डॉ राकेश कुमार आर्य की आगामी पुस्तक ‘राष्ट्र नायक राजा दाहिर सेन’ की उगता भारत के चेयरमैन श्री देवेंद्र सिंह आर्य जी द्वारा लिखित समीक्षा

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डॉ राकेश कुमार आर्य ,मुख्य संपादक उगता भारत ,प्रमुख इतिहासकार के द्वारा राजा दाहिर सेन के गौरवमई इतिहास के विषय में उनके पराक्रम और शौर्य की गाथा को उद्घाटित करते हुए देश के समक्ष इतिहास के सत्य ,तथ्य को लाने का भागीरथ प्रयास आगामी कालजई अनूठी ऐतिहासिक पुस्तक में किया जा रहा है।
कुछ इस प्रकार की होगी डॉ राकेश कुमार आर्य की आगामी पुस्तक।

 

 

भारतवर्ष के पश्चिम में सिंध प्रांत होता था।
आपको स्मरण होगा कि वर्ष 605 ( कहीं-कहीं 610 भी आता है) में इस्लाम की स्थापना हुई थी।भारतवर्ष पर पहला आक्रमण इस्लाम जगत का सन 638 में केरल पर हुआ था।
638 ईस्वी से 711 तक के 72_ 73 वर्ष के कालखंड में 9 खलीफाओं, जो अरब से संबंधित थे ,ने 15 आक्रमण भारतवर्ष पर किए। यद्यपि यह सारे आक्रमण बहुत ही कम प्रभाव रखने वाले वह अपेक्षाकृत कम क्षति पहुंचाने वाले थे। परंतु एक बात निश्चित रूप से कही जा सकती है कि भारत के सुदृढ़ किले पर विदेशी आक्रमणकारियों की गिद्ध दृष्टि बड़ी गहराई से तब तक जम चुकी थी। वही गिद्ध दृष्टि आज भी भारत वर्ष पर जमी हुई है। आज भी राष्ट्र घाती और गद्दार पहले से ज्यादा विद्यमान हैं।
इसी गिद्ध दृष्टि के चलते ही भारत पर पहला और प्रमुख अरब आक्रमण 711 ईसवी में मोहम्मद बिन कासिम के नेतृत्व में हुआ। मोहम्मद बिन कासिम इस्लाम के प्रारंभिक काल में खिलाफत का एक अरब सिपहसालार था। उसने 17 वर्ष की आयु में भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिमी क्षेत्र पर हमला बोला।
सिंध नदी के साथ स्थित सिंध प्रांत और पंजाब के क्षेत्रों पर अधिपत्य करना चाहा। यह अभियान भारतीय उपमहाद्वीप में आने वाले प्रारंभ प्रथम विशेष घटनाक्रम का है। उस समय भारत के इस महत्वपूर्ण प्रांत पर शूरवीर, पराक्रमी _शासक, राजा दाहिर का शासन था ।राजा दाहिर सेन सिंध के सिंधी ब्राह्मण सेन राजवंश के अंतिम राजा थे। जिनका जन्म 663 ईसवी में सिंध में हुआ था। जिसकी दो पुत्री प्रमिला वा उर्मिला थी। उनके नाम कई इतिहासकार उर्मिला को सूर्य देवी भी कहते हैं ।तथा अन्य नामों से भी पुकारते हैं, तथा उनका एक पुत्र था जय सिंह सेन।
यह राजा दाहिर सेन मूलतः कश्मीरी पंडित थे । पाक में 8 जुलाई 2019 को महाराजा रणजीत सिंह की प्रतिमा लगाने के बाद राजा दाहिर सेन को सरकारी नायक करार दिया गया है। राजा दाहिर सेन अपने धर्म संस्कृति और देश से अत्यधिक प्रेम करते थे। यही कारण है कि उनकी मृत्यु के सदियों पश्चात भी उनके शौर्य और पराक्रम की वीर गाथा लोग आज तक भी गाते हैं ।उन की शौर्य गाथा में निम्न गीत गाया जाता है ।
गीत सिंधी भाषा में लिखा गया है ।
परंतु उसका हिंदी अनुवाद निम्न प्रकार है ।
जय हो जय हो सिंधु नरेश दाहिर तुम्हारी जय हो।
भारत की मिट्टी के रखवाले
जय हो जय हो लाडो रानी महा गौरवमई
जय वीर पुत्रियां उर्मिल पर्मिल
जय हिंदू वीर बप्पा रावल
लौटा के लाए स्वाभिमान
जय हिंदू देश महान।

