जब चौधरीचरण सिंह ने आर्यसमाज के सिद्धान्त की लाज रखो घटना उस समय की है जब भारत के प्रसिद्ध उद्योगपति स्वानामधन्य घनश्याम दास बिड़ला का देहावसान हो गया था और दिल्ली नाग एक परिषद् ने उनकी स्मृति में एक शोक सभा का आयोजन पिक्की हाल , नई दिल्ली में किया था।
इस अवसर पर कुछ वक्ता थे सर्वजी अटल बिहारी वाजपेयी , डा० कर्णसिंह , कंवल लाल गुप्त , हेमवती नन्दन बहुगुणा तथा बलराज मधोक। संचालक महोदय ने सभी वक्ताओं से एक – एक करके सभी वक्ताओं से कहा कि वे स्वर्गीय बिड़ला जी की मूर्ति पर माल्यार्पण करें , सभी ने एक – एक करके उनकी मूर्ति पर माल्यार्पण किया।
जब चौधरी चरण सिंह से माल्यार्पण हेतु कहा गया तो उन्होंने मूर्ति पर माल्यार्पण नहीं किया। हाल में बैठे हुए कुछ श्रोतागणों ने कहा कि देखो ये चौधरी भी कितना घमण्डी है। मैं भी इन्हीं श्रोताओं के बीच में बैठा हुआ था और मैं चौधरी साहब के प्रति ऐसे विचार नहीं सुन सका। मैंने उन व्यक्तियों से कहा कि चौधरी साहब ने घमण्ड के कारण नहीं , बल्कि आर्य विचारधारा से सम्बन्धित होने के कारण बिड़ला जी की मूर्ति पर माल्यार्पण नहीं किया। आर्य समाज इसे वेद विरुद्ध मानता है। जब कार्यक्रम समाप्त हुआ और सभी नेतागण हाल से बाहर आ गये तब मैंने चुप चाप एक स्लिप पर यह लिखा- ” आदरणीय चौधरी साहब , मैं समस्त आर्य जनों की ओर से आपका अभिनन्दन करता हूं क्योंकि आपने आर्य समाज के सिद्धान्त की रक्षा की है। ” यह लिख कर वह चिट मैंने चुपचाप चौधरी साहब को देकर एक किनारे खड़ा हो गया। चौधरी साहब ने उस चिट को पढ़ कर खड़े हुए लोगों से पूछा कि मामचन्द रिवारिया कौन से हैं ? मेरा नाम सुन कर श्री बलराज मधोक ने कहा कि मामचन्द रिवारिया तो ये खड़े हैं।
तब चौधरी साहब ने कहा कि इतनी बड़ी भीड़ में एक ने तो मेरे आर्य होने की प्रशंसा की। उन्होंने मेरा धन्यवाद किया और उस चिट को अपनी जेब में रख लिया। आज भी मैं उस घटना का याद कर रोमांचित हो उठता हूं। सच्चा स्वामी दयानन्द का भक्त वहीं जो किसी भी कीमत पर सिद्धान्तों से समझौता नहीं करता है। संसार में उन्हीं महापुरुषों की परमगाथा को गाया जाता है जो सिद्धान्तों पर चट्टान की तरह अडिग रहते हैं।
-मामचन्द्र रिवारिया
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