मनमोहन कुमार आर्य
प्रोफेसर बलराज मधोक के पिता का नाम श्री जगन्नाथ था। आप क्षत्रिय वर्ण के थे। आप आर्यसमाज, हजूरीबाग, श्रीनगर, कश्मीर के मंत्री रहे। देश की आजादी से पूर्व जिन दिनों आप युवा थे, आपने नौकरी के लिए डाकतार विभाग में इंस्पैक्टर के पद पर नियुक्ति के लिए आवेदन किया था। इस पद की लिखित परीक्षा में आप सफल हो गये थे और अब एक साक्षात्कार के बाद सफल होने पर आपको यह पद मिलना था। आपको साक्षात्कार के लिए बुलाया गया। आपका साक्षात्कार एक अंग्रेज अधिकारी ने लिया। साक्षात्कार में उसने आप से पूछा कि आप किस महापुरूष और ग्रन्थ को अपना आदर्श मानते हैं और आपकी विचारधारा क्या है? श्री जगन्नाथ जी ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि मैं ऋषि दयानन्द जी और उनके ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश को मानता हूं और मेरी विचारधारा आर्यसमाजी है।
आपका यह उत्तर सुनकर अंग्रेज अधिकारी ने सर्वथा योग्य होते हुए भी आपका चयन नहीं किया। कारण आपको अंग्रेज अधिकारी के व्यवहार से ज्ञात हो चुका था। यह कारण आपका ऋषि दयानन्द का अनुयायी होना और सत्यार्थ प्रकाश का अध्ययन करना था। कारण का ज्ञान होने पर श्री जगन्नाथ जी ने निर्णय किया कि उन्हें जीवन में सरकारी नौकरी नहीं करनी है। यह संस्मरण श्री बलराज मधोक ने अपनी आत्मकथा में दिया है। आर्यों ने देश, धर्म और जाति की रक्षा के लिए अनगिनत बलिदान दिए। यह इतिहासिक सत्य है।
हम आशा करते हैं कि आर्यसमाज के लिए अपना जीवन दांव पर लगाने वाले श्री जगन्नाथ जी को आर्यसमाजी बन्धु सादर श्रद्धापूर्वक स्मरण करेगें और इस प्रभावपूर्ण घटना का प्रचार करेंगे।
(धन्य है देव दयानन्द जिनके बताये मार्ग पर चलने के लिए सच्चे आया सदा तत्पर रहते है। )