राष्ट्र नायक राजा दाहिर सेन और तत्कालीन भारत -3
इस्लाम ने किया देशों का धर्मांतरण
मानवता के विरुद्ध किए गए अपने अत्याचारों के बल पर जिस प्रकार इराक और तुर्की में इस्लाम को सफलता मिली वैसे ही विश्व के अन्य देशों या प्रान्तों में भी उसे आशातीत सफलता मिली ।पुलस्त्य ऋषि के प्रदेश पेलेस्टाइन (फिलिस्तीन) में भी मजहब के नाम पर किए गए अत्याचारों के आधार पर इस्लाम ने अच्छी सफलता प्राप्त की। फिलिस्तीन के साथ-साथ ईसाई बने सूर्यवंशी क्षत्रियों का प्रदेश सीरिया, लेबनान, जॉर्डन आदि देशों को 634 से 650 ई. के बीच मुसलमान बना दिया गया। यहाँ पर इस्लाम के मानने वाले आक्रमणकारियों ने लोगों पर मनमाने अत्याचार किए ।
कहने का अभिप्राय है कि मात्र 16 वर्ष में ही इन देशों का इस्लामीकरण कर दिया गया। इस्लाम के मानने वालों ने ऐसा ही कार्य विश्व के अन्य देशों में भी किया। जहाँ उन्हें कोई भारतवर्ष जैसी कोई बड़ी चुनौती नहीं मिली। ये लोग बड़ी सहजता से लोगों को मारते -काटते ,लूटते और उनके मूल मजहब से इस्लाम स्वीकार कराते रहे, उनकी महिलाओं के साथ मनमाने अत्याचार करते रहे।
अत्याचारों के इस पीड़ादायक इतिहास पर यदि दृष्टिपात करते हैं तो पता चलता है कि यद्यपि इस्लाम वेद के एकेश्वरवाद की स्थापना के लिए किया गया आन्दोलन था, परंतु वह दिशाहीन हो जाने पर संसार के लिए एक आफत बन गया। माना कि संसार के लोग उस समय अज्ञान और अविद्या के अंधकार में फंसे हुए थे ,परन्तु रक्तपात, हिंसा, मारकाट, लूट, डकैती व बलात्कार के इस नए वैश्विक परिवेश से तो अज्ञान और अविद्या के अंधकार में भटकते रहने वाले समाज के लोग ही अच्छे थे।
इस्लाम ने लोगों को एक नई व्यवस्था देनी चाही थी, परन्तु वह व्यवस्था के स्थान पर अव्यवस्था देने वाला मजहब बन गया। यह अव्यवस्था भी ऐसी जो पूर्णतया अराजक तत्वों के हाथों में थी। जब कोई चुनौती सामने नहीं होती है तो व्यक्ति का अहंकार सिर चढ़कर बोलता है और उसे यह भ्रान्ति हो जाया करती है कि वह जो कुछ भी कर रहा है, वह किसी अदृश्य सत्ता के आदेश से कर रहा है, जो उससे ऐसे पवित्र कार्य को करवा रही है।
भारत ने तोड़ी इस्लाम की भ्रान्ति
भारत में जब इस्लाम का प्रवेश हुआ तो राजा दाहिर सेन के रूप में अनेकों वीर योद्धाओं ने उनका वीरता के साथ सामना किया और इस्लाम को मानने वाले लोगों की इस भ्रान्ति को तोड़ दिया कि वह जो कुछ भी कर रहे हैं, वह बहुत पवित्र कार्य है।
भारतीय इतिहास के महान योद्धाओं के सम्बन्ध में इतिहासकार पी0 एन0 ओक का यह कथन पूर्णतया सत्य है कि “यूरेशिया के महान वैदिक आर्य संस्कृति के लोग “अहिंसा परमोधर्म:” की मूर्खतापूर्ण माला जपते हुए “हिंसा लूट परमोधर्म:” की संस्कृति में समाते जा रहे थे, पर अहिंसा की बीमारी से ग्रस्त भारतवर्ष में तब भी खड्गधारी सनातनी योद्धाओं की कमी नहीं थी।
खड़गधारी सनातनी योद्धा रहे विशेष ।
संस्कृति रक्षक बन गए और बचाया देश।।
ये खड़गधारी सनातनी योद्धा ही वे लोग थे जिनका प्रतिनिधित्व अपने काल में राजा दाहिर सेन कर रहे थे। उनके नेतृत्व में उस समय हजारों लाखों की संख्या में लोग घरों से बाहर निकले और देश की रक्षा के लिए अपने आपको उपस्थित कर दिया। संस्कृति और धर्म के प्रति उन योद्धाओं का यह समर्पण हमारे लिए वरदान सिद्ध हुआ। विशेष रूप से तब जबकि चारों ओर अन्य देशों की सभ्यताओं के किले लुटेरे इस्लामिक सैन्यदलों की आँधी के सामने धड़ाधड़ गिर रहे थे। इस्लाम के आक्रमणकारियों के लिए एक नहीं अनेकों अवसर ऐसे आए जब भारत के वीर योद्धाओं ने उनकी सेना के एक – एक सैनिक को यहां गाजर मूली की तरह काट कर समाप्त कर दिया। वर्तमान इतिहास में हमारे वीर योद्धाओं के ऐसे बलिदानी पर्वों का उल्लेख जानबूझकर नहीं किया गया है।
