जीवन में सुख दुख दोनों ही आते रहते हैं, दोनों का सामना करने के लिए करनी चाहिए तैयारी : स्वामी विवेकानंद परिव्राजक

“जीवन में सुख और दुख दोनों आते हैं। दोनों का सामना करने के लिए तैयार रहें।”
प्रत्येक व्यक्ति चाहता है, कि “मेरे जीवन में केवल सुख ही आए, दुख कभी न आए।” ऐसी इच्छा करना अथवा ऐसा सोचना, तो प्रत्यक्ष आदि प्रमाणों के विरुद्ध होने से ठीक नहीं है।


“ऐसा कोई व्यक्ति संसार में आज तक उत्पन्न नहीं हुआ, और न होगा, जो जन्म तो ले ले, और उसके जीवन में दुख न आए। ऐसा होना, संसार में तो असंभव है।” ऐसा तो केवल मोक्ष में ही होता है। जिनको ऐसी इच्छा हो, कि “केवल सुख ही मिले, दुख कभी न मिले,” वे महर्षि पतंजलि के अष्टांग योग का अभ्यास करके मोक्ष प्राप्ति करें। वहां उनकी इच्छा पूरी हो सकती है। “क्योंकि सब ऋषियों ने वेदों के आधार पर यही बताया है कि जीवन में जो दुख आते हैं, उनका मूल कारण संसार में जन्म लेना है।” जब तक आप जन्म लेते रहेंगे, तब तक दुख निश्चित रूप से आएगा। कम या अधिक, आज या कल, कोई न कोई, कभी न कभी, दुख आएगा ही।
एक व्यक्ति ने पूछा कि जन्म लेने पर दुख क्यों आता है, इसका जन्म लेने से क्या संबंध है? तो ऋषियों ने उत्तर दिया, कि प्रकृति, जो कि जड़ पदार्थ है। उसमें तीन प्रकार के सूक्ष्मतम परमाणु हैं। जिनके नाम हैं, सत्व रज और तम।
इनमें से सत्त्व नामक परमाणु सुख देता है। रज नामक परमाणु दुख देता है। और तम नामक परमाणु मोह अर्थात मूर्खता नशा नींद आलस्य इत्यादि भावनाओं को उत्पन्न करता है।
जन्म लेने का अर्थ है, “आत्मा द्वारा शरीर मन बुद्धि इंद्रियां इत्यादि पदार्थों को धारण करना.” ये शरीर मन बुद्धि इंद्रियां इत्यादि सब के सब पदार्थ प्रकृति अर्थात सत्व रज तम से ही बने हैं। जब आत्मा का शरीर आदि से संबंध हो गया, तो स्वाभाविक है, कि ये तीनों प्रभाव = सुख-दुख मोह, आत्मा पर आएंगे ही। जैसे अग्नि के पास बैठने से गर्मी मिलती है। इसी प्रकार से, सत्व रज तम के साथ संबंध होने पर, उनके प्रभाव = सुख दुख मोह भी आत्मा को प्राप्त होंगे ही। इसलिए ऋषियों ने कहा, कि “जन्म लेने पर यह असंभव है, कि व्यक्ति दुख से बच जाए।”
तो सार यह हुआ, कि जब आपने जन्म ले ही लिया है, प्रकृति से संबंध हो ही गया है, तो जीवन में सुख भी आएगा, दुख भी आएगा और मोह भी आएगा। मोह अर्थात अविद्या, मूर्खता। ये तीनों प्रभाव आपके जीवन में समय समय पर आते रहेंगे।
जो व्यक्ति इस सत्य को समझ लेगा, वह दुख आने पर घबराएगा नहीं, और उसे स्वाभाविक मानकर उससे संघर्ष करेगा। युद्ध करेगा। बुद्धिमत्ता से पूरी मेहनत और ईमानदारी से जो व्यक्ति इन दुखों से युद्ध करेगा, दुखों से बचने के उपाय ढूंढेगा, पूरा पुरुषार्थ करेगा, वह जीत जाएगा। उसका चिंतन इस प्रकार से होगा, कि “जीवन में कुछ समय बाद सुख भी तो आएगा। फिर चिंता की क्या बात है!” ऐसा सोचने वाला व्यक्ति दुख के दिनों को भी शांतिपूर्वक पार कर लेगा।
“इसलिए दुख आने पर (आजकल कोरोनावायरस से रोगी या प्रभावित हो जाने पर) निराश न हों, धैर्य से सुख आने की प्रतीक्षा करें, सुख भी निश्चित रूप से आएगा।”
स्वामी विवेकानंद परिव्राजक, रोजड़, गुजरात।

प्रस्तुति  : अरविंद राजपुरोहित

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