जवाहर लाल नेहरू ने देश में हुए प्रथम आम चुनाव में उत्तर प्रदेश की रामपुर सीट से पराजित घोषित हो चुके कांग्रेसी प्रत्याशी मौलाना अबुल कलाम आजाद को किसी भी कीमत पर जबरदस्ती जिताने के आदेश दिये थे।उनके आदेश पर उत्तरप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री पं गोविन्द वल्लभ पन्त ने रामपुर के जिलाधिकारी पर घोषित हो चुके परिणाम बदलने का दबाव डाला और इस दबाव के कारण प्रशासन ने जीते हुए हिन्दू महासभा के प्रत्याशी बिशन चन्द्र सेठ की मतपेटी के वोट मौलाना अबुल कलाम आजाद के पेटी में डलवा कर दुबारा मतगणना करवा कर मौलाना कलाम को जीता दिया।
ये रहस्योदघाटन उत्तर प्रदेश के तत्कालीन सुचना निदेशक शम्भूनाथ टंडन ने अपने एक लेख मे किया है।
उन्होंने अपने लेख “जब बिशन सेठ ने मौलाना आजाद को धूल चटाई थी भारतीय इतिहास की एक अनजान घटना” में लिखा है कि भारत में नेहरु ही बूथ कैप्चरिंग के पहले मास्टर माइंड थे।उस ज़माने में भी बूथ पर कब्जा करके परिणाम बदल दिये जाते थे और देश के प्रथम आम चुनाव मे सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही कांग्रेस के 12 हारे हुए प्रत्याशियों को जिताया गया।देश के बंटवारे के बाद लोगों में कांग्रेस और खास कर नेहरु के प्रति बहुत गुस्सा था लेकिन चूंकि नेहरु के हाथ में अंतरिम सरकार की कमान थी इसलिए नेहरु ने पूरी सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल करके जीत हासिल की थी।
देश के बंटवारे के लिए हिंदू महासभा ने नेहरु और गांधी की तुष्टिकरण की नीति को जिम्मेदार मानते हुए देश मे उस समय जबरदस्त आन्दोलन चलाया था और लोगों मे नेहरु के प्रति बहुत गुस्सा था, इसलिए हिंदू महासभा ने कांग्रेस के दिग्गज नेताओ के विरुद्ध हिंदू महासभा के दिग्गज लोगों को खड़ा करने का निश्चय किया था। इसीलिए नेहरु के विरुद्ध फूलपुर से संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी और मौलाना अबुल के विरुद्ध रामपुर से भईया बिशन चन्द्र सेठ को लडाया गया। नेहरु को भी अंतिम राउंड मे जबरदस्ती 2000 वोट से जिताया गया | वही सेठ बिशन चन्द्र के पक्ष मे भारी मतदान हुआ और मतगणना के पश्चात प्रशासन ने बकायदा लाउडस्पीकरों से सेठ बिशन चंद को लगभग 8000 वोट से विजयी घोषित कर दिया और फिर रामपुर मे हिंदू महासभा के लोगों ने विशाल विजयी जुलुस भी निकाला।फिर जैसे ही ये समाचार वायरलेस से लखनऊ फिर दिल्ली पहुंचा तो मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की अप्रत्याशित हार के समाचार से नेहरु तिलमिला और तमतमा उठे। उन्होंने तुरंत उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री पं गोविन्द वल्लभ पन्त को चेतावनी भरा संदेश दिया कि “मै मौलाना की हार को किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नही कर सकता, अगर मौलाना को जबरदस्ती नहीं जिताया गया तो आप अपना इस्तीफा शाम तक दे दीजिए।”
