संसद में प्रवेश करते तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुख़र्जी
भूतपूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी द्वारा लिखित आत्मकथा में उन्होंने विस्तार से चर्चा की है कि कैसे गाँधी नेहरू खानदान की इस घृणित मानसिकता वाली परम्परा को निभाते हुए सोनिया गाँधी भी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और खुद राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को भी अपना गुलाम मानती थीं। ऐसे हज़ारों अवसर पर सोनिया गांधी ने खुद को प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति से ऊपर समझते हुए उनका अभिवादन करना तो दूर उनके अभिवादन की उपेक्षा की।
अपनी किताब में प्रणब दा ने एक जगह लिखा है “मोदी जी के कार्यकाल के एक वर्ष पूरे होने पर जा मैंने उनके कार्य की प्रशंसा की तब से सोनिया जी मुझसे नाराज रहने लगी। एक बार संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद मेरा और उनका आमना-सामना हुआ… उनके साथ आए आजाद और अय्यर जी ने मुझे अभिवादन किया पर सोनिया जी चाहती कि मैं पहले उन्हें अभिवादन करूं। वे भूल रही थी कि वो भारत के राष्ट्रपति के सामने हैं ना कि प्रणब मुखर्जी के सामने… मुझे ये बात अंदर तक चुभ गई कि जो व्यक्ति भारत के प्रथम व्यक्ति का सम्मान नहीं करता वो गुलाम पसंद है, और मैं इस गुलामी से आजाद होना चाहता था ”
इसमें कोई दो राय भी नहीं कि सोनिया को भी पार्टी में वही लोग ज्यादा पसंद हैं जो उनके गलत निर्णयों पर भी उनकी जी-हजूरी करते हैं। शायद इसी कारण प्रधानमंत्री प्रणब की जगह डॉ मनमोहन सिंह को ही बनाना उचित समझा। प्रणब अगर प्रधानमंत्री बनते, वह मनमोहन की तरह उनके इशारे पर काम नहीं करते। और शायद इतने घोटाले भी नहीं हो पाते, जितने मनमोहन के रहते हो गए। यही कारण है कि सोनिया के पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद से पार्टी का जो पतन शुरू शुरू हुआ, वह थमने का नाम नहीं ले रहा। जो रही-सही कसर है, उसे राहुल गाँधी और प्रियंका वाड्रा पूरा कर रहे हैं। इस स्थिति को देखते हुए, दो/तीन चुनावों उपरांत कांग्रेस की स्थिति क्षेत्रीय दलों से अधिक ख़राब होने वाली है। कांग्रेस केवल नाम की पार्टी बनकर रह जाएगी, जनाधार भी मात्र दिखावा के सिवा कुछ नहीं रहेगा।
गांधी नेहरू खानदान इस पूरे देश को अंग्रेजों की तरह अपनी मिल्कियत और गुलाम समझता मानता रहा है ये बात अब किसी से भी छिपी नहीं है। कांग्रेस की सत्ता जाने के बाद विशेषकर नेहरू-गाँधी खानदान के सारे काले राज़ खुल कर सामने आ रहे हैं। सत्ता और सियासत के लिए नैतिकता की सारी हदें पार करने की कहानी बाहर आने के बाद अब लोगबाग खुद फैसला कर रहे हैं। और कांग्रेस अपनी उसी काले इतिहास का हिस्सा बन रही है।