राजा दाहिर सेन की अर्धांगिनी लाडो रानी भी अद्भुत पराक्रम और साहस की प्रतिमा थी ।
उस वीरांगना के बारे में भी उस समय के समाज में लोगों में बहुत अधिक श्रद्धा भाव था। जिसने राजा दाहिर की शहादत के बाद स्वयं तलवार संभाल ली थी जब रानी ने अपने पति के पश्चात शत्रु दल को काटना आरंभ किया तो उनके इस महान कार्य की दोनों वीरांगना बिटिया भी उनका साथ दे रही थी। दृश्य बहुत ही उत्तेजक और रोमांचकारी हो उठा था
लड़ते-लड़ते रानी ने वीरगति प्राप्त की थी ।
राजा दाहिर की दोनों पुत्रियों ने मोहम्मद बिन कासिम के हमले के पूर्व अनुमान के आधार पर पूरे देश में घूम कर के भारत की रक्षा करने के लिए तत्कालीन राजा रजवाड़ों को एक झंडे के नीचे राष्ट्र रक्षा के लिए एकत्र करने का महानतम प्रशंसनीय कार्य किया।
रानी के पश्चात राजा दाहिर की दोनों बेटियों को खलीफा की सेवा में भेज दिया गया था परंतु उन दोनों बहादुर और देशभक्त बेटियों ने भारत के और अपने पिता के अपमान का बदला लेने का मन बना लिया था फलस्वरूप बड़ी चतुराई से और बौद्धिक कौशल का परिचय देते हुए उन्होंने खलीफा से अपने पिता के अपमान का बदला लिया और मोहम्मद बिन कासिम का उसी के खलीफा के द्वारा कत्ल कराने में सफल रही देश के पराक्रम की प्रतीक बनी इन बेटियों पर सारे भारत को आज तक गर्व है ।आज हमारे राजा दाहिर ,उनकी लाडो रानी, और दोनों बेटियों का स्मृति स्थल और उनके कर्म स्थल की गौरव गाथा गाने वाला सिंध पाकिस्तान में स्थित है।
विशेष ऐतिहासिक संक्षिप्त जानकारियां।

