योगाभ्यास विधि : आत्म – उत्थान
महाभारत में यक्ष-युद्धिष्ठिर सम्वाद बहुत प्रसिद्ध है। यक्ष युद्धिष्ठिर से प्रश्न करते हैं :
संसार में सब से अधिक चकित करने वाली चीज़ क्या है ?
युधिष्ठिर ने उत्तर दिया : मृत्यु। सभी लोग दूसरों को मरता देखते हैं, परन्तु वर्ताव ऐसे करते हैं कि वे कभी मरेंगे नहीं।
करोना महामारी के कारण हज़ारों मनुष्यों की मृत्यु के प्रतिदिन समाचार सुनाई देते हैं । मानो हमारी आंखों के आंसू सूख गए हैं और मानवीय संवेदनाएं शुष्क हो गई हैं ।
आज हमें सोवियत रूस के नेता जोज़फ स्टालिन की पंक्ति याद आती है कि एक व्यक्ति की मृत्यु त्रासदी है परन्तु लाखों की मृत्यु एक आंकड़ा है ।
यह स्वाभाविक है कि किसी अपने की मृत्यु पर असहनीय दु:ख का एहसास होता है परन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि हम दूसरों की मृत्यु पर संवेदनाहीन हो जाएं। मानव होने के नाते, हमें हर स्थिति में असहायों, पीड़ितों की सहायता के लिए सदा उद्यत रहना चाहिए । गीता का वचन है :
ते प्राप्नुवन्ति मामेव सर्वभूतहितेरता:।
अर्थात् जो दूसरों के हित में लगे रहते हैं, वे मुझे ही प्राप्त होते हैं ।
परन्तु आज की स्थिति यह है कि कुछ दुष्ट प्रवृत्ति के लोग, दस्यु: प्रवृत्ति के लोग, इस महामारी की स्थिति को व्यावसायिक रूप दे रहे हैं । श्मशान घाट में शवों के दाह संस्कार के लिए लंबी कतारें लगी हुई है। चार-पांच घंटे एक शव को जलाने के लिए इंतजार करना पड़ता है। दस्यु: प्रवृत्ति के लोगों ने मानवता की हद पार कर दी है । उन्होंने “विवाह आयोजन एजेंसी ” के तर्ज़ पर ” शवदाह एजेंसी ” स्थापित कर दी हैं, जिसमें एक शव को जलाने के लिए ₹ 25000 “एजेंसी शुल्क” के रूप में लिया जा रहा है ताकि लम्बी कतार में न लगना पड़े।
यहां तक कि हस्पतालों में रुग्णों की भर्ती के लिए एक लाख रुपए एक बिस्तर के लिए जा रहे हैं।
दवाइयों की दुकानें में दवाइयों की अप्रत्याशित बिक्री (Demand) के कारण, उनकी कालाबाज़ारी हो रही है । ₹ 3000 का टीका एक लाख रुपए में बेचा जा रहा है । आंखों के आकिस्मक रोग ब्लैक फ़ंगस ( Black Fungus) की ₹ 300 की दवाई ₹ 30,000 में बेची जा रही है। ₹ 25000 का आक्सीजन सिलैंडर ₹ 75000 में बेचा जा रहा है।
आक्सीजन की आपूर्ति के लिए सरकार ने आक्सीजन कंसैंट्रेटरज़ ( Oxegen Concentrators) हस्पतालों को मुहैय्या कराने शुरु कर दिए हैं ताकि पीड़ितों की जान बचाई जा सके। धन के लोभी राक्षसों ने, रोगियों की जान की परवाह न करते हुए, इन सिलैंडरज़ (Cylenders) की जमाखोरी (Hoarding) शुरु कर दी है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार एक ही कारोबारी के गोदामों से 500 आक्सीजन कंसैंट्रेटरज़ पाए गए।
ऐसे राक्षसों को नहीं पता कि अपने कुकृत्यों के कारण उन्होंने कितनी महिलाओं को विधवा बनाया है ; कितने बच्चों को अनाथ बनाया है और कितनी माताओं की गोद उजाड़ी है।
इन महामूर्खों को इसका भी एहसास नहीं है कि जिस धन से अन्धे होकर ये सब कुकर्म कर रहे हैं, वह सब यहीं रह जाएगा। वे जानते तो हैं कि कफ़न में जेब नहीं होती, परन्तु तदनुरूप आचरण नहीं करते।
अर्थातुर मूर्ख समझते हैं कि कालाबज़ारी की सज़ा 2-3 साल जेल में काट लेंगे, बाद में सारी उम्र ऐश करेंगे, परन्तु यह नहीं जानते कि कोई एक अदृश्य शक्ति है जो देख रही है और हिसाब रख रही है कि किस के किस कुकर्म के कारण कितनों की मृत्यु हुई है और वह तदनुरूप इनको इन कुकर्मों की सज़ा देगा। वहां न तो किसी कि शिफ़ारिश चलेगी, न ही कोई रिश्वत !
