रतीश कुमार झा
इफको का मानना है कि जहां परंपरागत यूरिया पौधों को नाइट्रोजन पहुंचाने में 30-40% प्रभावी सिद्ध हुयी है वहीं नैनो यूरिया लिक्विड 80% से ऊपर प्रभावी हुयी है। नैनो यूरिया में मौजूद नाइट्रोजन फसलों की आवश्यकताओं को प्रभावी तरीके से पूरी कर सकता है।
भारतीय कृषक उवर्रक कोऑपरेटिव लिमिटेड (इफ्को) ने नैनो लिक्विड तरल 31 मई को लॉन्च किया। यह पौधों के पोषण के लिए परंपरागत यूरिया के विकल्प के रूप में काम करेगा। नैनो यूरिया लिक्विड जारी करते हुये इफको ने कहा कि ‘विश्व का नंबर-1 नैनो यूरिया लिक्विड’ को 50वीं जनरल बॉडी बैठक के दौरान ऑनलाइन-ऑफलाइन मोड में जारी किया गया। नैनो यूरिया कृषि क्षेत्र में पैदावार बढ़ोतरी, जल उपयोग और प्रदूषण में कमी और सरकारी सब्सिडी में कमी के माध्यम से क्रांतिकारी बदलाव ला सकती है। गौरतलब है कि भारत में यूरिया का वार्षिक उपभोग 30 मिलियन टन है। आमतौर पर एक किसान प्रति एकड़ दो यूरिया बोरियों का इस्तेमाल करता है। इफको के आरंभिक परीक्षण के परिणाम से पता चलता है कि 500 मिलीलीटर (एमएल) का एक नैनो यूरिया बोतल परंपरागत यूरिया की 45 किलोग्राम की एक बोरी जितना ही असरदार साबित हो सकता है।
नैनो यूरिया की कीमत कितनी है?
नैनो यूरिया के 500 एमएल के एक बोतल का मूल्य सब्सिडी के बिना 240 रुपये रखा गया है। इस तरह परंपरागत यूरिया की एक बोरी के मुकाबले यह 10% सस्ता है। इस तरह यह किसानों का इनपुट लागत कम करेगा। परंपरागत यूरिया, जिसका मूल्य सरकार द्वारा प्रशासित होता है, पर सरकारी सब्सिडी में भी कमी आएगी। नैनो यूरिया लॉजिस्टिक्स व्यय को भी कम करेगा। चूंकि नैनो यूरिया लिक्विड की एक बोतल 500 एमएल की है जो जेब में भी आ जाएगी। इस तरह यह वेयरहाउस एवं लॉजिस्टिक्स खर्चे को कम करेगा।
नैनो यूरिया से फसलों को कितना फायदा होगा?
इफको का मानना है कि जहां परंपरागत यूरिया पौधों को नाइट्रोजन पहुंचाने में 30-40% प्रभावी सिद्ध हुयी है वहीं नैनो यूरिया लिक्विड 80% से ऊपर प्रभावी हुयी है। नैनो यूरिया में मौजूद नाइट्रोजन फसलों की आवश्यकताओं को प्रभावी तरीके से पूरी कर सकता है और इस तरह फसल पैदावार में 8% की वृद्धि कर सकता है। कंपनी का कहना है कि नैनो यूरिया लिक्विड कितना प्रभावी है, यह सिद्ध करने के लिए देश भर के 11,000 से अधिक किसानों के खेतों में 94 से अधिक फसलों पर परीक्षण किया।
क्या नैनो यूरिया से प्रदूषण होगा?
पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी नैनो यूरिया काफी फायदेमंद है। परंपरागत यूरिया वायुमंडल या जल स्रोतों तक पहुंचकर इन्हें प्रदूषित करता है और जैव विविधता तथा मानव स्वास्थ्य और मृदा स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाता है। जबकि नैनो यूरिया कुशल उपयोग को बढ़ावा देकर पर्यावरण को नुकसान होने से बचाता है और फसलों को मजबूत एवं स्वस्थ्य भी बनाता है। नैनो यूरिया भारत के आयात लागत को भी कम कर सकता है। वर्ष 2019-20 में यूरिया के 336 लाख मीट्रिन टन के उपभोग के बदले देश में कुल उत्पादन 244 लाख मीट्रिक टन था। इस तरह शेष की पूर्ति आयात से की गई। यदि किसानों द्वारा कम यूरिया का उपयोग किया जाता है तो आयात पर निर्भरता को कम करने में मदद मिलेगी। इस तरह यह प्रधानमंत्री के “आत्मनिर्भर भारत” के सपने को भी साकार कर सकता है।
कब से मिलने लगेगा नैनो यूरिया?
इफको जून 2021 में ही नैनो यूरिया का उत्पादन आरंभ कर देगा और उसके पश्चात इसका वाणिज्यिक वितरण भी शीघ्र ही आरंभ कर देगा। इफको ने गुजरात के कलोल स्थित अपने यूरिया संयंत्र में नैनो यूरिया का स्वदेशी तरीके से विकसित किया है। ऐसी आशा की जा रही है कि इफको का नैनो यूरिया लिक्विड देश को एक अन्य हरित क्रांति की ओर ले जाएगा जो तुलनात्मक रूप से कहीं अधिक सतत, पर्यावरण अनुकूल, मृदा स्वास्थ्य रक्षक व किसानों के लिए लाभकारी होगा।
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