रामकृष्ण मिशन का विश्लेषण

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(राम कृष्ण परमहंस के सिद्धांतो के विपरीत ,राम कृष्ण के नाम पर भ्रमित मिशन )
Dr D K Garg *स्थापना
: रामकृष्ण मिशन की स्थापना १ मई सन् १८९७ को रामकृष्ण परमहंस के शिष्य स्वामी विवेकानन्द ने की। इसका मुख्यालय कोलकाता के निकट बेलुड़ में है। इस मिशन की स्थापना के केंद्र में वेदान्त दर्शन का प्रचार-प्रसार है। रामकृष्ण मिशन दूसरों की सेवा और परोपकार को कर्म योग मानता है जो कि हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण सिद्धान्त है।


कोलकाता के निकट बेलुड़ में श्रीरामकृष्ण देव का सुन्दर भव्य मन्दिर है।इसमें श्रीरामकृष्ण देव की सुन्दर संगमरमर की मूर्ति है । इस मन्दिर की प्राण-प्रतिष्ठा 2 फरवरी, 1976 ई. में रामनवमी के शुभ अवसर पर रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन के दशम संघाध्यक्ष स्वामी वीरेश्वरानन्दजी के द्वारा हुई । मन्दिर में प्रात: श्रीरामकृष्ण देव की नित्य दशोपचार पूजा होती है
2 राम कृष्ण देव कौन थे :
सन् 1886 ई. में को प्रातःकाल रामकृष्ण परमहंस ने देह त्याग दिया। रामकृष्ण छोटी कहानियों के माध्यम से लोगों को शिक्षा देते थे। कलकत्ता के बुद्धिजीवियों पर उनके विचारों ने ज़बरदस्त प्रभाव छोड़ा था; हांलाकि उनकी शिक्षायें आधुनिकता और राष्ट्र के आज़ादी के बारे में नहीं थी। उनके आध्यात्मिक आंदोलन ने परोक्ष रूप से देश में राष्ट्रवाद की भावना बढ़ने का काम किया, क्योंकि उनकी शिक्षा जातिवाद एवं धार्मिक पक्षपात को नकारती है।
रामकृष्ण के अनुसार ही मनुष्य जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य हैं। रामकृष्ण कहते थे की कामिनी -कंचन ईश्वर प्राप्ति के सबसे बड़े बाधक हैं। श्री रामकृष्ण परमहंस की जीवनी के अनुसार, वे तपस्या, सत्संग और स्वाध्याय आदि आध्यात्मिक साधनों पर विशेष बल देते थे। वे कहा करते थे, “यदि आत्मज्ञान प्राप्त करने की इच्छा रखते हो, तो पहले अहम्भाव को दूर करो। क्योंकि जब तक अहंकार दूर न होगा, अज्ञान का परदा कदापि न हटेगा। तपस्या, सत्सङ्ग, स्वाध्याय आदि साधनों से अहङ्कार दूर कर आत्म-ज्ञान प्राप्त करो, ब्रह्म को पहचानो।
रामकृष्ण संसार को माया के रूप में देखते थे। उनके अनुसार अविद्या माया सृजन के काले शक्तियों को दर्शाती हैं (जैसे काम, लोभ ,लालच , क्रूरता , स्वार्थी कर्म आदि ), यह मानव को चेतना के निचले स्तर पर रखती हैं। यह शक्तियां मनुष्य को जन्म और मृत्यु के चक्र में बंधने के लिए ज़िम्मेदार हैं। वही विद्या माया सृजन की अच्छी शक्तियों के लिए ज़िम्मेदार हैं (जैसे निःस्वार्थ कर्म, आध्यात्मिक गुण, ऊँचे आदर्श, दया, पवित्रता, प्रेम और भक्ति)। यह मनुष्य को चेतन के ऊँचे स्तर पर ले जाती हैं
3. रामकृष्ण मिशन के सिद्धांत
रामकृष्ण मिशन का ध्येयवाक्य है – आत्मनो मोक्षार्थं जगद् हिताय च (अपने मोक्ष और संसार के हित के लिये)
1. ईश्वर एक है और आध्यात्मवाद का अनुसरण कर ब्रह्म मे लीन हो जाना ही मनुष्य का परम धर्म हैं।
2. प्रेत्यक व्यक्ति को अपने धर्म मे रहना चाहिए और उसी से प्रेम करना चाहिए।
3. हिन्दू धर्म के समस्त अंग सच्चे तथा रक्षणीय है तथा हिन्दू सभ्यता अति प्राचीन, सुन्दर एवं आध्यात्मिकता से परिपूर्ण है।
4. आत्मा अजर अमर हैं।
5. ज्ञान और भक्ति एक ही लक्ष्य की ओर ले जाने वाले दो मार्ग है।
6. हिन्दू धर्म का आधार वेदान्त धर्म है। वेदान्त के आधार पर ही धर्म के स्वरूप को समझा जा सकता है।
7. पाश्चिमी सभ्यता भौतिकवा और छल से युक्त हैं। अतः हिन्दूओं को अपने धर्म जाति समाज को पाश्चिमी सभ्यता से दूर रखना चाहिए।
8. मनुष्य की आत्मा ईश्वर है तथा उसे परमात्मा के दर्शन किसी भी स्थान मे हो सकते हैं। मूर्ति पूजा उपासना का अति शुद्ध तथा उच्च रूप हैं।
4. राम कृष्ण मिशन की असलियत का विश्लेषण