कश्मीर से कुछ ब्राह्मण वंश के लोग सिंध में आकर के आबाद हो गए थे जो बहुत ही सुशिक्षित एवं कुशाग्र बुद्धि वाले थे।
सिंध में 184 वर्ष से जो राजघराना राज कर रहा था धीरे-धीरे उस राजघराने पर अपना प्रभुत्व एवं अधिकार इन कश्मीरी पंडितों ने कर लिया था । तथा इस राजघराने को नष्ट करके अपनी सत्ता सिंध में कश्मीरियों ने स्थापित की थी।
इनमें सबसे पहले जो राजा हुए उनका नाम चच था। इसलिए इनके राजवंश की पुस्तक को “चचनामा” कहते हैं।
इन्हीं के वंशज आठवीं सदी के प्रारंभ में राजा दाहिर सेन हुए।
राजा दाहिर सेन का शासन पश्चिम में मकरान तक, दक्षिण में अरब सागर व गुजरात तक, पूर्व में मालवा और राजपूताने तक, उत्तर में मुल्तान से दक्षिणी पंजाब तक फैला हुआ था।
सिंघ से अन्य देशों के लिए जमीन और समुद्र से व्यापार होता था। सिंध व्यापारिक केंद्र प्राचीन काल से रहा है। सिंध का व्यापारिक महत्व इतिहास में किसी से छिपा नहीं है।
मुमताज पठान तारीख सिंध में लिखते हैं कि राजा दाहिर न्याय प्रिय थे ।उनकी तीन प्रकार की कचहरी लगा करती थी ।जिन्हें कोलास, सरपनास, गनास कहा जाता था, जो बड़े वाद विवाद होते थे वही राजा के पास पहुंचते थे । राजा दाहिर को सुप्रीम कोर्ट जैसी सर्वोच्च शक्तियां प्राप्त थी।
आठवीं सदी में बगदाद का गवर्नर हुज्जाज बिन युसूफ हुआ करता था। उनका एक भतीजा था जो उन्होंने सिपहसालार बनाया। जिसका नाम था मोहम्मद बिन कासिम।
इसी मोहम्मद बिन कासिम ने कश्मीरी पंडित राजा दाहिर सेन को सिंध पर हमला करके उस पर अपना आधिपत्य किया था।
सिंध में अरब इतिहास की पहले राजा चच के नाम पर एक किताब ,”चचनामा या फतहनामा “लिखी गई।
जिसका अनुवाद अली कोफी ने किया।
जो लिखते हैं कि एक बार श्री लंका के राजा ने बगदाद के गवर्नर यूसुफ के लिए कुछ भेंट भेजी थी जो ,एक बंदरगाह के करीब लूट लिए गए। इन समुद्री जहाजों में भेंट के रूप में औरतें भी थी। उनमें से कुछ लोग फरार होकर हुज्जाज बिन यूसुफ के पास अरब में पहुंचे तथा उन्होंने यूसुफ को बताया कि ऐसी औरतें आपको मदद के लिए बुला रही हैं।
इतिहासकारों के अनुसार युसूफ गवर्नर ने राजा दाहिर को पत्र लिखकर आदेश जारी किया की औरतें और लूटे गए सामान को वापस किया जाए ।लेकिन राजा दाहिर ने यह कहते हुए इंकार कर दिया कि लूटमार उनके इलाके में नहीं हुई है।
उसी समय ओमान में माविया बिन हारिस अलाफी और उसके भाई मोहम्मद बिन हारी अलाफी ने खलीफा के विरुद्ध क्रांति का बिगुल बजा दिया। जिसमें अमीर सईद मारा गया ।
चचनामा के अनुसार मोहम्मद अलाफ़ी ने अपने साथियों के साथ मकरान में शरण ले ली जहां राजा दाहिर सेन का राज्य था।
बगदाद के गवर्नर ने कई पत्र लिखकर आंदोलनकारियों को उन्हें सौंप देने के लिए कहा मगर शरणार्थियों की सहायता करने के धर्म को निभाते हुए राजा दाहिर सेन ने उनको वापस करने से इंकार कर दिया ।हमला करने की यह दूसरा कारण भी बताया जाता है।
बौद्धों ने किस प्रकार गद्दारी की देश के साथ देखिए।
राजा दाहिर जिस समय सिंहासन पर आरूढ़ हुए उससे पहले उनके भाई चंद्रसेन राज करते थे। जो बौद्ध मत के अनुयाई थे।
बौद्ध मत के अनुयायियों के प्रति राजा दाहिर सेन का दृष्टिकोण वह नहीं था जो राजा चंद्रसेन का था। इसलिए बौद्ध भिक्षु राजा दाहिर सेन से नाराज हो गए थे ।जब मोहम्मद बिन कासिम ने सिंध पर आक्रमण किया तो निरोन कोट और शिवस्थान में मोहम्मद बिन कासिम की सेना का स्वागत इन्हीं बौद्ध भिक्षुओं द्वारा किया गया था।

