रसना हरि को नाम ले, मत करना प्रमाद
रसना हरि को नाम ले,
मत करना प्रमाद।
अनहद – चक्र मे बजे,
सुन अनहद का नाद॥ 1469॥
व्याख्या:- मनुष्य प्रकृति में परमपिता परमात्मा की उत्कृष्टतम रचना है।चौरासी लाख योनियों में केवल मनुष्य को ही प्रभु ने ऐसी रसना का अमोघ उपहार दिया है,जिससे वह संवाद के साथ-साथ भगवान की भक्ति भी कर सकता है और परलोक को भी सुधार सकता है किन्तु कैसी विडम्बना है कि यह नादान मनुष्य रसना का दुरुपयोग वाणी के उद्वेगो (दोषों) में तो करता है, जैसे – झूठ बोलना ,कटु बोलना, निन्दा – चुगली करना, असंगत बकवास करना,लेकिन प्रभु का जाप करने में बड़ी अवहेलना करता है।यह देखकर तरस भी आता है, करुणा भी आती है। अनायास ही मुख से निकलता है-
” रखे पारस बेचे तेल,
यह देखो कुदरत के खेल”
रसना प्रभु का विशिष्ट उपहार है। इसके लिए ये मनुष्य ! तुझे कृतज्ञ होना चाहिए। ब्रह्म मुहूर्त में उठकर भगवद् भाव के साथ परमपिता परमात्मा का जाप करना चाहिए। इसमें प्रमाद रत्ती भर भी कदापि नहीं करना चाहिए। प्रातःकाल पक्षियों के कलख को सुनो, वे भी सुबह उठकर प्रभु का नाम लेते हैं।प्रभु के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। क्या तेरा दायित्व नहीं बनता ? इस पर गंभीर चिंतन करो।
सृष्टि का नियम है “जहां गति है,वहां ध्वनि है।”तेरे वक्षस्थल में हृदय चक्र है, जिसे अनहत – चक्र भी कहते हैं।हृदय में स्पन्दन होता है,गति होती है और गति के साथ ओ३म् ….. ओ३म् की ध्वनि होती है।इसे हमारे ऋषियों ने ‘अनहद – नाद’ कहा है। इसे सुनो,ज़रा गौर से सुनो और अपना आराध्य परम पिता परमात्मा को चुनो ताकि जीवन का कल्याण हो सके,यह मानव जीवन सार्थक हो सके।
पाठकों की जानकारी के लिए यह बताना प्रासंगिक होगा कि सभी ग्रह ,नक्षत्र आकाश में गति कर रहे हैं,यहां तक कि इलेक्ट्रॉन ,प्रोटॉन ,न्यूट्रॉन सभी गति कर रहे हैं जिनसे ‘ सो अहम् ‘ अथवा ओ३म् नाद प्रतिध्वनित हो रहा है।अब तो इसे ‘नासा’ ने भी स्वीकार कर लिया है।इसलिए है मनुष्य! तेरी रसना से भी ओ३म् का नाद निकलना चाहिए और अपना मानव जीवन परम – पद की ओर अग्रसर करना चाहिए।
क्रमशः
प्रोफेसर विजेंद्र सिंह आर्य
(लेखक उगता भारत समाचार पत्र के मुख्य संरक्षक हैं)