अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस और भारत की संस्कृति

ओ3म्

 

ब्रिगेडियर चितरंजन सावंत, वी एस एम

संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा में बोलते हुए भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी नें महर्षि पतंजलि के अष्टांग योग की चर्चा की। उन्होनें कहा कि आज मानव मात्र योग साधना में या तो लीन है या लीन होना चाहता है। इस समय संयुक्त राष्ट्र संघ जैसे अतराराष्ट्रीय संस्थान को वर्ष में एक निश्चित दिन को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस घोषित कर देना चाहिए। इससे मानव मात्र के मन में योग के प्रति आस्था अटूट होगी । जो वर्ग योग से अभी तक परिचित नही है वे इस दिशा में आगे बढ़ना चाहेंगे। इससे मानव मात्र का तन और मन तथा उनकी आत्मा स्वस्थ होगी और विश्व में प्रसन्नता की लहर दौड़ जाएगी।

 

जहां होगा हर्ष वहां विशाद के लिए कोई स्थान नही होगा। जब होगा आशा और उमंग का संचार तो हताशा और निराशा जन जन से, मन और मस्तिष्क से अपने आप पलायन कर जाएगी।
योग किसके लिए
नरेद्र भाई मोदी के सुझाव को संयुक्त राष्ट्र संघ ने सर्वसम्मति से स्वीकार किया। योग संबंधी प्रस्ताव मूलत् भारत ने आगे बढ़ाया किंतु उसके अनुमोदन और समर्थन में 175 सदस्य देशो नें अपना नाम अंकित किया । इससे स्पष्ट हो गया कि विश्व के सभी देश चाहते हैं कि उनके नागरिक प्रसन्नचित रहे, निराशा और हताशा से दूर रहें जिससे धीरे धीरे आत्महत्या करने की प्रवृत्ति निर्मूल हो जाए। स्पष्ट है कि जीवन जीने के लिए है – उभरती समस्याएं समाधान के लिए हैं, विशाद को हर्ष में परिवर्तित करने के लिए विश्व बंधुत्व की आवश्यता है। इसीलिए तो वैदिक धर्म की प्राचीन परंपरा में पूरी वसुधा को कुटुंब मानने की परंपरा सदैव प्रोत्साहन दिया गया। इससे संबंधित मंत्र है, जिसे भारतीय संसद के केंद्रीय कक्ष के मुख्य द्वार पर बड़े बड़े अक्षरो में उभार कर लिखा गया है –
अयमं निज परोवैती गणना लघु चेतसाम
उदार चरितानाम तु वसुधैव कुटुंबकम
इसीलिए तो संकुचित दृष्टिकोण का भारत में और भारत की मानसिकता मे कोई स्थान नही है। योग इसी मानसिक दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करता रहा है, कर रहा है, और सदैव करता रहेगा।

भारत का इतिहास कहता है कि दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व में उत्तर प्रदेश के गोंडा नगर निवासी महर्षि पतंजलि ने परंपरा में विरासत से पाए योग ज्ञान को सूत्र में पिरोया और जन जन नें नाम दिया पतंजलि योग सूत्र। बहुत ही कम स्थान और कम शब्दो में योग की परिभाषा की गई और अष्टांग योग के आठ सोपान बताए गए।
पतंजलि अष्टांग योग
आज विश्व में जन जन में लोकप्रिय पतंजलि अष्टांग योग को सरल बना कर आम आदमी के सामने प्रस्तुत करने में योग ऋषि स्वामी रामदेव का योगदान महत्वपूर्ण है। उनसे भी पहले और आजकल भी जीवित स्वामी सत्यपति महाराज ने पूरे भारत में और विश्व के कई भागो में अष्टांग योग को सफल बनाया। एक मार्के की बात यह है कि स्वामी सत्यपति वैदिक धर्मी बनने के पूर्व इस्लाम के अनुयायी मुसलमान थे। निरक्षर और निर्धन थे। नदी के किनारे बलुही भूमि पर देवनागरी अक्षर बनाने के प्रयास करते थे। स्वामी दयानंद सरस्वती रचित सत्यार्थ प्रकाश की बाते सुनकर उनके मन में एक तड़प पैदा हुई वैदिक धर्म को जाननें, पढ़ने और उसका प्रचार करने के लिए। उन्होनें न केवल हिंदी बल्कि संस्कृत भाषा का गहन अध्ययन किया और वेद मंत्रो का अध्ययन करने के साथ साथ पतंजलि योग सूत्र का भी गहन पाठ किया।
एक अंतरराष्ट्रीय आर्य महासम्मेलन में भाग लेते हुए स्वामी सत्यपति ने इन पंक्तियों के लेखक से कहा
वक्ता होने के साथ साथ यदि आप मोक्ष की ओर बढ़ना चाहते हैं तो योग को अपनाइये ।
कहने का तातपर्य यह है कि दिन प्रतिदिन के जीवन में जिन जिन का संपर्क इन आर्य संन्यासियों से हुआ वे सभी स्वत् योग की ओर बढ़ने लगे। आज जब कहीं, जब कभी कोई सम्मेलन होता है तो उसमें योगासन का प्रदर्शन और योग के मर्म की चर्चा होना यदि अनिवार्य नहीं तो स्वत ही होने लगती है।

