सर्वदलीय बैठक : किसने क्या खोया क्या पाया?
प्रधानमंत्री श्री मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और उनके कई अधिकारियों के साथ जम्मू कश्मीर के राजनीतिक दलों की बैठक दिल्ली में संपन्न हो गई है। जिसमें केंद्र सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया है कि धारा 370 की बहाली को लेकर पीछे मुड़ने का कोई सवाल नहीं है । इस बैठक में उपस्थित होने से पहले यद्यपि पीडीपी की नेता महबूबा मुफ्ती और नेशनल कांफ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला ने धारा 370 की बहाली को उठाने की बात कही थी, परंतु केंद्र सरकार के स्पष्ट और कड़े स्टैंड ने यह स्पष्ट कर दिया कि 5 अगस्त 2019 को जो निर्णय लिया गया था उस पर पुनर्विचार का कोई प्रश्न ही पैदा नहीं होता। सचमुच यह भारत के लोकतंत्र की खूबसूरती का ही प्रमाण है कि कुछ समय पहले तक जम्मू कश्मीर के राजनीतिक दल जिस प्रकार की बयानबाजी कर रहे थे और केंद्र सरकार जिस प्रकार उनकी बयानबाजी को या तो उपेक्षित कर रही थी या उन्हें दिल्ली में बैठे-बैठे कड़े संदेश दिए जा रहे थे, उसके चलते यह नहीं लगता था कि ये राजनीतिक दल और केंद्र सरकार किसी एक मेज पर बैठकर बातचीत कर सकेंगे ,परंतु ऐसा हुआ। जिसे सारी दुनिया के लोगों ने बड़ी विस्मय भरी नजरों से देखा है। उन राजनीतिक बयानबाजियों के चलते जहां जम्मू-कश्मीर के नेता केंद्र सरकार के विरुद्ध विषवमन कर रहे थे, वहीं मोदी सरकार भी ‘गुपकार गैंग’ जैसे शब्द प्रयोग कर इन दलों के प्रति अपनी सख्ती का प्रमाण दे रही थी।
इस बैठक से यह सिद्ध हुआ है कि भारतीय लोकतंत्र की कोंपलें मुरझाई नहीं हैं और वह निरंतर अपने सतत प्रवाह को बनाए हुए हैं। केंद्र सरकार ने सारी दुनिया को यह संदेश दिया कि वह लोकतांत्रिक प्रक्रिया में विश्वास रखती है और वह प्रत्येक व्यक्ति, समूह या राजनीतिक दल से मिलकर समस्याओं के समाधान करने के प्रति संकल्पित है । केंद्र सरकार के इसी दृष्टिकोण के चलते यह संभव हो पाया कि जिन राजनीतिक दलों के नेताओं को केंद्र सरकार की ओर से ‘गैंग’ कहा जा रहा था, और जिन्हें देश विरोधी गतिविधियों के नाम पर या शांति बनाए रखने के दृष्टिगत नजरबंद किया गया था, उन्हें अपना ‘गेस्ट’ बनाने के लिए दिल्ली बुलाया गया। नवंबर 2020 में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जम्मू कश्मीर के महबूबा मुफ्ती और फारूक अब्दुल्ला जैसे नेताओं के प्रति कड़ा दृष्टिकोण अपनाते हुए कहा था कि यदि इनका दृष्टिकोण परिवर्तित नहीं हुआ तो इनकी लुटिया डूबनी तय है। इसके बाद भी यद्यपि महबूबा मुफ्ती के स्वर बदले नहीं, परंतु फारूक अब्दुल्ला ने दिल्ली आकर यह स्पष्ट कर दिया कि वह ‘अपने मुल्क के प्रधानमंत्री’ के साथ बातचीत करने आए हैं । जिससे महबूबा मुफ्ती और फारूक अब्दुल्ला के दृष्टिकोण में अंतर दिखाई दिया । जहां फारूक अब्दुल्ला नरम दिखाई दिए, वहीं महबूबा मुफ्ती ‘आतंकवादियों की दहशत’ के चलते उन्हीं के सुर में सुर मिला कर बात करती हुई दिखाई दीं।
इस बैठक में राज्य के चार पूर्व मुख्यमंत्रियों समेत कुल 14 नेता सम्मिलित हुए। बैठक में उप राज्यपाल मनोज सिन्हा, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, केंद्रीय मंत्री जीतेंद्र सिंह और एनएसए अजीत डोभाल भी उपस्थित रहे।
कभी केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ट्विटर पर गुपकार गठबंधन को ‘गुपकार गैंग’ कहते हुए लिखा था “गुपकार गैंग वाले ग्लोबल हो रहे हैं और ये गैंग जम्मू-कश्मीर में गैर मुल्की ताकतों का दखल चाहता है। ‘गुपकार गैंग’ भारत के तिरंगे का अपमान करता है। क्या सोनिया जी और राहुल ‘गुपकार गैंग’ के ऐसे कदमों का समर्थन करते हैं? उन्हें देश की जनता के सामने अपना स्टैंड साफ करना चाहिए।”
अपने इस ट्विटर में केंद्रीय गृहमंत्री ने कांग्रेस को भी लपेट लिया था । क्योंकि कांग्रेस की नेता सोनिया गांधी और उनके बेटे राहुल गांधी दोनों ही ‘गुपकार गैंग’ का समर्थन करते हुए दिखाई दे रहे थे । यद्यपि मीडिया में कांग्रेस के इस स्टैंड की पहले दिन से आलोचना होती रही है, परंतु राजनीति किस स्थिति तक गिर चुकी है, इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि कांग्रेस की नेता सोनिया गांधी और उनके बेटे राहुल गांधी का दृष्टिकोण अभी भी वैसा ही है और वे गुपकार गैंग के साथ खड़े हुए दिखाई दे रहे हैं।
