मत करो परवाह इस बात की कि ‘लोग क्या कहेंगे’ : विवेकानंद परिव्राजक

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“लोग क्या कहेंगे” इस बात की व्यक्ति इतनी चिंता करता है, कि वह सही काम को सही समझते हुए भी नहीं कर पाता। और गलत काम को गलत समझते हुए भी नहीं छोड़ पाता।

हर व्यक्ति सोचने विचार करने में स्वतंत्र है। योजनाएं बनाने और आचरण करने में स्वतंत्र है। वह अपनी इच्छा और बुद्धि से सोचता है। आप कितना भी सही काम करें, तो भी दूसरा व्यक्ति उसको ठीक से नहीं जान पाता। क्योंकि उसकी बुद्धि इतनी ऊंची नहीं है। उसके संस्कार अलग प्रकार के हैं। उसकी शिक्षा अलग प्रकार की है। वह आपके आचरण व्यवहार वाणी विचार को न तो समझता है, और न ही समझना चाहता है। वह सोचता है कि “आप के आचरण व्यवहार वाणी विचार को समझने से मुझे क्या लाभ? मैं इस काम में इतना परिश्रम क्यों करूं?”
इसके अतिरिक्त प्रायः लोगों में ईर्ष्या द्वेष अभिमान आदि दोष भी रहते ही हैं। इन कारणों से भी कोई व्यक्ति दूसरे की बात को ठीक से नहीं समझना चाहता। बल्कि दूसरों पर झूठे आरोप लगाकर उन्हें बदनाम कर के दुखी करना चाहता है। चाहे वह आपके परिवार का सदस्य हो, चाहे पड़ोसी हो, मित्र हो, शत्रु हो, या देश का कोई भी नागरिक हो। अब जिसकी जैसी मानसिकता है, जैसा संस्कार है, उसे आप बदल नहीं सकते, जब तक वह न चाहे। क्योंकि वह सोचने में स्वतंत्र है। जैसे आप सोचने में स्वतंत्र हैं।
आप अपनी इच्छा से अपनी बुद्धि से अपने संस्कारों से सब विचार करते हैं, आप जैसी योजनाएं बनाते हैं, जैसे कर्म करते हैं, क्या कोई व्यक्ति आपको रोक सकता है? नहीं रोक सकता। “आपके विचारों को कोई बदल सकता है, जब तक आप न चाहें? कोई नहीं बदल सकता।”
इसी प्रकार से, जैसे कोई दूसरा व्यक्ति आपके विचारों को नहीं बदल सकता। वैसे ही आप भी दूसरे व्यक्ति के विचारों को नहीं बदल सकते।
तो ऐसा सोचें, “जब हम दूसरे व्यक्ति के विचारों को बदल ही नहीं सकते, फिर वह हमारे बारे में कुछ भी सोचे, तो हम उसकी चिंता क्यों करें?” वह हमारे बारे में जो भी सोचता है, क्या उसके सोचने से हम वैसे हो जाएंगे? नहीं। तो उसके सोचने से हमें क्या फर्क पड़ता है? कुछ नहीं। “अतः हमको अपने ढंग से सोचना काम करना और जीना है। वह अपने ढंग से सोचेगा काम करेगा और जिएगा। तो क्यों उसकी चिंता करनी”?
इसलिए अपने में मस्त रहिए। जो आपको ठीक लगता है, वह काम करिए। बस इतना जरूर ध्यान रखिए, कि वह आपका विचार वाणी व्यवहार आचरण देश के संविधान के अनुकूल हो। और ईश्वर के भी संविधान के भी अनुकूल हो। इनके विरुद्ध न हो।
स्वामी विवेकानंद परिव्राजक, रोजड़, गुजरात।

 

प्रस्तुति : अरविंद राजपुरोहित

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