संसार स्वार्थी है, यहां के लोग स्वार्थवश ही एक दूसरे से मित्रता करते हैं : स्वामी विवेकानंद परिव्राजक

*संसार स्वार्थी हैं। यदि कोई आज आपको आपकी किसी विशेषता के कारण चाहता है, तो यह न समझें, कि आज से 10 वर्ष बाद भी या हमेशा ही वह आपको ऐसे ही चाहेगा।

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संसार में अपवाद रूप कुछ ही लोग ऐसे होते हैं, जो अपने लौकिक स्वार्थ को छोड़कर, अपने अविद्या राग द्वेष आदि दोषों को दबाकर, मोक्ष को लक्ष्य बनाकर, पूरी ईमानदारी से देश धर्म की सेवा करते हैं। ऐसे लोग तो निष्काम भाव से कार्य करते हैं, अर्थात उन्हें कोई सांसारिक स्वार्थ धन सम्मान प्रसिद्धि आदि या इंद्रियों के विषयों के सुख का लोभ नहीं होता।
ऐसे कुछ लोगों को छोड़कर, शेष संसार के लोग तो इसी सिद्धांत पर अपना जीवन जीते हैं, कि जो भी आज उनके संपर्क में है, उससे अधिक से अधिक कैसे अपनी स्वार्थ सिद्धि करें। कैसे अपने सांसारिक लाभ धन सेवा आदि की प्राप्ति करें। जब तक सामने वाले लोगों से उनका स्वार्थ पूरा हो रहा है, मुफ्त में, या कम कीमत खर्च करके अधिक लाभ मिल रहा है, तब तक वे उन लोगों से लाभ उठाते रहेंगे। और जैसे ही उनसे भी कोई और सस्ता व्यक्ति मिलेगा, जिस पर और कम खर्च करना पड़े, तथा लाभ इतना ही हो, या इससे भी अधिक हो, वे तुरंत उसे छोड़ देंगे।
आप भी इस सिद्धांत को अच्छी प्रकार से समझ लीजिए। शायद आप समझते भी होंगे, और हो सकता है, आप भी इसी सिद्धांत पर चल रहे होंगे। यदि आप भी इस सिद्धांत पर चल रहे हों, तो यह भी समझ लें, कि दूसरे लोग भी इसी सिद्धांत पर चल रहे हैं। क्योंकि जिस जिस ने भी संसार में जन्म लिया है, प्रायः उन सभी लोगों में अविद्या राग द्वेष स्वार्थ आदि दोष तो हैं ही।
जैसे आप को अपने किसी नौकर या मित्र आदि से अच्छा विकल्प मिलते ही आप उसे छोड़ सकते हैं। तो दूसरा व्यक्ति भी आपसे बढ़िया विकल्प मिलने पर, आपको छोड़ सकता है। यदि आप अपने प्रिय व्यक्ति से अलग नहीं होना चाहते, उसके साथ संबंध बनाए रखना चाहते हैं, तो इसका यही उपाय है, कि अपनी विशेषता को बनाए रखें। उसे बढ़ाते रहें। उसे चमकाते रहें। जब तक आपमें कोई विशेष योग्यता बनी रहेगी, और लोग आपकी विशेषता को समझते रहेंगे, वे आपसे लाभ उठाते रहेंगे। आपके साथ संबंध भी बनाए रखेंगे। आपकी विशेषता कम या समाप्त होते ही वे आपको छोड़ देंगे। ऐसे ही अपने से अलग कर देंगे, जैसे लोग दूध में से मक्खी निकाल कर फेंक देते हैं। इस बात का बुरा नहीं मानना। यही इस स्वार्थी संसार (असार) का सत्य है।
यदि कभी कोई आपका मित्र या कोई रिश्तेदार परिचित व्यक्ति आपको छोड़ दे, आपसे संबंध तोड़ दे, तब आप दुखी न होवें। तब आप समझ लीजिएगा, कि उसको आपसे कोई और अच्छा विकल्प मिल गया है। ऐसी स्थिति में आप अपने मन को मजबूत रखें, घबराए नहीं। दुखी निराश न हों, बल्कि उसे खुले मन से स्वीकार कर के, आप भी उसे छोड़ कर कोई दूसरा विकल्प अपना लें। तभी आप शांति से जी पाएंगे। क्योंकि आप भी समय आने पर ऐसा ही करते हैं, जैसा उसने किया।
स्वामी विवेकानंद परिव्राजक, रोजड़, गुजरात।

प्रस्तुति : अरविंद राजपुरोहित

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