ये मिशन कोई धर्म नहीं है न तो हिन्दू धर्म है , न मुस्लिम ना कोई और ये मिशन क्या है किसी को नहीं मालूम ,सिर्फ हिन्दू धर्म का चोला पहना है ,उद्देश्य है समाज सेवा तो इसमें धर्म और रामकृष्ण नाम के गुरु की मूर्ति पूजा और अलग से एक नया पंथ कहा से आ गया . इनके मुंह में राम- कृष्ण बगल में छुरी है,
ये है विवेकानंद का राम कृष्ण मिशन इसकी पूजा की शुरुवात विवेकानंद ने ही की थी. .लोगो में भ्रम है की विवेकानंद और उनका सन्गठन हिन्दू धर्म का प्रचार करता था जबकि चौकिये मत सच्चाई ये है की ये लोग हिन्दुओ का चोला ओढ़ कर इसाईयत का प्रचार करते थे राम कृष्ण का नाम लगाकर हिन्दुओ को आकर्षित करते थे और फिर जीसस के आगे झुकाया जाता था, वेद वेदांत का नाम लेकर हिन्दुओ को बुलाया जाता और फिर बाईबल थमा दी जाती और आज भी ये लोग यही करते हैं.
1.पहला जिस सन्गठन से जुड़े, उसमे वेद गीता रामायण और महाभारत के अतिरिक्त किसी अन्य मजहब की पुस्तक का स्थान नही होना चाहिए.
इन चीजों का ध्यान रखो, जीसस बाईबल कुरान और मुहमद आदि की तरफ आकर्षित करने की कोशिस करने वाला को भी साधू संत बाबा महंत या सन्गठन हिन्दू धर्म का सगा नही हो सकता. हिन्दू धर्म का संत साधू महंत बस वही है जो हिन्दू धर्म पर अडिग रहे.
2 हिन्दू के नाम पर आपको बुला कर ईद या क्रिसमस न मनवाने लगे. इश्वर और अल्लाह और जीसस कृष्णा राम सब एक है वाला ढोंग न करता हो.
3 ये मिशन मांसाहारी व काली मां को बलि देने वाले विवेकानंद के परमभक्त हैं,
8.स्वामी विवेकानन्द जी के गुरु राम कृष्ण परम हंस भी मांस खाते थे । इस तथ्य को उन्होंने स्वीकार भी किया है। इस कारण स्वामी विवेकानन्द जी भी मांसाहार में रुचि लेने लगे होंगे क्योंकि अपने गुरु को विवेकानन्द जी ईश्वर का अवतार मानते थे । इसलिए स्वामी विवेकानन्द मांसाहार के न केवल पक्षधर ही थे बल्कि स्वयं मांस खाते थे,यहां तक कि गौ मांस भी खाने से परहेज न करते थे । इस बात को स्वामी जी स्वयं अपने ही साहित्य में स्वीकार कर रहे हैं ।स्वामी विवेकानन्द सर्वस्व के भाग ४ के पृष्ट संख्या ३४४ में स्वामी जी इस प्रकार लिखते हैं :- “यदि भारत के लोग चाहते हैं कि मैं मांसाहार ने करूं तो उनसे कहो कि एक रसोईया भेज दें और पर्याप्त धन सामग्री ।“
महारानी झांसी के पति अपने अन्तिम समय में जब बीमार थे तो उन्हें बिमारी से बचने के लिए मांस भक्षण के लिए कहा गया । इस पर उन्होंने कहा कि एक दिन तो मरना ही है तो मैं मांस क्यों खाऊं ? एसे इस देश में कितने ही उदाहरण मिलते हैं कि अनेक लोगों ने अपनी जान बचाने के लिए मांसाहार स्वीकार नहीं किया । यदि ग्रहस्थी लोग अपनी जान बचाने तक के लिए भी मांस खाने को तैयार नहीं हुए तो स्वामी जी को क्या संकट था कि वह मांस खा रहे थे तथा इस के लिए दोषी भी भारतीयों को ही ठहरा रहे थे । वह तो संन्यासी थे । देश के धर्म की रक्षा के लिए कोई भी कुर्बानी दे सकते थे , फ़िर मांस क्यों खाते थे ?
सत्य तो यह है कि स्वामी विवेकानन्द मांसाहार के शौकीन थे किन्तु जब कोई उनसे इस के विरोध में प्रश्न करता तो इस प्रकार घुमा फ़िरा कर बात करते थे , जैसे मानो वह स्वेच्छा से मांसाहार नहीं कर रहे अपितु किसी मजबूरी से कर रहे थे ।

