आर्यों का संप्रदाय परिवर्तन
ऊपर हम यह दिखला आए हैं कि आस्ट्रेलिया निवासी अनार्य लोग, मौका पाकर द्रविड़ होकर ब्राह्मण बन गए और अपने देश तथा जाति के असभ्य और अनार्य आचार – विचारों को आर्यों में वेद, धर्म और यज्ञ आदि के नाम से प्रचलित किया।वही सब आचार – विचार पहले पड़ोसी देशों में और फिर उड़ीसा ,बंगाल ,मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र आदि में धीरे-धीरे प्रचलित हुए। क्योंकि यह निश्चित बात है कि मनुष्य जाति यदि धर्म, शासन और सामाजिक बंधनों से सीधे रास्ते पर ने चलाई जाए,तो वह पतित होकर आनाचारिणी हो जाती है।विशेषकर ऐसी स्थिति में जब उसका धर्म और समाज खुद ही अधर्म और अनाचार को कर्तव्य तथा मोक्षप्रद मान ले,ऐसी दशा में उत्तम मनुष्य को भी बिगड़ने में देर नहीं लगती है।
हम गत पृष्टों में लिखा है कि, पूर्व काल ही में मद्रास प्रांत में ऑस्ट्रेलिया ,अफ्रीका और मेसोपोटामिया की हिट्टाइट जाति का जमाव हो गया था।इस जमे हुए द्रविड़दल में असीरिया और मिस्र के असुरों के ही जैसे आचार और विचार अच्छी तरह भरे हुए थे, क्योंकि एक ही स्थान में उत्पन्न होने से इन सब के आचार-विचार एक समान ही थे।उन विचारों में जो विचार दर्शनशास्त्र से संबंध रखते थे, वही आसुर उपनिषद कहलाते थे ,इस आसुर उपनिषद् का जिक्र छांदोग्य उपनिषद् में है। वहां लिखा है कि, “असुराणां ह्मेषा उपनिषद्’ अर्थात यह असुरों का उपनिषद् है।इससे प्रतीत होता है कि उपनिषदों में आसुर उपनिषद् का समावेश है। उपनिषदों में ही नहीं,वह गीता और ब्रह्यसूत्रों में भी मिश्रित है। कहने का मतलब यह है कि उपनिषद् , गीता और वेदांतदर्शन जिन्हें प्रस्थानत्रयी कहा जाता है, कुछ अंशों में आसुरी विचारों से भरे हुए हैं।इस प्रस्थानत्रयी की आलोचना करने के पूर्व जान लेना चाहिए कि इसका यह नाम क्यों रखा गया ।
क्रमशः
(देवेंद्र सिंह आर्य, लेखक उगता भारत के चेयरमैन हैं )
लेखक उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन हैं।