गतांक से आगे…
जिस समय वर्तमान प्रस्थानत्रयी का सम्पादन हुआ, उस समय ने तो यह रूप इन उपनिषदों का था और ने गीता का तथा व्याससूत्रों का ही।हमारा विश्वास है कि सनातन से सहिताओं के मंत्रों को ही श्रुति कहा जाता था।क्योंकि सब लोग उन्हीं को आज तक सुनते-सुनते आ रहे हैं।उपनिषद् तो ब्राह्मणों के कतिपय भाग हैं, जो ऋषियों के बनाए हुए हैं।गीता में ही लिखा हुआ है कि ‘ऋषिभिर्बहुधा गीतं छन्दोंभिविविधै: पृथक्। अर्थात अलग-अलग छन्दों में उपनिषदों को अनेक ऋषियों ने कहा है।यही सब छन्द ब्रह्यसूत्रों में ग्रथित किए गए हैं। इस वाक्य से ही उपनिषदों की असलियत प्रकट हो जाती है कि, वे वेद नहीं प्रत्युत ऋषिप्रणीत ग्रंथ है।शंकराचार्य स्वामी ने प्रायः सब प्रमाण इन्हीं उपनिषदों से ब्रह्मसूत्रों के भाष्य में उद्धृत किए हैं।जिस प्रकार उपनिषदें श्रुति बनाई गई,उसी तरह गीता को स्मृति बनाया गया।पर गीता को अभी किसी ने स्मृति कहीं नहीं कहा।प्राचीन समय की स्मृतियां मनु,याज्ञवल्क्य आदि हैं,पर इनमें वे बातें वर्णित नहीं हैं, जिनकी आवश्यकता बादरायण गोष्टी को थी। जिस प्रकार संहिता में आवश्यक बातों के न मिलने से उपनिषदें श्रुति बनी, उसी तरह स्मृतियों में वे बातें न मिलने से स्मृति के लिए गीता ढूंढ निकाली गई और स्मृति बनाई गई।व्यास सूत्रों में जहां स्मृति के प्रमाणों की दरकार पड़ी है, वहां श्री शंकराचार्य ने गीता के श्लोक उद्धृत किए हैं।इस तरह से इस नवीन श्रुति स्मृति की सृष्टि कर के सिद्धांतों को दार्शनिक विचारों से पुष्ट करने के लिए ब्रह्मसूत्रों की रचना हुई। कहा नहीं जा सकता कि वेदव्यास का लिखा हुआ कोई सूत्रग्रंथ था।यदि था तो उसमें बहुत थोड़े सूत्र थे। वर्तमान ब्रह्म सूत्रों के बहुत से सूत्रों में तो केवल उक्त उपनिषद और गीता में आए हुए शब्दों का खुलासा ही है, अथवा उन श्रुतियों पर दार्शनिक प्रभाव डाला गया है, जो असुर उपनिषद् से ली गई हैं।इस तरह से प्रस्थानत्रयी बनी है।आगे हम उक्त तीनों ग्रंथों का विस्तार पूर्वक वर्णन करके दिखलाते हैं कि, इनमें किस प्रकार आसुर सिद्धांत भरे हुए हैं और किस प्रकार उनको हिंदुओं ने स्वीकार किया है।
उपनिषद् , गीता और ब्रह्यसूत्रों में मुख्य उपनिषद ही हैं।क्योंकि यह प्रसिद्ध ही है कि कृष्ण भगवान ने उपनिषद रूपी गौओं को दुहकर गीतारूप दुग्ध अर्जुन को पिलाया और यह भी प्रसिद्ध है कि उपनिषदों में गाए हुए पद ही ब्रह्म सूत्रों में पिरोए गए हैं।तात्पर्य यह है कि गीता और वेदांतदर्शन बिल्कुल ही उपनिषदों के आधार पर हैं।इसलिए उपनिषदों की ही आलोचना से यद्यपि दोनों की आलोचना हो जाती है,तथापि हम उपनिषदों के साथ-साथ थोड़ा बहुत गीता और ब्रह्मसूत्रों की भी आलोचना करते चलेंगे।ये उपनिषदों यूं तो सैकड़ों हैं,पर श्री शंकराचार्य ने 10 उपनिषदों पर ही भाष्य किया है।इससे इन दसों की मर्यादा अधिक मानी जाती है। इन दसों उपनिषदों में आसुर उपनिषद का मिश्रण है।आसुर भाग वेदों की उपेक्षा करते हैं, ब्राह्मणों की निंदा करते हैं,यज्ञों के करने वालों की गालियां देते हैं और अनाचार का प्रसार करते हैं। आगे हम इन तमाम बातों को एक एक करके दिखलाएंगे और साथ-साथ गीता और उपनिषदों को भी पड़ताल करते चलेंगे।हमारी इस आलोचना के दो विभाग होंगे। पहिले विभाग में गीता और उपनिषदों में मिश्रण दिखलाएंगे और फिर दूसरे विभाग में दिखलाएंगे कि यह मिश्रण असुरों का किया हुआ है और इस समालोचना के अंत में ब्रह्यसूत्रों की जांच करेंगे।
क्रमशः
– देवेंद्र सिंह आर्य
चेयरमैन उगता भारत