यह केवल भारत के वीर योद्धा ही थे जिन्होंने पूरी की पूरी सेना के सफाए का समाचार स्वदेश में जाकर देने के लिए भी शत्रु का कोई सैनिक छोड़ा नहीं। इस्लाम के आक्रमणों के विषय में हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि भारत में ही इन आक्रमणकारियों को महिलाओं की वीरता का भी सामना करना पड़ा। भारत से अलग शायद ही कोई देश रहा हो जहां इस्लाम का सामना वहां की महिलाओं ने भी किया हो । जौहर रचाने वाली परम्परा तो निश्चित रूप से इन मुसलमानों को देखने के लिए भारत में ही मिली थी। जब 636 ई0 में खलीफा उमर ने भारत के ठाणे नामक स्थान पर आक्रमण कराया तो वहाँ से उसका एक भी सैनिक जीवित नहीं लौटा था।
जब इन लुटेरों ने राजस्थान के भरुच अर्थात भृगुकच्छ पर आक्रमण किया तो वहाँ भी इनकी स्थिति ऐसी ही बनी। वहाँ के हिन्दू वीर योद्धाओं ने युद्धभूमि में अपनी वीरता की अनुपम मिसाल कायम की थी। जिसमें शत्रु सेना के अनेकों सैनिकों को प्राण गंवाने पड़े थे।
माना कि 712 ई0 में मोहम्मद बिन कासिम द्वारा किए गए हमले के समय विदेशी आक्रमणकारी को तात्कालिक आधार पर कुछ सफलता प्राप्त हुई थी, पर इसका अभिप्राय यह नहीं है कि इसके पूर्व के उन सारे युद्धों को भारतीय इतिहास से निकाल दिया जाए जिनमें भारतीय योद्धाओं ने अपनी वीरता की धाक जमाई थी और विदेशी आक्रमणकारियों के भीतर ऐसा भय उत्पन्न कर दिया था कि उन्हें रात को सोते हुए भी भारत की खड्ग के चलने की आवाज सुनाई देती थी। जिसे सुनकर ये मुस्लिम आक्रमणकारी चारपाई पर सोते सोते हो उछल पड़ते थे। भारत का शौर्य उनसे रात की नींद और दिन का चैन छीन चुका था।
सेनापति हाकिम को किया गया परास्त
उस्मान ने अपने खलीफा काल में अपने सेनापति हाकिम को भारतवर्ष पर आक्रमण करने के लिए भेजा था। हाकिम ने भारत पर जिस आशा और अपेक्षा के साथ आक्रमण किया था उसकी वह आशा और अपेक्षा उस समय धूमिल हो गई थी जब यहाँ के वीरों ने उसे अपनी सेना से भी खाली हाथ लौटने के लिए मजबूर कर दिया गया था। हाकिम चला था कि भारत को लूटकर अपार सम्पदा का स्वामी होकर स्वदेश लौटूँगा, पर जब वह भारत पहुँचा तो कुछ देर में ही उसे पता चल गया कि यहाँ लुटेरे ही उल्टे लूट लिए जाते हैं अर्थात भारत के वीर योद्धा अपने शौर्य से लुटेरों के सैन्य दल को समाप्त कर उन्हें पंखविहीन कर देते हैं या उन्हें सीधे दोजख की आग में धकेल देते हैं।
जाना पड़ा अपने वतन हाकिम को उल्टे पैर ही।
लूटने चला था हिंद को अब मांग रहा था खैर ही।। देख शौर्य हिंद का , था कहने लगा हाकिम यह –
कभी ना आऊंगा यहाँ और न रखूंगा वैर ही।।
भारत के वीर योद्धा की वीरता को मापकर उसे यह भी आभास हो गया कि भारत के लोग किसी के धन को लूटने में तो विश्वास नहीं रखते, पर हर किसी के घमंड को तोड़ने और उसके दुस्साहस के भ्रम को मिटाने की लूट की कला में बहुत अधिक कुशल हैं।
वैसे भी भारत की नीति प्राचीन काल से यही रही है कि पहले किसी को छेड़ो नहीं और यदि कोई दूसरा छेड़ता है तो फिर उसे छोड़ो नहीं।
