ईश्वर के मुख्य नाम ओ३म की चर्चा

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“ईश्वर का मुख्य नाम ओ३म् है। इसका प्रमुख अर्थ है सर्वरक्षक। ईश्वर सब की रक्षा करता है। परंतु उसकी रक्षा को सब लोग अनुभव नहीं कर पाते।”


जीवन में बहुत से लोग सही मार्ग पर चलते हैं। और बहुत से भटक भी जाते हैं। धर्म को छोड़कर अधर्म मार्ग पर चल पड़ते हैं। इसमें बहुत से कारण हैं। जिनमें से एक प्रमुख कारण संसार के लोगों का चाल-चलन है। “अधिकतर लोग शाब्दिक रूप से ईश्वर को मानते जानते हैं, वे ईश्वर को ठीक ठीक नहीं समझते।”
वास्तव में, “ईश्वर एक महाबलवान सर्वश्रेष्ठ सर्वशक्तिमान राजा है, जिसकी नजर से बचना असंभव है।” जो सब आत्माओं के कर्मों को हर स्थान पर, हर समय, यथावत देखता है। और उचित समय आने पर उन कर्मों का ठीक-ठीक फल देता है। कभी किसी को माफ नहीं करता। “जैसे बिजली की तार छूने से तत्काल करंट लगता है। बिजली की तार एक बार भी माफ नहीं करती। ईश्वर का न्याय नियम भी ऐसा ही है। वह भी अपराध करने पर, एक बार भी माफ नहीं करता।” जैसे जैसे छोटे बड़े कर्म होते हैं, वैसे ही छोटे बड़े उनके फल भी, उसी प्रकार से ईश्वर देता है। जो लोग अच्छे काम करते हैं, उनको ईश्वर अच्छे फल देता है। “इसीलिए वह न्यायकारी कहलाता है, और संसार के लोग उसका सम्मान करते हैं।”
परंतु संसार में सभी लोग इतने बुद्धिमान नहीं हैं, कि वे वास्तव में पूरा पूरा ईश्वर को ठीक से समझ लें। “कुछ लोग तो इतने लापरवाह और अज्ञानी हैं, कि वे अच्छे लोगों को भी बुरे मार्ग पर भटकाने की पूरी कोशिश करते हैं। दूसरों को लूटने ठगने में कोई कसर नहीं छोड़ते। ऐसे लोग ईश्वर के दंड से नहीं बच सकते। पशु पक्षी वृक्ष वनस्पति समुद्री जीव जंतु आदि योनियों में उन्हें भयंकर दुख भोगने पड़ते हैं।”
जो लोग ईश्वर को ठीक प्रकार से समझते हैं, वे जानते हैं कि “ईश्वर हमारा मित्र है। वह माता पिता के समान हमारा रक्षक है। गुरु आचार्य के समान हमारा शिक्षक है। वह सदा हमें बुराई से बचाता रहता है, सन्मार्ग दिखाता रहता है। यह उसके द्वारा की गई हमारी बहुत बड़ी रक्षा है।”
अब जो लोग इस बात को समझते हैं, वे ईश्वर की इस शिक्षा का लाभ लेते हैं। जब वे बुरे काम की योजना बनाते हैं, तब ईश्वर उन्हें अंदर से भय शंका लज्जा की अनुभूति उत्पन्न करके उन्हें बुराई से बचने का संकेत करता है। यह ईश्वर के द्वारा की गई उनकी रक्षा है। और जब वे अच्छे काम करते हैं, तो ईश्वर उन्हें अंदर से आनंद उत्साह निर्भयता आदि, इस प्रकार की अनुभूतियां उत्पन्न करके शुभ कर्म करने का संकेत देता है। यह भी उसकी रक्षा है। जो लोग ईश्वर की ऐसी रक्षा को समझते हैं, वे धैर्य पूर्वक पुरुषार्थ करते हुए स्वयं तो भटकते ही नहीं हैं, बल्कि दूसरों द्वारा भटकाने का प्रयास करने पर भी, ईश्वर उन्हें अच्छाई के मार्ग से गिरने से बचा लेता है। वे लोग बुराई के मार्ग पर नहीं जाते। ईश्वर उनकी सदा रक्षा करता है।
“अतः आप और हम सबको ईश्वर की इस रक्षा का पूरा पूरा लाभ लेना चाहिए। ईश्वर हमारा सबसे बड़ा रक्षक है, जो 24 घंटे हमारे साथ रहकर सदैव हमारी रक्षा करता है। उसका सहारा कभी न छोड़ें।”
स्वामी विवेकानंद परिव्राजक, रोजड़, गुजरात।

प्रस्तुति : देवेंद्र सिंह आर्य

चेयरमैन उगता भारत

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