फिर पन्त जी ने आनन फानन में सूचना निदेशक (जो इस लेख के लेखक हैं) शम्भू नाथ टंडन को बुलाया और उन्हें रामपुर के जिलाधिकारी से सम्पर्क करके किसी भी कीमत पर मौलाना अबुल को जिताने का आदेश दिया।फिर जब शम्भू नाथ जी ने कहा कि सर इससे दंगे भी भडक सकते हैं तो इस पर पन्त जी ने कहा कि परवाह नहीं, नेहरु जी का हुकम है। फिर रामपुर के जिलाधिकारी को वायरलेस पर मौलाना अबुल को जिताने के आदेश दे दिये गए।फिर रामपुर का सिटी कोतवाल सेठ बिशनचन्द्र के पास गया और कहा कि आपको जिलाधिकारी साहब बुला रहे हैं।जबकि वो अपने विजयी जुलुस में लोगों की बधाईयां स्वीकार कर रहे थे। और जैसे ही जिलाधिकारी ने उनसे कहा कि मतगणना दुबारा होगी तो सेठ विशन चन्द्र ने इसका कड़ा विरोध किया और कहा कि मेरे सभी कार्यकर्ता जुलुस में गए हैं ऐसे में आप बिना मतगणना एजेंट के दुबारा कैसे मतगणना कर सकते है ? उनको मिले मतों में उनके ही सामने मौलाना आज़ाद के बक्से में डालने पर बिशन सेठ चीखते-चिल्लाते रहे, लेकिन उनकी एक नहीं सुनी गयी और जिलाधिकारी के साफ साफ कहा कि सेठ जी हम अपनी नौकरी बचाने के लिए आपकी बलि ले रहें हैं क्योंकि ये नेहरु का आदेश है।
शम्भू नाथ टंडन जी ने आगे लिखा है कि चूंकि उन दिनों प्रत्याशियो के नामों की अलग अलग पेटियां हुआ करती थी और मतपत्र पर बिना कोई निशान लगाये अलग अलग पेटियों मे डाले जाते थे इसलिए ये बहुत आसान था कि एक प्रत्याशी के वोट दूसरे की पेटी मे मिला दिये जाए। देश में हुए प्रथम आम चुनाव की इसी खामी का फायदा उठाकर नेहरु इस देश की सत्ता पर काबिज हुए थे और उस नेहरु ने इस देश मे जो भ्रष्टाचार के बीज बोये थे वो आज उनके खानदान के “काबिल” वारिसों के अच्छी तरह देखभाल करने की वजह के एक वटवृक्ष बन चुका है।
अटल जी उस समय प्रधानमंत्री पद से हट चुके थे। तब उन्होंने स्व. बिशनचंद सेठ की स्मृति में प्रकाशित स्मृति ग्रंथ ‘हिंदुत्व के पुरोधा’ नामक पुस्तक का विमोचन किया था। 18 नवंबर 2005 को विमोचित किये गये उक्त स्मृति ग्रंथ में उत्तर प्रदेश के सूचना विभाग के अवकाश प्राप्त उपनिदेशक शम्भूनाथ टण्डन ने एक लेख लिख कर उक्त घटना का रहस्योदघाटन किया था। इस स्मृति ग्रंथ का प्रकाशन अखिल भारतीय खत्री महासभा दिल्ली ने कराया था।अपने लेख का शीर्षक विद्वान लेखक ने बहुत ही सार्थक और गंभीर शब्दावली का प्रयोग कर के यूं दिया था-”जब भईये बिशन सेठ ने मौलाना आजाद को धूल चटाई थी,भारत के इतिहास की एकअनजान घटना।” इस घटना से सिद्ध होता है कि भारत में लोकतंत्र को ठोकतंत्र में और जनतंत्र को गनतंत्र में परिवर्तित करने की कुचालें पहले दिन से ही चल गयी थी।
नेहरू ने इन कुचालों को कहीं स्वयं चलाया तो कहीं इनका समर्थन किया अथवा अपनी मौन सहमति प्रदान की। आपको को स्मरण होगा कि उनके समय में जब जीप घोटाला हुआ तो उन्होंने उस घोटाले में लिप्त कांग्रेसी नेताओं का बचाव करने में ही बचाव समझा था।उन्होंने चीनी आक्रमण के समय अपने रक्षामंत्री कृष्णा मेनन का भी बचाव किया था।कुल मिला कर उनके भीतर भी वही अहंकार का भाव रहता था जो गांधी जी के भीतर रहता था कि मैंने जो किया या जो सोच लिया वही उत्तम है।