Categories
समाज

भारत में मिलने वाली गोत्र परंपरा का वैज्ञानिक स्वरूप

 

गोत्र परम्परा हमारे समाज में सदियों से चलती आयी हैं। इस परम्परा के अनुसार अपने पिता, माता, नानी और दादी के गोत्रों में विवाह करना वर्जित हैं। मीडिया और कुछ छदम बुद्दिजीवी सदा हमारी इस परम्परा की बुराई करते आये हैं। वैसे हमारी कोई भी अच्छी बात, अच्छी परम्परा हो ये लोग उसका सदा विरोध ही करते है।

इनकी दुकानदारी हमारे विरोध से ही चलती हैं। इन तथाकथित बुद्धिजीवियों को यह भी नहीं मालूम कि अगर पशुओं में एक ही परिवार में सम्बन्ध बनने लगते है तो उनके बच्चे या तो कमजोर पैदा होते हैं अथवा कुछ ही दिनों में मर जाते हैं। गांव देहात के लोग जो गौ आदि पशु पालते है इस वैज्ञानिक सोच से भली प्रकार से जानते हैं।मगर पाकिस्तान में रहने वाले मुसलमान इस तथ्य को नहीं जानते। दो पीढ़ियों से पाकिस्तानी मुसलमान इग्लैंड जाकर बस गए। अपनी आदत के मुताबिक उन्होंने इंग्लैंड के ब्रैडफोर्ड, यॉर्कशायर में एक ही स्थान पर पर बसना शुरू कर दिया। इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार उन्होंने केवल अपनी माँ का पेट छोड़कर आपस में विवाह करना शुरू कर दिया। खाला(मौसी) की बेटी, बुआ की बेटी, चाचा-ताऊ की बेटी, अपने ही बाप की दूसरी बीवी के बेटी आदि से भी सम्बन्ध बनाये। उनके इस प्रकार से सम्बन्ध बनाने का दुष्परिणाम आगे उनकी संतान में देखने में आया। इंग्लैंड जैसे देश में अगर एक भी बच्चे की मृत्यु अस्पताल में ईलाज के दौरान होती है तो उसका संज्ञान एक मेडिकल बोर्ड बनाकर लिया जाता हैं। ब्रैडफोर्ड, यॉर्कशायर के हस्पतालों में एशिया मूल की आबादी 20 से 30% हैं जबकि अस्पताल में भर्ती एवं मृत्यु दर में एशिया मूल के लोगों में 50% से अधिक पाई गई। मरने वाले बच्चों में तीन बातें समान पाई गई। पहली वे सभी मुस्लिम थे। दूसरी उन्होंने अपने ही परिवार में आपसी रिश्ते कायम किये थे। तीसरी वे दो तीन पीढ़ियों से ऐसा कर रहे थे। चिकित्सकों ने यह भी पाया कि सभी बच्चों में जो बीमारियां मिली वे अनुवांशिक अर्थात Genetic थी। वही इंग्लैंड में रहने वाले हिन्दुओं में ये बीमारियां बहुत न्यून मिली। इंग्लैंड में पैदा होने वाले पाकिस्तानी बच्चों की संख्या 3% है जबकि अनुवांशिक बिमारियों में उनका अनुपात 33% मिला। यानि हर तीन में से एक अनुवांशिक रोग से पीड़ित बच्चा पाकिस्तानी मुसलमान था। चिकित्सा विज्ञान के अनुसार इसका मूल कारण गोत्र परम्परा को नहीं मानना था। इंग्लैंड के शोध को पाठक जेनेटिक ग्रुप स्टडी के नाम से गूगल पर आसानी से खोज सकते है।

इंग्लैंड के इस प्रसिद्द शोध के आकड़ें स्पष्ट रूप से यह सिद्ध करते है कि गोत्र परम्परा वैज्ञानिक है। मैंने स्वयं तमिल नाडु में अपनी MBBS की शिक्षा के दौरान एक ही हिन्दू परिवार के तीनों बच्चों को एक ही अनुवांशिक बीमारी से पीड़ित देखा था। कारण उनके माता-पिता आपस में मामा -भांजी थे। तमिल नाडु में कुछ परिवारों में आज भी गोत्र परम्परा को न मानकर आपस में विवाह किया था।

हमें गर्व है कि हम आर्यों की महान एवं वैज्ञानिक गोत्र परम्परा को मानने वाले है।

डॉ विवेक आर्य, शिशु रोग विशेषज्ञ, दिल्ली

Comment:Cancel reply

Exit mobile version