कुंभ मेले पर उंगलियां उठाने वाली जिन्नावादी जमात को करारा जवाब
🙏बुरा मानो या भला🙏
————मनोज चतुर्वेदी
आइआइटी-बीएचयू के पूर्व छात्र व फार्मास्युटिकल वैज्ञानिक डा. वाचस्पति त्रिपाठी ने एक हजार कल्पवासियों में नेचुरल इम्युनिटी देखी थी, जिनमें वायरस, बैक्टीरिया और फंगस से लडऩे की अभूतपूर्व इम्युनिटी थी। शोध में सभी कल्पवासियों में एक एंटीबाडी विकसित हो चुकी थी। वहीं बीएचयू में बायो-टेक्नोलाजी डिपार्टमेंट में इम्यूनोलाजिस्ट प्रो.राकेश सिंह ने भी नेचुरल इम्युनिटी का समर्थन करते हुए कहा कि- “कुंभ के साथ ही भारत की परंपरागत जीवनशैली नेचुरल इम्युनिटी की बहुत बड़ी स्रोत है। घरों में एयर प्यूरीफायर या फिर एक जगह बंद लाइफस्टाइल ने हमको नेचुरल बैक्टीरिया और वायरस से दूर किया है। इससे हमारी इम्यून सेल सुसुप्तावस्था में पड़ी रहती हैं, जबकि कुंभ जैसे आयोजनों में प्रतिभाग करने से यह सालों-साल बेहद सक्रिय बनी रहती हैं और बाहरी रोगों के प्रति लड़ने में शक्ति प्रदान करती है। यह नेचुरल इम्युनिटी जिनके पास है, वे कोरोना को पस्त करने में सक्षम हैं।” मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो यह बात अब विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भी मान ली है।
यह शोध उन तमाम जिन्नावादियों को करारा जवाब है जो हाल ही में बीते कुंभ मेले को कोरोना संक्रमण फैलाने का एक बड़ा कारण मान रहे थे। भारतीय संस्कृति और परम्पराओं पर उंगलियां उठाने से पहले प्रत्येक व्यक्ति को यह समझना आवश्यक है कि भारतीय सनातन संस्कृति, हमारे पवित्र धर्मग्रन्थों में लिखे हुए वचन, महान ऋषियों-महाऋषियों के अनुभव और अनुमान और परम्पराएं पूर्णतः वैज्ञानिक आधार पर हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो भारतीय सनातन धर्म ही आधुनिक विज्ञान का आधार है। यह अलग बात है कि विदेशी आक्रांताओं ने उन तमाम प्रमाणों को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया जिनमें सनातन धर्म के वह गूढ़ रहस्य छिपे थे जिन्हें आजतक आधुनिक विज्ञान भी नहीं ढूंढ पाया है।
हिन्दू सनातन धर्म के समस्त रीति/रिवाज, तीज/त्यौहार और परम्पराएं किसी न किसी वैज्ञानिक आधार पर टिकी हैं। हालांकि यह भी सत्य है कि कुछ धूर्त और मक्कार पोंगापंथियों ने पाखंड और अंधविश्वासों को बढ़ावा दिया है जिनका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है, लेकिन उनका हमारे वेदों औऱ शास्त्रों से भी कोई लेना-देना नहीं है।
कुम्भ का मेला और गंगा स्नान के पीछे के विज्ञान को उपरोक्त शोध में बहुत ही प्रमाणिकता के साथ प्रस्तुत किया गया है। परन्तु समस्या यह है कि जो लोग हिन्दू और हिंदुत्व विरोधी हैं, जिनके पास कोई तर्क ही नहीं है, जो लकीर के फकीर हैं, जो उन विदेशी आक्रांताओं को ही अपना पूर्वज मानते हैं जिन्होंने हमारी संस्कृति और सभ्यताओं को नष्ट किया। ऐसे तमाम लोगों की समझ सनातन धर्म के विज्ञान को कभी नहीं देख सकती है क्योंकि उनकी आंखों पर कट्टरपंथ और वामपंथ का चश्मा जो चढ़ा है।
🖋️ मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”
समाचार सम्पादक- उगता भारत हिंदी समाचार-
(नोएडा से प्रकाशित एक राष्ट्रवादी समाचार-पत्र)
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