🙏बुरा मानो या भला🙏
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—मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”
उत्तरप्रदेश के नोएडा में धर्मांतरण कराने के आरोप में यूपी ATS ने मोहम्मद उमर गौतम और मुफ़्ती काजी जहांगीर कासमी नामक दो मौलानाओं को गिरफ़्तार किया है। यहां खास बात यह है कि मौहम्मद उमर उत्तरप्रदेश के फतेहपुर जिले का रहने वाला है जिसका जन्म 1964 में एक राजपूत परिवार में हुआ था। 20 वर्ष की आयु में उसने इस्लाम धर्म ग्रहण किया था। इस्लाम अपनाने से पहले उसका नाम श्याम प्रताप सिंह गौतम हुआ करता था।
यहां सबसे विशेष यह है कि उस समय उसके गांव में न तो कोई मुस्लिम रहता था और न ही कोई मस्जिद थी। लेकिन नैनीताल के एक होस्टल में रहते हुए उसकी दोस्ती बिजनौर के किसी नासिर खान से हुई जिसने उसे इस्लामिक किताबें पढ़ने को दीं, और तकरीबन 2-3 साल तक यही सिलसिला चलता रहा और उसके बाद श्याम प्रताप सिंह गौतम धर्म बदलकर मौहम्मद उमर गौतम बन गया। कुल मिलाकर गंगा-जमुनी तहजीब और भाईचारे का असली रूप सामने आ ही गया। इस्लाम कबूल करने के बाद मौहम्मद उमर ने दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया से इस्लामिक स्टडीज में एम.ए किया।
उसके बाद उसने दिल्ली जामिया नगर के बटला हाउस इलाके की नूह मस्जिद के पास इस्लामिक दावा सेंटर स्थापित किया। इस सेंटर के माध्यम से वह तमाम दूसरे धर्मों के लोगों को इस्लाम धर्म अपनाने के लिए प्रेरित करता था और प्रेरणास्रोत के रूप में अपने आपको प्रस्तुत किया करता था, और अपनी कहानी सुनाया करता था।
अब फिलहाल उत्तरप्रदेश ATS ने इन मौलानाओं के ख़िलाफ़ जो FIR लिखवाई है उसके मुताबिक ये लोग ग़ैर मुस्लिमों को डरा-धमकाकर, उन्हें नौकरी और पैसे का लालच देकर धर्मांतरण कराते थे। ये लोग कमज़ोर वर्गों, बच्चों, महिलाओं और मूक-बधिरों को टारगेट कर उनका धर्मपरिवर्तन कराते थे। आशंका जताई जा रही है कि इन लोगों को इस काम के लिए विदेशों से फंडिंग होती थी और संभावना है कि इन लोगों के तार पाकिस्तान से भी जुड़े हुए हो सकते हैं।
इस पूरे घटनाक्रम को सुनने और समझने के बाद यह अनुमान लगाना सहज हो जाता है कि गजवा-ए-हिन्द क्या है? पूरे विश्व पर इस्लाम की हुकूमत के मायने क्या हैं? भारत में कथित सेक्युलरिज्म और धार्मिक शिक्षा की आज़ादी के नाम पर क्या गोरखधंधा चल रहा है, इसे समझना कोई मुश्किल नहीं है। लेकिन विडम्बना यह है कि यह सब कुछ देखने और समझने के बावजूद भी हम कबूतर की तरह आंखें मूंदकर बैठे हैं। धर्मांतरण का यह विशाल अजगर धीरे-धीरे हमारी संस्कृति को निगलता जा रहा है और हम ख़ामोश बैठकर तमाशा देख रहे हैं, क्योंकि हम केवल महंगाई, पेट्रोल-डीजल, बेरोजगारी और जातिवाद के मायाजाल में उलझे हैं, हम समझने को तैयार ही नहीं हैं कि पर्दे के पीछे का असल खेल क्या है। धर्मांतरण का यह खेल दशकों से चल रहा है और हमारी सरकारें सत्तामोह में धृष्टराष्ट्र बनी बैठी हैं। विदेशों से लगातार फंडिंग हो रही है, और हम सच्चर कमेटी की रिपोर्ट पर बहस कर रहे हैं। कितना हास्यास्पद है कि जिन लोगों को कमज़ोर, ग़रीब और मजदूर तबक़े का बताकर तमाम की तरह की सुविधाएं दी जा रही हैं, वही लोग पैसे और ताक़त के दम पर हमारा ही अस्तित्व मिटाने में लगे हैं।
जो लोग यह पूछते हैं कि आख़िर योगी-मोदी ने हिंदुत्व के लिए किया ही क्या है, उन अक्ल के अंधों को इस पूरे घटनाक्रम को बारीकी से समझना होगा। तब शायद उनकी समझ आ जाये कि गंगा-जमुनी तहज़ीब की आड़ में किस प्रकार से हमारी संस्कृति, सभ्यता, परम्पराओं और हमारे धर्म को नष्ट-भ्रष्ट करने का षडयंत्र रचा जा रहा है। अगर इस सबके बाद भी आंखें नहीं खुलती हैं, तो उसका सीधा अर्थ है कि आप स्वयं आत्महत्या करने को राजी हैं।
🖋️ मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”
समाचार सम्पादक- उगता भारत हिंदी समाचार-
(नोएडा से प्रकाशित एक राष्ट्रवादी समाचार-पत्र)
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