राजा दाहिर ने की अपनी बहन के साथ शादी।

चचनामा में इतिहासकारों का कहना है कि राजा दाहिर ने ज्योतिषियों से पूछा कि वह अपनी बहन की शादी करना चाहता है ज्योतिषियों ने बताया कि जो इस लड़की से शादी करेगा वह राजा बनेगा। इस पर राजा दाहिर सेन ने अपनी बहन से शादी की थी। परंतु यहां यह उल्लेख करना भी आवश्यक समझा जाता है कि शादी की सभी रस्म पूरी की गई ।परंतु शारीरिक संबंध नहीं बनाए गए थे, अर्थात यह केवल एक रसमी शादी थी।
परंतु जी .एम .सैयद इस कहानी से इनकार करते हैं। उन्होंने लिखा है कि सगी बहन तो दूर की बात है ब्राह्मण अपनी चचेरी या ममेरी बहन से भी शादी को अनुचित समझते हैं। अतः वह अपनी बहन से शादी नहीं कर सकते थे। नहीं राजा दाहिर सेन अपनी बहन से शादी की । इसके अतिरिक्त इतिहासकारों का अन्यथा विचार भी है।
अरब आक्रांता मोहम्मद बिन कासिम ने सिंध प्रांत पर सन 712 में आक्रमण किया परंतु जैसा कि ऊपर लिखा जा चुका है कि इससे पूर्व भी सन 638 में पहला आक्रमण केरल में हुआ और उसके बाद भी अनेक आक्रमण आक्रांता ओं द्वारा किए जाते रहे थे। यद्यपि अरब शासक को हमेशा ही सिंधी शासक खदेड़ कर भगाते रहे। तथापि आक्रमणकारी बार-बार प्रयास करते रहे कभी भी शांत नहीं बैठे।
सावरकर जी के अनुसार उस समय सिंध पर वैदिक धर्मा भिमानी ,ब्राह्मण राजकुल के प्रजा वत्सल राजा दाहिर सेन राज्य करते थे । अर्थात् सिंध का तत्कालीन समाज वैदिक धर्मावलंबी था।
यही वैदिक धर्म बौद्धों को पसंद नहीं था।
राजा दाहिर सेन से पूर्व के राजाओं से वहां की जनता पहले पीड़ित रहती थी। जिनके द्वारा पीड़ा पहुंचाई जाती थी ।उनको राजा दाहिर सेन ने उचित दंड दिया था। इसलिए ऐसे अन्य शासकों के मन में ईर्ष्या एवं देश राजा दाहिर सेन के प्रति घर कर गए थे ।जब से सिंध इस ब्राह्मण राजा दाहिर सेन के वैदिक राज्य में आया तब से वहां प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म के पालन करने की पूर्णतया स्वतंत्रता प्राप्त थी।
अरब के गवर्नर हुज्जाज बिन कासिम के सिपहसालार मोहम्मद बिन कासिम ने जैसे ही सिंध के समीप देवल पर अपनी विजय पताका फहराया ,वैसे ही पूर्व में कभी सिंधी शासकों द्वारा पीड़ित रहे कुछ लोगों ने आगे आकर उनका स्वागत , सत्कार व सहायता की।
ऐसे विश्वासघाती ,राष्ट्घाती लोगों ने कासिम को यह भी बता दिया की राजा दाहर वैदिक धर्म का पालन करने वाला है। लेकिन उसकी प्रजा से और उस से हमारा कोई संबंध किसी प्रकार का नहीं है ।उनका धर्म अलग है। हमारा धर्म अलग है। हम किसी भी प्रकार से शस्त्र धारण करके राजा के अधीन होकर किसी भी युद्ध में भाग नहीं लेते हैं। हम राजा दाहर की सशस्त्र सेना में कदापि शामिल नहीं होंगे। आप यह मन से अपनी आशंका दूर करें। इस को निर्मूल करें । हमें आप किसी प्रकार का कष्ट ना दें यह आश्वासन आपको देना होगा।
मोहम्मद बिन कासिम बहुत ही कुटिल था ।उस समय उन्होंने उनकी बात को कुटिलता पूर्वक कूटनीति के अनुसार स्वीकार कर लिया।
तथा ऐसे लोगों को निर्भय कर दिया।