श्री टंडन ने अपने उक्त आलेख में स्पष्ट किया था कि कैसे नेहरूकाल से ही मतों पर नियंत्रण करने की दुष्प्रवृत्ति देश के राजनीतिज्ञों में पैर पसार चुकी थी।कालांतर में इस दुष्प्रवृत्ति ने विस्तार ग्रहण किया और ये बूथ कैप्चरिंग तक पहुंच गयी।जो लोग ये कह कर नेहरू का बचाव करते हैं कि उनके समय में यह बीमारी इतनी नहीं थी,ये तो बाद में अधिक फैली। उन्हें ज्ञात होना चाहिए कि नेहरू का काल बीजारोपण का काल था।आम या बबूल का पौधा तो पिता या पितामह ही लगाते हैं और अक्सर उनके फल पुत्र या पौत्र प्राप्त करते हैं। अत: नेहरू ने अपने काल में बीजारोपण किया उसी के कटु फल हमें आज तक चखने पड़ रहे हैं। इंदिरा गांधी के काल में नेहरू द्वारा रखी गयी आधारशिला पर फटाफट भवन निर्माण हुआ और राजनीतिक भ्रष्टाचार के सुदृढ़ दुर्ग का निर्माण कार्य हर कांग्रेसी सरकार में चलता रहा।आज यह दुर्ग अत्यंत सुदृढ़ता प्राप्त कर गया है, इसकी जड़ें ‘स्विस बैंकों’ तक चली गयीं हैं। इसे तोड़ने के लिए मोदी सरकार को भागीरथ प्रयास करना पड़ रहा है।पहले आम चुनाव में हिंदू महासभा ने मुस्लिम तुष्टीकरण का पक्षघर मानते हुए पं.नेहरू और मौलाना आजाद के विरूद्घ हिंदू नेताओं को खड़ा करने का निश्चय किया था। इसका कारण था कि हिंदू महासभा ब्रिटिश काल के अंतर्गत अंतिम चुनाव (1945-46) के राष्ट्रीय असेम्बली के चुनाव में हिंदू महासभा ने कांग्रेस को यह कह कर अपना समर्थन दिया था कि वह देश का बंटवारा स्वीकार नहीं करेगी और किसी प्रकार का तुष्टिकरण भी नहीं करेगी। पर कांग्रेस वचन दे कर भी अपने वचन से मुकर गयी थी।उसने देश का बंटवारा करा दिया। इसलिए हिंदू महासभा ने कांग्रेस को पहले आम चुनाव में घेरने की तैयारी की। मौलाना आजाद को यदि बिशन चंद सेठ एक चुनौती दे रहे थे तो फूलपुर से संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी नेहरू को चुनौती दे रहे थे। नेहरू और मौलाना का गठबंधन मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति का एक मुंह बोलता प्रमाण था और लोगों में उस समय ऐसे किसी भी गठबंधन के विरूद्घ एक आक्रोश व्याप्त था।इसलिए लोगों ने मौलाना आजाद के विरूद्घ मतदान किया और बिशनचंद सेठ को 8 हजार मतों से विजयी बनाकर उन्हें हरा दिया था। 1957 और 1962 के चुनावों में यद्यपि सेठ जी कांग्रेसी प्रत्याशी को हराकर संसद पहुंचे परंतु पहले चुनाव में तो नेहरू वह दुष्कृत्य करने में सफल हो ही गये जिसके कटुफल देश को आज तक चखने पड़ रहे हैं। इससे नेहरू की लोकतांत्रिक छवि पर भी दाग लगा और देश को लोकतंत्र की हत्या का दंश पहले ही आम चुनाव में झेलना पड़ गया।
जब देश में हुए पहले चुनाव में ही कांग्रेस ने लोकतन्त्र की हत्या कर दी गयी हो, आज किस मुँह से कांग्रेस लोकतन्त्र की दुहाई देती है?
प्रस्तुति देवेंद्र सिंह आर्य
चेयरमैन : उगता भारत
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लेखक उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन हैं।