“किसी की मृत्यु हो जावे, या ऐसी ही कोई भयंकर दुर्घटना हो जावे, तो लोग कितना विलाप करते हैं, ईश्वर को गालियां देते हैं, यह बुद्धिमत्ता और सभ्यता नहीं है।”
हमने अच्छे-अच्छे पढ़े-लिखे विद्वानों को देखा है। जो स्वयं को बहुत विद्वान मानते हैं, अच्छी बातों का प्रचार भी करते हैं, लोगों को उपदेश भी देते हैं। चाहे किसी भी संप्रदाय के हों, बहुत विद्वानों को देखा है। “आस्तिकता की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं। ईश्वर की सत्ता को सिद्ध करने में एड़ी से चोटी तक पूरा जोर लगाते हैं। ईश्वर के बड़े-बड़े गुणगान करते हैं। जब तक उनके घर में परिस्थितियां ठीक-ठाक होती हैं, तब तक तो वे ऐसा करते हैं।”
परंतु जैसे ही घर में कोई दुर्घटना हो जाती है, वृद्ध पिता की मृत्यु अथवा वृद्धा माता की मृत्यु अथवा कभी-कभी युवा पुत्र आदि की भी दुर्घटना आदि से मृत्यु हो जाती है। तब तो कहना ही क्या है। “तब सारी आस्तिकता चूहे के बिल में घुस जाती है।” क्षमा करेंगे, मैं जानबूझकर कठोर शब्द लिख रहा हूं। क्योंकि उस समय मुझे उन विद्वानों पर बहुत आश्चर्य होता है, कि “ये वही लोग हैं जो कल तक बड़ी-बड़ी बातें करते थे! ईश्वर के बहुत गीत गाते थे! बड़ी आस्तिकता का प्रदर्शन करते थे। आज ये उसी ईश्वर को बुरा-भला कह रहे हैं। तब उनको देखकर मुझे बहुत आश्चर्य और थोड़ा कष्ट भी होता है। इसलिए उनकी धृष्टता की प्रतिक्रिया स्वरूप मैं इन कठोर शब्दों का प्रयोग कर रहा हूं।”
उस समय वे ईश्वर के गीत गाने वाले तथाकथित विद्वान पूरे नास्तिक हो जाते हैं। तरह तरह के शब्दों से ईश्वर को गालियां देते हैं। “जैसे कि “क्रूर काल” ने मेरे पिता को ग्रस लिया। उस “निर्मम समय” ने मेरी माता को मुझसे छीन लिया। “दैव का अट्टहास” ऐसा हुआ कि मेरा पुत्र से वियोग हो गया।” और भी इसी तरह के विचित्र विचित्र शब्दों का प्रयोग करके ईश्वर को भरपेट गालियां देते हैं।
कौन है यह क्रूर काल? यह निर्मम समय? यह दैव? ये सब कौन हैं? परोक्ष रूप से ईश्वर को ही इन नामों से गालियां दी जा रही हैं। “शर्म आनी चाहिए, ऐसे तथाकथित विद्वान लोगों को, जो इन नामों से ईश्वर को कोसते हैं। जबकि ऐसी दुर्घटनाओं में ईश्वर का 1% भी कोई दोष नहीं है।” दोष है, उन शाब्दिक विद्वानों का। “वास्तव में वे विद्वान नहीं हैं। घोर अविद्या से ग्रस्त, ऐसे लोग केवल कुछ शब्द रटकर जनता को भ्रमित करते रहते हैं। और अपने विद्वान होने का नाटक करते रहते हैं।” शास्त्रों के कुछ थोड़े से शब्द रटकर प्रवचन कर देना, यह कोई विद्वत्ता का लक्षण नहीं है। “जब ऐसे पढ़े लिखे प्रवक्ता लेखक आदि स्तर के लोग भी ईश्वर को इतनी गालियां देते हैं, तो आम जनता क्या उनका अनुकरण नहीं करेगी? वह तो इनसे भी चार गुनी और अधिक गालियां देगी। और यही होता है संसार में।” इसके दोषी कौन होंगे, वही तथाकथित विद्वान लोग।
योग दर्शन के व्यास भाष्य में असली विद्वान की परिभाषा लिखी है। “अक्षिपात्रकल्पो हि विद्वानिति।।” योग दर्शन 2/15 व्यास भाष्य।।
अर्थात असली विद्वान वह होता है, जो नेत्र के समान कोमल होता है। जिसका हृदय एकदम शुद्ध होता है, उसमें अविद्या राग द्वेष कुछ नहीं होते। वास्तविक विद्वान वह होता है, जो पूर्ण सत्यवादी होता है। पूर्ण अहिंसक होता है। दयालु विनम्र सभ्य ईश्वरविश्वासी आस्तिक और सरल होता है।
“परंतु ईश्वर को गालियां देने वाले ये लोग सिर से पांव तक अविद्या से भरे पड़े हैं, और ऐसे विलाप कर करके अपनी अविद्या को ही प्रदर्शित करते हैं। रोना धोना दुखी होना और ईश्वर को गालियां देना, यह कोई बुद्धिमत्ता का लक्षण थोड़े ही है!”
इसलिए मेरा आप सब से विनम्र निवेदन है, कि ईश्वर को गालियां मत दीजिए। ईश्वर को व्यर्थ बदनाम मत कीजिए। उस पर झूठे आरोप मत लगाइए। ये दुर्घटनाएं ईश्वर ने नहीं की। यदि व्यर्थ में आप लोग ईश्वर को बदनाम करेंगे, तो ईश्वर भी आपकी बहुत अधिक धुलाई करेगा, अर्थात बहुत अधिक दंड देगा। ईश्वर सहनशील है। वह आपकी असभ्यता को बहुत सहन करता रहता है। “परंतु वह पक्का न्यायकारी भी है। समय आने पर बिल्कुल नहीं छोड़ेगा। किसी को भी नहीं छोड़ेगा। भयंकर दंड देगा। इसलिए सोच समझकर बोलें। विशेष रूप से ऐसी घटनाओं दुर्घटनाओं पर तो बहुत संभल कर बोलें।” आपका शुभचिंतक —-.
—- स्वामी विवेकानंद परिव्राजक, रोजड़, गुजरात।
प्रस्तुति देवेंद्र सिंह आर्य
चेयरमैन उगता भारत