इन्हीं विश्वासघाती और राष्ट्रघाती लोगों ने मोहम्मद बिन कासिम की सेना को कौन से रास्ते से बचकर अर्थात दुर्गम रास्तों की वंचना करते हुए अच्छे सुगम रास्तों की जानकारी देते हुए सेना को जगह-जगह पर राशन एवं रसद पहुंचाते हुए राजा दाहिर की सेना के सभी गूढ़ रहस्य बता दिए। इस प्रकार कासिम के समक्ष शरणागत हुए समुदायों ने हर संभव कासिम की मदद की। तथा अपने ही वीर राजा दाहिर सेन के विरुद्ध विश्वासघात किया।
राजा दाहिर की सेनाएं ब्राह्मणबाद नामक स्थान पर कासिम की सेनाओं से मुकाबला करती हैं। बहुत ही डटकर मुकाबला हुआ, संघर्ष हुआ ।लेकिन उस युद्ध में अरब सैनिकों के पास बड़ी गुलेल सा दूर मारक यंत्र मंजनीक था।
राजा दाहर की सेना में जो लोग कुछ समय पूर्व ही शरण में आए थे उनमें कुछ भाड़े के अरब सैनिक भी थे। जिन्होंने युद्ध के समय धोखा देते हुए और इस युद्ध को धर्म युद्ध करार देते हुए पाला बदल लिया कि हम राजा दाहिर जो हमारे लिए काफिर है ,की तरफ से युद्ध नहीं लड़ पाएंगे। उन्होंने राजा दाहर की सेना पर मोहम्मद बिन कासिम के साथ मिलकर उल्टा हमला बोल दिया ।उसके बावजूद भी राजा बाहर वीरता और शौर्य के साथ टक्कर देते रहे लेकिन तभी कुछ अरब सैनिकों ने महिलाओं का वेश धारण करके राजा दाहर को सहायता के लिए पुकारना प्रारंभ कर दिया। राजा दाहर जैसे ही उनको बचाने के लिए उधर जाते हैं तो इन अरबी सैनिकों ने उनके हाथी के हौदे में आग लगा दी ।गर्मी से परेशान होकर हाथी पानी की ओर भागा । तथा एक जलकुंड में बैठ गया। इस प्रकार 20 जून 712 को दाहर को घेरकर मारे जाने की खबर से भगदड़ मच गई। अरब सेना नगर में घुस गई।
इसके बाद मोहम्मद बिन कासिम से जिन लोगों ने गुप्त समझौता किया था, जिन्होंने अभयदान लिया था, मोहम्मद कासिम का वे ही लोग बहुत बहुत बड़े घंट घड़ियाल बजाते हुए प्रार्थनाएं करने लगे।
विश्वासघातियों का अंत भी विश्वासघात से।
अरब की सेना सिंध में घुस चुकी थी। जिसने नृसंस्ता पूर्वक वैदिक धर्मी लोगों की हत्या की । वे लोग जो कासिम से गुप्त समझौता कर चुके थे , अभयदान दे चुके थे,उनको भी अरब के सैनिकों ने अपने तलवारों का शिकार बनाया । इस प्रकार विश्वासघात का अंत विश्वासघात से ही हुआ।
मगर देश को इसका घाव सदियों तक सहना पड़ा।
यह भी अब किसी से छिपा नहीं है कि भारतवर्ष का इतिहास का विलोपीकरण एवं विद्रुपीकरण करते हुए तोड़ मरोड़ कर असत्य लिखवाया गया जो भारतवर्ष में स्वतंत्रता पश्चात पहले 5 शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद, , हुमायूं कबीर, फखरुद्दीन अली अहमद, प्रोफेसर नुरुल हसन, आदि कांग्रेस के अथवा उसको समर्थन देने वाले कम्युनिस्ट पार्टी के हुए उन्होंने दुर्भावना वस भारतवर्ष के सच्चे इतिहास की विषय सामग्री प्रस्तुत नहीं की बल्कि चारण मानसिकता ऐसे आक्रांता ओं का महिमामंडन करने में लगी रही।
“चचनामा “में जो बातें लिखी गई हैं उनको सत्य मानकर पढ़ाया जाता रहा।
चचनामा में यह भी इतिहासकार वर्णन करता है कि राजा दाहिर की दो बेटियों को खलीफा के पास भेज दिया गया था। खलीफा बिन अब्दुल मलिक ने दोनों बेटियों को एक दो रोज आराम करने के बाद उनके हरम में लाने का आदेश दिया।
एक रात दोनों को खलीफा के हरम में बुलाया गया। खलीफा ने अपने एक अधिकारी से कहा कि वह मालूम करके बताएं कि दोनों में कौन सी बेटी बड़ी है।
बड़ी बेटी ने अपना नाम सूर्या देवी बताया और उसने चेहरे से जैसे ही नकाब हटा या तो खलीफा उनकी खूबसूरती देखकर दंग रह गई , तथा लड़की को हाथ से अपनी तरफ खींचा ,लेकिन लड़की ने खुद को छुड़ाते हुए कहा बादशाह सलामत रहे। मैं बादशाह की काबिल नहीं रही ,क्योंकि आदिल इमामुद्दीन मोहम्मद बिन कासिम ने हमें तीन रोज अपने पास रखा और उसके बाद खलीफा की खिदमत में भेजा है ।शायद आप का दस्तूर कुछ ऐसा है। बादशाहो के लिए यह बदनामी जायज नहीं।