  1. राम कृष्ण मिशन से सिधान्तो का विश्लेषण
    राम कृष्ण मिशन की स्थापना सन् 1897 राम कृष्ण की मृत्यु के 11 साल बाद हुई। जैसा कि नाम से स्पष्ट है कि उस समय देश में अशिक्षा, गरीबी, चरम सीमा पर थी और देश में अंग्रेजी सम्राज्य का अत्याचार था। इससे त्रस्त भोली-भाली हिन्दु जनता को राम और कृष्ण के नाम पर एक सोची-समझी चाल की तहत इकट्ठा किया गया और मिशन शब्द अंग्रेजों से लेकर राम कृष्ण मिशन इस संस्था का नामकरण किया।
    राम कृष्ण परमहंस ने स्वयं को कभी भी ईश्वर नहीं बताया और ना ही अपनी मूर्ति की पूजा करने को कहा।
    इस मिशन का पहला सिद्धांत यह हैः –
    ईश्वर एक है और आध्यात्मवाद का अनुसरण कर ब्रह्म मे लीन हो जाना ही मनुष्य का परम धर्म हैं।
    जब ईश्वर एक है तो राम कृष्ण की मूर्ति पूजा व्यर्थ एवं मूर्खता है।
    इस मिशन के सिद्धांत के अनुसार आध्यात्मवाद का अनुसरण कर ब्रम्हा में लीन हो जाना ही मनुष्य का परम धर्म है जबकि इस मिशन में आध्यात्मवाद के नाम पर और मोक्ष की प्राप्ति हेतु धर्म पर चलना, राम-राम का पालन, वेद एवं उपनिषद् आदि धर्म ग्रंथों का अनुसरण बिल्कुल गायब है।

इस मिशन का दूसरा सिद्धांत इस प्रकार है-. प्रेत्यक व्यक्ति को अपने धर्म मे रहना चाहिए और उसी से प्रेम करना चाहिए।

