योग गहन संवेदना
दोहे
- संजय पंकज
जीवन-वैभव योग है,तन मन का है श्लोक!
शीतलता यह चांद की,सूरज का आलोक!!
किया भगीरथ ध्यान तो,दिखा उसे कैलाश!
जटा जूट में जोगिया, गंगा करे निवास!!
हुआ भगीरथ की तरह, साधक एक महान!
उसी पतंजलि ने किया, अटल योग संधान!!
सात तहें आकाश की,सातों सुर के राग!
महायोग की साधना,शीतल होती आग!!
पुरखों की है चेतना, पुरखों का अभियान!
धरती अंबर बीच में,फलित योग का ज्ञान!!
कर्म धर्म का मर्म है, सबका हो कल्याण!
योग बताता है सदा, मानव का उत्थान!!
ब्रह्म – जीव की एकता,कि शिव-शक्ति संयोग!
तन के कौशल से अधिक, योग मन: उद्योग!!
राधा – माधव एक हैं, दोनों के सुर एक!
एक प्राण बस बांसुरी,यही योग की टेक!!
रोम रोम में प्रेम हो, सांसें धड़कन आंख!
इसीलिए योगीश ने,किया काम को राख!!
अपनी सांसें देखना, उससे हो संवाद!
हुनर सिखाता योग है,इसको रखना याद!!
रेचक पूरक देखकर, क्यों होते हैरान!
करके इसको देखिए,देखें अपने प्राण!!
भारत ने अर्जित किया,दिया विश्व को बोध!
योग गहन संवेदना, नहीं कि केवल शोध!!
- ‘शुभानंदी’
नीतीश्वर मार्ग, आमगोला
मुजफ्फरपुर-842002
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