हमारे जिन वीर क्षत्रिय योद्धाओं ने इन विदेशी आक्रमणकारियों का जब-जब इस प्रकार घमंड तोड़ा और उनके अहंकार को लूटा , तब – तब ही भारत ने एक विशेष और गौरवपूर्ण इतिहास रचा । जिस पर इस समय निश्चय ही काम किए जाने की आवश्यकता है। हाकिम नाम के इस विदेशी आक्रमणकारी ने यद्यपि भारत की ओर पैर करके भी न सोने का संकल्प लिया था ,परंतु इन मुस्लिम आक्रमणकारियों की एक विशेषता रही है कि जब यह भारत के वीर योद्धा के हाथों मार खाते थे तो बड़ी-बड़ी कसमें भी खाते थे कि अब कभी हिंदुस्तान की ओर लौटकर नहीं देखूंगा । ये हमारे राजाओं को यह वचन ही देते थे कि इस बार मुझे क्षमा कर दो, अगली बार कभी इधर नहीं आऊंगा। पर जैसे ही इन्हें शक्ति संचय करने का थोड़ा सा अवसर उपलब्ध होता था तो यह वचन भंग कर भारत की ओर चल देते थे। हाकिम ने भी यही किया।
वचन भंग करना और काफ़िर को किसी भी प्रकार के छल कपट से मार डालना, मुस्लिमों को अपने दीन की घुट्टी में पिलाया जाता है।
जब यह मुस्लिम आक्रमणकारी हाकिम भारत पर दोबारा चढ़ाई करके आया तो भारत के वीरों ने इस बार भी उसे कड़ा सबक सिखाया था। इतना ही नहीं, दूसरी बार जब इसने आक्रमण किया तो इस बार तो वह स्वयं भी जीवित अपने देश नहीं लौट सका था अर्थात भारत के वीर योद्धाओं ने भारत भूमि पर ही उसका प्राणान्त कर दिया था। इस प्रकार इस विदेशी राक्षस आक्रमणकारी को अपने किए का सही दण्ड प्राप्त हो गया। अब वह ऐसे स्थान पर पहुँचा दिया गया था जहाँ से वह कभी लौटकर नहीं आने वाला था।
जब सिनान को मांगनी पड़ी प्राणों की भीख
‘काफिरों’ के देश भारत को इस्लामिक राज्य में परिवर्तित करना इस्लामिक आक्रमणकारियों का सबसे बड़ा लक्ष्य था । अपने इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए मुहम्मद सिनान नाम का अरब आक्रमणकारी भी भारत आया था। इस राक्षस के लिए अल बिलादुरी ने लिखा है, “यह बहुत अच्छा, सर्वगुण सम्पन्न था। यह पहला आदमी था जिसने अपने सभी सैनिकों को अपनी पत्नियों से तलाक दिला दिया और उन्हें यह पूर्ण विश्वास दिलाया था कि भारतीय स्त्रियों को लूटकर खूब मजे करायेंगे।”
दिन में सपने देखना अलग चीज है और वास्तव में सपनों के बाग की सैर करना अलग चीज है । इस राक्षस आक्रमणकारी ने भारत को लेकर चाहे जैसे सपने देखे हों पर जब उसका वास्तविकता के धरातल से परिचय हुआ तो उसे भी भयंकर निराशा ही हाथ लगी। जब इसका सामना भारतवर्ष के देशभक्त वीर योद्धाओं से हुआ तो उसे शीघ्र ही पता चल गया कि भारतीयों की महिलाओं को लूटना उतना सरल नहीं है, जितना वह मान कर आया था। उसे यह भी पता चल गया कि भारतवासी चरित्र में कितने ऊंचे हैं ? और वह अपनी बहन बेटियों के सम्मान के लिए अपने प्राणों को गंवाना कोई बड़ी बात नहीं मानते हैं। इसके लिए भारतवर्ष के वीर सैनिकों की छातियों की वज्र दीवार को तोड़ना हर किसी के वश की बात नहीं है। जितने लुटेरे, नीच ,अधर्मी और पातकी लोगों को यह विदेशी आक्रमणकारी अपने साथ लेकर आया था उन सबको भारत के योद्धाओं ने सीधे ‘जन्नत की हूरों’ के पास भेज दिया। सभी कुत्ते की मौत मारे गए।
नरपिशाचों को मार कर भेजा हूरों पास।
सिनान भी छोड़ा नहीं जो शत्रु था खास।।
स्वयं सिनान को अपने प्राणों की रक्षा के लिए भारतीय सैनिकों के सामने से भागना पड़ा, अन्यथा वह भी मौत की नींद सुला दिया गया होता। इतिहास का यह एक स्वर्णिम पृष्ठ है कि इसके पश्चात यह राक्षस आक्रमण के नाम पर भारत की ओर कभी देखने का साहस भी नहीं कर पाया था। उसे यदि किसी ने फिर से भारत पर आक्रमण करने के लिए कहा भी तो उसने कान पकड़कर यह कहना आरम्भ कर दिया था कि जब तक जीवित हूँ तब तक भारत की ओर नहीं जाऊंगा।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत एवं
राष्ट्रीय अध्यक्ष : भारतीय इतिहास पुनर्लेखन समिति
मुख्य संपादक, उगता भारत