अष्टांग योग में जो आठ सोपान हैं, उनके नाम हैं –
1. यम
2. नियम
3. आसन
4. प्राणायाम
5. प्रत्याहार
6. धारणा
7. ध्यान
8. समाधि
प्रथम चार सोपान आत्म अनुशासन, खान-पान पर नियंत्रण, उठने बैठने, चलने और आसन गृहण करने की विधि और स्वास-प्रश्वास पर नियंत्रण करने पर और इनसे शरीर को बलिष्ठ एवं संयमी बनाने में सहायता मिलती है।
अंतिम चार सोपान में प्रथम है प्रत्याहार, इसके अर्थ हैं कि होने वाला योगी स्वत सांसारिक सुखो को जिसे उसकी इंद्रियां भोगना चाहती है जैसे आंख, जिह्लवा, नासिका आदि भोगना चाहती हैं उनसे अपने मन को खींच कर – इंद्रिय सुख से परे हो जाए।
धारणा का अर्थ है अपने मन मस्तिष्क को नियंत्रित करके केंद्रित करना। यदि समस्या है तो समस्या का समाधान ढूंढने पर मन मस्तिस्क को ऐसे केंद्रित करें जैसे अर्जुन ने बाण चलाने से पूर्व अपना ध्यान चिड़ियां की आंख पर केंद्रित किया।
ध्यान – योगी बनने की चेष्टा करने वाला व्यक्ति जब अपने मन और मस्तिष्क को पूर्ण रूप से शांत और दिन प्रतिदिन की समस्याओं से खींच कर केवल ब्रह्म में लीन होने के लिए दत्तचित्त हो जाता है तो उसे ध्यान लगाना कहते हैं। ध्यान लगाने वाला व्यक्ति इस दिशा में पारंगत हो जाने पर अनेक चुनौतियों का सामना करने के लिए तत्पर रहता है और समस्या समाधान ढूढना उसके बाएं हाथ का खेल बन जाता है।
समाधि – समाधि अष्टांग योग का अंतिम सोपान है और योग का यही लक्ष्य है। जब एक व्यक्ति समाधिस्त होता है वह योग की पराकाष्ठा पर पहुंचता है ।
इसलिए यह बात जानना अत्यंत आवश्यक है कि ओग मात्र व्यायाम नही है। इसे पी टी टेबल समझने की भूल नहीं करना चाहिए। इसमें कोई संदेह नहीं कि शरीर को बलिष्ठ बनना आवश्यक है कितु अंतत योग करने वाली आत्मा को लक्ष्य है मोक्ष की प्राप्ति।
उपसंहार
संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष का सबसे लंबा दिन अर्थात 21 जून को चुना। वर्ष 2015 की 21 जून को शुभारंभ है और प्रत्येक वर्ष 21 जून को विश्व के अनेक देश योग दिवस मनाते रहेंगे। यह एक सुखद समाचार है कि चीन नें अपने युन नान प्रांत में योग विश्वविद्यालय की स्थापना की और भारत से अनेक योगाचार्यो को आमंत्रित किया के वे पाठ्यक्रम निर्धारित करने में मार्गदर्शन करें।
कभी कभी कुछ जिज्ञासु प्रश्न करते हैं कि अष्टांग योग केवल वैदिक धर्म अर्थात हिंदुओं से ही संबंधित है?
अष्टांग योग मानव मात्र के लिए है और किसी विशेष धर्म एवं समुदाय से संबंधित नही है। अष्टांग योग विश्व के किसी धर्म का विरोधी भी नहीं है। अष्टांग योग मानव मात्र के लिए है और जन जन के हित में है।
इसीलिए योगासन के पश्च्यात जो प्रार्थना की जाती है वो मानव मात्र के लिए है –
सर्वे भवंतु सुखिन: सर्वे संतु निरामया।
सर्वे भद्राणि पश्यंतु मा कश्चिद दुख भाग्भवेत् ।।

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