मानवता का तकाज़ा तो यह है कि रुग्णों, पीड़ितों, असहायों की सहायता करनी चाहिए । यहां तो उनकी दयनीय अवस्था का नाजायज़ फ़ायदा उठाया जा रहा है ।
आज का हमारा लेख वैसे तो सार्वजनीन है, सभी लोगों के लिए है, परन्तु विशेषत: दस्यु: प्रवृत्ति के लोगों के लिए है, इस आशा के साथ कि यह उनकी अन्तरात्मा को जगाएगा ताकि वे अपने मानवीय कर्तव्यों का निर्वाह कर सकें।
मनुष्य को अपने आत्मोत्थान के लिये , किसी भी क्षण में मृत्यु की सम्भाविता एवं ईश्वर की सर्वव्यापक सत्ता का सदा अनुस्मरण करना चाहिये । ऐसा करने पर मनुष्य अध्यात्म पथ से कभी विचलित नहीं हो सकता।
उसे विचारना चाहिए कि यह शरीर क्षणभंगुर है । न जाने कब मृत्यु का ग्रास बन जाए । जो जीवन बीत गया सो बीत गया । आज के बाद मैंने जीवन को सदा सत्यकर्मों में लगाना है । शुभ-अशुभ कर्म ही मृत्यु के बाद मनुष्य के साथ जाते हैं, बाकी सब धन-धान्य यहीं रह जाते हैं । इसलिये मुझे अब केवल शुभ कर्म ही करने हैं । मृत्यु का अनुस्मरण हमें दुष्कर्मों से बचाकर सत्कर्मों में प्रवृत्त करता है।
ईश्वर सर्वज्ञ, सर्वव्यापक और सर्वशक्तिमान है । वह मेरे सभी कर्मों को देख रहा है । वह मेरे मन में उठने वाले विचारों को भी जान रहा है । वह अन्तर्यामी है, न्यायकारी है, कर्माध्यक्ष है । ईश्वर सभी के शुभाशुभ कर्मों से सदा अवगत रहता है। अचूक तटस्थता से न्याय करता है और शुभाशुभ कर्मों का यथावत् फल देता है।
मनुष्य को मन में सदा धारण करना चाहिये कि मुझे कोई कुकर्म नहीं करने हैं जिससे उसके प्रकोप का भागी बनूँ। मुझे तो उसकी अनुकम्पा का पात्र बनना है।
साधक को सदा ईश-समर्पित भाव से सब कर्म करने चाहियें । उसकी सत्ता का साधक सर्वत्र भान करते हुए , कार्य करे और ईश्वर से सत्कर्मों की प्रेरणा की प्रार्थना करे। ऐसा करने से साधक कभी कुकर्म नहीं कर पाएगा ; सदा शुभ कर्म ही करेगा।
इससे मन शान्त रहेगा और आनन्द की अनुभूति होगी। आत्मा की परमात्मा से मिलन की यात्रा में तीव्र प्रगति होगी।
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पादपाठ
(i) द्वौ संनिषद्य यन्मन्त्रयेते राजा तद् वेद वरुणस्तृतीय:।
— अथर्ववेद 4.16.2
( दो व्यक्ति एक साथ बैठ कर जो मन्त्रणा (षड्यंत्र) करते हैं, तीसरा राजा वरुण उसे जानता है।)
(ii) “Thou compassest my path and my lying down and art acquainted with all my ways. For there is not a word in my tongue, but lo O Lord, Thou knowest it altogether. Whither shall I go from Thy spirit? Or whither shall I flee from Thy presence?”
— The Holy Bible (Psalms 139.3,4,7)
( हे प्रभो! तुम मेरे मार्ग को दृष्टिगत रखते हो, कब मैं सोता हूं, मेरी सभी गतिविधियों से अवगत हो। मेरी ज़ुबान पे अभी शब्द आया नहीं होता और तुम उसे पूर्णतः जान जाते हो। मैं तुम्हारे से दूर कहां जाऊं ? या मैं तुम्हारी सत्ता से कहां भाग कर जाऊं ?)
— द होली बाइबल (सामज़् 139.3,4,7.)
(iii) “First then fear God:
for His fear is wisdom
And being wise, thou canst not err.”
— Miguel Cervantes
( इसलिए पहले ईश्वर से डरो :
क्योंकि उसका भय बुद्धिमत्ता है,
और बुद्धिमान होने पर, आप कहीं गलती नहीं कर सकते।)
— मीगल सरवैंटिस
(iv) “He that fearth Him
and worketh Righteousness
is accepted of Him.”
— St. Peter
( जो उससे डरता है एवं सत्कर्म करता है, वह उसे स्वीकार करता है।)
— सेंट पीटर
(v) Most of us can read the writing on the wall,
We just assume it’s addressed to someone else.
— Ivern Ball (On Death)
( हम में से अधिकतर लोग दीवार पर लिखी इबारत ( कि मृत्यु अवश्यंभावी है ) को पढ़ सकते हैं , परन्तु सोच लेते हैं कि यह किसी अन्य के लिए लिखी है।)
— ईवर्न बाल (मृत्यु पर)
vi) Single death is a tragedy. Million deaths a statistics.
— Joseph Stalin
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विद्यासागर वर्मा
पूर्व राजदूत
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