डॉ. कौशल कांत मिश्रा
कोरोना की दूसरी वेव में हमने देश के स्वास्थ्य ढांचे को पूरी तरह से चरमराते हुए देखा। बेड, ऑक्सिजन और दवाओं की कमी की वजह से कई लोगों ने अपनों को खोया। कोरोना का कहर जिस तरह बरपा, उससे हमें यह बात तो समझ आ गई है कि जीडीपी के 2 पर्सेंट से भी कम खर्च लचर स्वास्थ्य सुविधाओं की अहम वजह बना। यह भी साफ है कि कोरोना से वैक्सीन के दम पर ही निपटा जा सकता है।
वैक्सीन उत्पादन के मामले में भारत ने दुनिया की शक्तियों की टक्कर दी। साइंस जर्नल लैंसेट के मुताबिक भारत स्वास्थ्य सेवा की गुणवत्ता और पहुंच के मामले में दुनिया के 195 देशों में 145वें स्थान पर है। इसके बावजूद भारत के वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं ने मिलकर कोरोना की स्वदेशी वैक्सीन तैयार कर ली। अभी केंद्र सरकार की वैक्सिनेशन पॉलिसी के तहत 18 से 44 साल के लोगों को वैक्सीन लेने के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी है। हालांकि 45 साल से ज्यादा लोगों के लिए वॉक इन रजिस्ट्रेशन की सुविधा भी दी गई है।
ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन के चलते भारत की एक बड़ी आबादी स्मार्टफोन या इंटरनेट के अभाव के कारण आज भी वैक्सिनेशन ड्राइव से जुड़ नहीं पा रही है। सरकार की कोविन ऐप से की जा रही रजिस्ट्रेशन पॉलिसी को सुप्रीम कोर्ट ने ग्रामीण और शहरी भारत में बन रहे एक बड़े भेद के रूप में देखा है। सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक यह पॉलिसी गांव और दूर दराज की जनसंख्या के लिए मुश्किल है। इसके चलते एक बहुत बड़ा तबका (लगभग 50 करोड़ ) वैक्सिनेशन ड्राइव से दूर है।
भारत में वैक्सीनेशन
टेक ARC के आंकड़ों के मुताबिक साल 2020 तक भारत में करीब 70 करोड़ स्मार्ट फोन यूजर्स थे। इन 70 करोड़ स्मार्ट फोन यूजर्स में 23 फीसदी के पास अभी भी इंटरनेट की सेवा नहीं है। वहीं देश की आबादी 138 करोड़ से अधिक है, जिसमें 31 करोड़ अभी भी अपना नाम तक पढ़ना-लिखना नहीं जानते। ऐसे में हम एक बड़ी आबादी से यह उम्मीद कैसे कर सकते हैं कि वह कोविन ऐप के जरिए रजिस्ट्रेशन कर पाएंगे? महामारी के लगातार बदलते और घातक होते स्वरूप को देखते हुए इस बहुत बड़े तबके को वैक्सिनेशन ड्राइव से जोड़ा जाना बेहद जरुरी है। अगर समय रहते इन्हें वैक्सिनेशन ड्राइव से नहीं जोड़ा गया, तो कोरोना हमारे देश के ग्रामीण और दूरस्थ इलाकों में एक एपिडेमिक के रूप में बना रह जाएगा।
सवाल यह उठता है कि जब करोड़ों लोग अभी भी इंटरनेट और स्मार्टफोन से दूर हैं, तो ऐसे में सबको वैक्सीन कैसे दी जा सकती है? मेरी नजर में इसका सबसे सरल और प्रभावी उपाय यह है कि हमें चुनाव आयोग के साधनों और उसकी विशेषज्ञता का सहारा लेना चाहिए। जैसे चुनावी दौर में चुनाव आयोग देश के दूरस्थ इलाकों तक पूरा सिस्टम तैयार कर लोगों को उनके वोट डालने का मौका देता है, उसी तरह सरकार भी चुनाव आयोग का प्रयोग कर सभी तक वैक्सीन का लाभ पहुंचा सकती है। इससे हम बूथ लेवल तक सभी को वैक्सीन लगा सकते हैं।
अपने अनुभव का इस्तेमाल कर चुनाव आयोग उन लोगों तक भी वैक्सीन पहुंचा सकता है जो ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करना नहीं जानते या सुविधा न होने की वजह से रजिस्ट्रेशन कर नहीं सकते। ऐसा करने से जहां सरकार वैक्सीन को बूथ लेवल तक पहुंचाकर लोगों को फायदा पहुंचा सकती है, वहीं लोगों को भी लंबी दूरी तय करने से निजात मिलेगी। इससे बुजुर्गों को भी फायदा होगा, जो वैक्सीनेशन सेंटर दूर होने की वजह से वैक्सीन लगवाने से बच रहे हैं।
अभी जिस तरह वैक्सिनेशन ड्राइव चल रही है उसमें कई दिक्कतें हैं। मेरी नजर में राज्यों को वैक्सीन का मैनेजमेंट सौंपा जाना भी पूरी प्रक्रिया के पटरी से उतरने का प्रमुख कारण रहा है। केंद्र को सभी आयु के लोगों को वैक्सीन देने की पूरी जिम्मेदारी खुद संभालनी चाहिए थी। केंद्र सरकार को अपने सभी संसाधनों का प्रयोग कर वैक्सीन की उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के साथ ही उसके उचित आवंटन के लिए भी एक केंद्रीय नीति बनानी चाहिए। साथ ही देश की जनता को भी अपनी जिम्मेदारी समझते हुए कोरोना के खिलाफ लड़ाई में पूरा साथ देने की जरूरत है।
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