानी चाहिए। इस किले में महाराणा प्रताप की आदमकद विशाल मूर्ति चेतक के साथ स्थापित की जानी चाहिए। इससे जुड़े हुए उन सभी इतिहास पुरुषों को इसमें सम्मान प्रदान किया जाना चाहिए जिन की जीवन गाथा इस किले से किसी न किसी प्रकार जुड़ी रही है। इनमें जहां गूजरी माता पन्ना धाय को स्थान मिलना चाहिए वहीं जयमल फत्ता रानी कर्मवती ,गोरा – बादल आदि को भी सम्मान पूर्ण स्थान प्राप्त होना चाहिए।
आशा है आप उपरोक्त बिंदुओं पर ध्यान देकर कृतार्थ करेंगे।
भवदीय
- डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक- ‘उगता भारत’
राष्ट्रीय अध्यक्ष : भारतीय इतिहास पुनर्लेखन समिति
राष्ट्रीय महामंत्री : अंतर्राष्ट्रीय आर्य विद्यापीठ रोहिणी नई दिल्ली
राष्ट्रीय अध्यक्ष : राष्ट्रीय प्रेस महासंघ
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