इस पर खलीफा मोहम्मद बिन कासिम से बहुत नाराज हुए और आदेश जारी किया कि वह संदूक में बंद होकर हाजिर हो ।जब यह फरमान मोहम्मद बिन कासिम को पहुंचा तो वह अवधपुर में थे ।तुरंत आदेश का पालन किया गया। लेकिन दो रोज में ही उनका दम निकल गया और मृतक लाश को दरबार पहुंचा दिया गया।
कुछ इतिहासकारों का कहना है कि राजा दाहिर की बेटियों ने इस तरह अपना बदला लिया।

यद्यपि पीटर हार्दे ,डॉक्टर मुबारक अली ,गंगाराम सम्राट आदि ने चचनामा की विषय वस्तु पर शंका जाहिर की है।
जी,एम, सैयद लिखते हैं कि एक सच्चे सिंधी को राजा दाहिर के बलिदान पर गर्व करना चाहिए क्योंकि वह सिंध के लिए आत्म बलिदान करने वाले सबसे पहले व्यक्ति रहे हैं। जिन के बाद 340 वर्षों तक सिंध गैरों की गुलामी में रहा ।जब तक कि सिंध के सोमरा राज घराने ने राज्य सत्ता हासिल न कर ली हो।यह
सिंध भारत भूमि का प्रवेश द्वार कहा जाता था ।जहां के महा प्रतापी और प्रजा प्रेमी राजा दाहिर सेन राज्य करते थे जो वीर शिरोमणि राजा थे।
वीर शिरोमणि राजा दाहिर सेन ने विदेशी आक्रांता उनको 14 बार घुटने टेकने पर विवश कर दिया था।
लेकिन भारतवर्ष में जितना प्राचीन इतिहास पढ़ाया जाता है। उतना ही प्राचीन विश्वासघात भी कदम कदम पर मिलता है। राजा दाहिर सेन के साथ भी इसी प्रकार से विश्वासघात हुआ था । विश्वासघात के कारण ही भारत का इतिहास और देश की नियति परिवर्तित हो गई थी। भारत माता परतंत्र हो गई थी। सदियों के संघर्ष के पश्चात 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति हुई।

— देवेंद्र सिंह आर्य एडवोकेट

चेयरमैन : उगता भारत

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