तेल चाहे खाने का हो या गाड़ी चलाने का हो, दोनों ही आम आदमी की पहुंच से बाहर

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प्रस्तुति – श्रीनिवास आर्य

यह ऐतिहासिक और दुर्लभ क्षण है जब डीजल के दाम दो अंकों के सीमित दायरे से बाहर निकल कर तीन अंकों के आंकड़ों को प्राप्त हुए हैं। पेट्रोल इस बात से बेहद खुश है कि यह उपलब्धि वह पहले ही अर्जित कर चुका है। देर सवेर ही सही मगर डीजल को भी शतक लगाने का अवसर तो मिला। हमारे लोकतंत्र की यह सबसे बड़ी खूबी है कि यहां डीजल को भी पेट्रोल की बराबरी के अवसर मिलते हैं। अब तेल चाहे खाने का हो या गाड़ी चलाने का हो, दोनों ही आम आदमी की पहुंच से बाहर हैं। इतनी महंगाई में भी तेल भरवाते हुए यदि किसी के चेहरे पर मुस्कान है तब तो वह आदमी आम नहीं है या फिर वह गाड़ी सरकारी है।

सात दशकों में हमें तो पिछड़ेपन की इतनी आदत हो गई थी कि ऐसा विकास हमने कभी देखा ही नहीं था। इतने विकास की हमें क्या, हमारे पेट्रोल पंपों की मशीनों को भी आदत नहीं थी। कई मशीनें तो बेचारी तीन अंकों की खुशी के मारे सदमे में ही चली गईं। उनमें दहाई से तिहाई का फॉर्मूला सेट कराने के लिए तकनीशियन बुलवाने पड़े। पानी से, हवा से, गोबर से गाड़ी चलेगी जैसी खबरों से अच्छे दिन की तरह विश्वास उठता जा रहा है। एक बाइक पर दो सवारी का होना सामान्य घटना है, अब तीन नजर आने पर यह खुद की अर्थव्यवस्था के अनुकूल किंतु देश की इकोनॉमी की विरोधी घटना मानी जायेगी।

अब कार से शॉपिंग करने आने पर डीजल फ्री जैसे ऑफर लुभा सकते हैं। प्रसिद्ध हस्ती के जन्मदिन पर फल, फूल के स्थान पर सरसों के तेल से तोला जैसी खबर यश वृद्धि में सहायक होगी। चुनावों में मतदान वाली रात बोतल में नव प्रयोग भी हो सकता है। इलेक्शन मेनिफेस्टो में मुफ्त वाहन का स्थान मुफ्त पेट्रोल ले लेगा। डाकघरों में तेल बचत योजना के खाते और बैंकों में वाहन ऋण के स्थान पर ईंधन लोन योजना समय की मांग है। अजी! वाहन तो हम खरीद लेंगे, आप बस डीजल फाइनेंस करवा दीजिये, जैसी बातें लोन के लिए आने वाले फोन पर सुनी जा सकेंगी।

इतना ही नहीं, फुल टैंक करवाने वालों के यहां आयकर के छापे और अविवाहितों के लिए रिश्ते भी आ सकते हैं। अब से मॉल में सरसों तेल का डिब्बा खरीदने पर मैनेजर खुद कार तक छोड़ने आएंगे। पुलिस अब गाड़ी चोर को कम और डीजल चोरों को अधिक पकड़ेगी।

एक समय पेट्रोल के दाम बढ़ने के विरोध में बैलगाड़ी निकल जाया करती थी। अब यह रस्म अदायगी भी मृत्यु भोज की तरह समाज से बंद हो चुकी है। महंगाई पर बात करना आउटडेटेड हो गया है। अब इस पर बात करने में संकोच, झिझक और शर्म महसूस होती है। इस दौर में भी सबसे आशावादी वही है जो तेल के दाम बढ़ने के सौ लाभ गिना सके। न्यूज एंकर की भाषा में यह कदम मास्टर स्ट्रोक या स्वास्थ्य के लिए उठाया दूरदर्शी कदम हो सकता है।

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