जबकि इसके विपरित ये लोग प्राचीन वैदिक धर्म यानि सत्य सनातन धर्म से भटका कर जीससे की मूर्ति पूजा करातें है।.ये मिशन कोई धर्म नहीं है समाज सेवा के नाम पर सुरु हुआ और खुले रूप से अन्धविश्वास/ पाखंड को बढ़ावा देते हैं,
इसका तीसरा सिंद्धान्त इस प्रकार है- हिन्दू धर्म के समस्त अंग सच्चे तथा रक्षणीय है तथा हिन्दू सभ्यता अति प्राचीन, सुन्दर एवं आध्यात्मिकता से परिपूर्ण है।
इन्होंने इस सिद्धांत की भी पूरी तरह तलांजलि दे दी है।
विवेकान्नद ने ही क्रिसमस को हिन्दू के घर घर पहुचाया था. इनके संगठन ने किसी ईसाई या मुस्लिम को आज तक हिन्दू नही बनाया लेकिन लाखो हिन्दुओ को ईसाई बना दिया है. लेकिन प्रचार इतना तगड़ा है की हिन्दू विवेकानंद को हिन्दू धर्म का समझता है, और इस भ्रम को फ़ैलाने में नेताओ ने बहुत योगदान दिया है.
ये राम कृष्ण मिशन एक एसा सिस्टम है जिसमे धीरे धीरे हिन्दू को ईसाई बना दिया जाता है फिर वो इतना कट्टर ईसाई बनता है की उसे जीसस के आगे कुछ नही दीखता. देश के हर कोने में इसी सन्गठन के द्वारा ईसाई बनाये गए है, सिर्फ राम कृष्ण मिशन ही नही अनेको सन्गठन हिन्दू धर्म के नाम पर बने है जो हिन्दुओ को जीसस और मुहम्मद का भक्त बनाने का काम कर रहे है. कुछ उन्हें मुस्लिम बना देते है कुछ उन्हें ईसाई बना ले जाते है.
यहाँ तक ईसाई लोग नकली बाबा संत बनकर मठो मन्दिर और तीर्थो में घुसे है. वो भी यही काम कर रहे है. ये लोग हिन्दुओ के पूजा पाठ के तरीके को हुबहू नकल करके जीसस की पूजा करवाते है ताकि हिन्दू को उसके धर्म जैसी फिलिंग आये और धीरे धीरे वो जीसस को भगवान् मानने लगे, और ईसाई बन जाए और एसा होता भी है
सवाल ये है की इस प्रकार ये लोग क्यों करते है? तो जवाब है की इस तरह भेष रखकर धर्म परिवर्तन करवाने में ये ईसाई लोग सफल होते है?
चक्कर ये है की राम कृष्ण और शिव के नाम से कोई भी सन्गठन खोल दे भगवा कपड़े पहन ले, दो चार भाषण पेल दे, तो हिन्दू उसे अपना समझ लेता है.
हिन्दू ये देखता ही नही की ये इन्सान और इसका संगठन हमारे इश्वर भगवन को पूज रहा है या अल्लाह मुहम्मद और जीसस को. या भगवन को पूजकर हमे बुलाता है और फिर हमसे जीसस की पूजा करवाता है. वेद के अनुसार चलने का दावा करता है फिर बाईबल की तरफ ले जाने की कोशिस करता है. हमारा धर्म नष्ट करवा रहा है हमारा ही सहारा लेकर. और ये तब तक चलता रहेगा जब तक आप अपने धर्म के मूल मानक को नही जानेगे. अपने धर्म के सिर्फ तीन सिद्धांत पकड़ लो. तो हिन्दू के भेष में हिन्दुओ के बीच घुसे ढोंगी और दुसरे धर्म के लिए काम करने वाले लोगो के चक्कर में नही फसोगे.
महर्षि मनु ने धर्म के जो दस लक्षण बताये है उनकी चर्चा दूर-दूर तक नहीं होती और यह मिशन समाज सेवा के नाम पर शुरू होकर आहत्मावाद के नाम पर पूरी तरह से भटक चुका है।
कृपया अपने विवेक एवं स्वाध्य के बल पर ही किसी भी समाज, पंत, मजहब से जुडना चाहिए जिसकी कथनी करनी में कोई अंदर ना हो और सत्य सनातन र्धम से विमुख न करें।

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