जहां केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का इन नेताओं के प्रति ऐसा दृष्टिकोण था वहीं केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने गुपकार गठबंधन पर चीन का साथ देने का आरोप लगाया था। उन्होंने कहा था कि, “इनका एक निश्चित एजेंडा है कि अनुच्छेद 370 को हटाया जाना रद्द होना चाहिए और उसे फिर से लागू किया जाना चाहिए। फारूक अब्दुल्ला जैसे कुछ लोग तो इस सीमा तक चले गए कि उन्होंने कहा है कि अनुच्छेद 370 को दोबारा लागू करवाने के लिए चीन की भी सहायता लेनी पड़े तो हम लेंगे।”
गुपकार गठबंधन में नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी, पीपल्स कॉन्फ्रेंस, कांग्रेस, सीपीआई (एम), पीपल्स यूनाइटेड फ्रंट, पैंथर्स पार्टी और अवामी नेशनल कॉन्फ्रेंस शामिल हैं। पीएम के साथ हुए इस बैठक में जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने एक बार फिर पाकिस्तान से बात करने की बात कही है।
महबूबा ने कहा, ‘संविधान ने हमें जो अधिकार दिया है, जो हमसे छीना गया है। उसके अलावा भी जम्मू-कश्मीर में एक मसला है। अगर जम्मू-कश्मीर में अमन लाना है तो उन्हें जम्मू-कश्मीर में बातचीत करनी चाहिए और मुद्दों के समाधान के लिए पाकिस्तान के साथ भी बातचीत करनी चाहिए।
सूत्रों के अनुसार जम्मू-कश्मीर के 14 राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ साढ़े तीन घंटे की बैठक के दौरान प्रधानमंत्री ने इसमें शामिल नेताओं को कश्मीर में हर मौत की घटना पर अपना व्यक्तिगत दु:ख व्यक्त किया, चाहे वह निर्दोष नागरिक की हो, किसी कश्मीरी लड़के की जिसने बंदूक उठाई थी या सुरक्षा बलों के किसी सदस्य की।
मोदी ने बैठक के बाद कई ट्वीट करके कहा कि विचार-विमर्श एक विकसित और प्रगतिशील जम्मू-कश्मीर की दिशा में चल रहे प्रयासों में एक महत्वपूर्ण कदम था, जहां सर्वांगीण विकास को आगे बढ़ाया गया है। उन्होंने कहा, ‘‘हमारी प्राथमिकता जम्मू-कश्मीर में जमीनी स्तर पर लोकतंत्र को मजबूत करना है। परिसीमन तेज गति से होना है, ताकि वहां चुनाव हो सकें और जम्मू-कश्मीर को एक निर्वाचित सरकार मिले जो जम्मू-कश्मीर के विकास को मजबूती दे।’’
मोदी ने कहा कि यह भारतीय लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत है कि लोग एक मेज पर बैठकर विचारों का आदान-प्रदान कर सकते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘मैंने जम्मू-कश्मीर के नेताओं से कहा कि लोगों, खासकर युवाओं को जम्मू-कश्मीर का राजनीतिक नेतृत्व देना है और यह सुनिश्चित करना है कि उनकी आकांक्षाएं पूरी हों।’’
अब आते हैं कि इस बैठक से किसने क्या खोया क्या पाया ? यदि इस पर विचार किया जाए तो पता चलता है कि इस बातचीत की प्रक्रिया से देश और लोकतांत्रिक प्रक्रिया की जीत हुई है। दो पालों में खड़े रहना किसी भी दृष्टि कोण से उचित नहीं था। दूसरी बात यह है कि यदि कुछ लोग आज भी इस प्रक्रिया का स्वागत नहीं कर रहे हैं या इसका दुरुपयोग करते हुए दिखाई दे रहे हैं तो वह भी देश की और देश की जनता की नजरों में आ गए हैं । मेरा स्पष्ट संकेत महबूबा मुफ्ती जैसे नेताओं की ओर है। जो आज भी पाकिस्तान और आतंकवादियों का समर्थन करते हुए दिखाई दे रहे हैं। तीसरे ,प्रधानमंत्री मोदी ने भी अपनी सरकार की स्थिति साफ कर दी है कि वह बातचीत की प्रक्रिया में विश्वास रखती है । चौथे, अब अंतरराष्ट्रीय समुदाय की ओर से भारत सरकार पर यह दबाव नहीं रहेगा कि वह कि वह लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बहाल करते हुए जम्मू कश्मीर के राजनीतिक दलों से बातचीत आरंभ करें। पांचवें, केंद्र सरकार ने धारा 370 पर पीछे मुड़कर न देखने के अपने स्टैंड को स्पष्ट कर देश की जनता की एक बार फिर वाहवाही प्राप्त की है और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भी स्पष्ट कर दिया है कि वह किसी भी प्रकार के दबाव में झुकने को तैयार नहीं है। छठे, जम्मू कश्मीर के राजनीतिक दलों के नेताओं को यह स्पष्ट आश्वासन मिल गया है कि केंद्र सरकार जम्मू कश्मीर में लोकतांत्रिक प्रक्रिया बहाल करने के लिए कृत संकल्प है और वहां पर चुनावी परिसीमन कराकर लोकतांत्रिक ढंग से चुनाव कराए जाने को प्राथमिकता दे रही है।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत
मुख्य संपादक, उगता भारत