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इतिहास के पन्नों से स्वर्णिम इतिहास

विश्व गुरु रहे भारत के इतिहास की महत्वपूर्ण तिथियां

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जो राष्ट्र पूरे विश्व का गुरु है, उसका इतिहास जानिए:-‘भारतीय ऐतिहासिक कालानुक्रम'(क्रोनोलॉज़ी) मेरे सर्वाधिक प्रिय विषयों में से है और विगत डेढ़ दशक से मैं इस विषय पर अन्वेषण और लेखन-कार्य कर रहा हूँ।इस सन्दर्भ में सन् २००९ में मेरी पुस्तक ‘भगवान् बुद्ध और उनकी इतिहाससम्मत तिथि’ इलाहाबाद से प्रकाशित हुई थी जिसका विद्वज्जगत् में समादर हुआ था।इसके अतिरिक्त कालगणना और कालानुक्रम पर मेरे सैकड़ों शोध-निबन्ध विभिन्न शोध -पत्रिकाओं में प्रकाशित एवं विद्वानों द्वारा प्रशंसित हुए हैं।


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ब्रिटिश शासनकाल में शासन द्वारा पोषित देशी-विदेशी इतिहासकारों द्वारा यूरोपीय मॉडल पर भारतीय इतिहासलेखन किया गया जिसमें भारतीय कालक्रम का अत्यधिक संकुचन किया गया।यूरोपवासी पृथ्वी की उत्पत्ति ४००४ ई.पू.मानते थे।१७ वीं शताब्दी में ऑकलैण्ड के एंग्लिकन आर्क बिशप और ट्रिनिटी कॉलेज (डबलिन) के उपकुलपति जेम्स उशर (१५८१-१६५६) ने बायबल के ‘ओल्ड टेस्टामेंट’ का विश्लेषण करने के पश्चात् प्रथम बार विश्व-इतिहास का तिथ्यांकन किया जिसके अनुसार पृथिवी की उत्पत्ति २३अक्टूबर,४००४ ई.पू.,रविवार,सुबह ९ बजे एवं नूह के महान् जलप्रलय की घटना ५मई,२३ ४८ई.पू.,बुधवार को हुई।इस तिथि ने शताब्दियों से ईसाई-विद्वानों के मस्तिष्क पर अपना प्रभाव जमा रखा था।
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अंग्रेजों द्वारा पोषित देशी-विदेशी इतिहासकारों ने भारतवर्ष के ‘नवीन’ इतिहास की जो रचना की, उसमें सबसे पहला काम यह किया गया कि भारतवर्ष का पूरा इतिहास बाइबल की पूर्ववर्ती तिथियों से बदलकर परवर्ती तिथियों की ओर कर दिया गया।बाइबल के अनुसार पृथ्वी का इतिहास छः हज़ार वर्ष का है,अतः पाश्चात्य इतिहासकारों का यह प्रयास रहा कि किसी भी तरह भारतवर्ष के इतिहास में चार हज़ार वर्ष से पुराने लक्षण न दिखाई दें अर्थात् भारतवर्ष के इतिहास में जो भी घटना घटित हुई,वह चार-पाँच हज़ार वर्ष के भीतर।इस अवरोधक धरणा के कारण ईसाई लेखकों ने समस्त भारतीय इतिहास को तोड़ा-मरोड़ा और प्रत्येक बड़ी-से-बड़ी घटना को इस अवधि के भीतर ठूँस डाला।जिन घटनाओं को वे इस अवधि में न ठूँस सके, उन्हें ‘पुराणों की कल्पना’ और ‘माइथोलॉजी’ कहकर मानो हवा में उड़ा दिया।
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इस मनमाने इतिहास को सिद्ध करने के लिए विभिन्न पश्चिमी और भारतीय संस्कृतज्ञों को प्रचुर धन देकर उनसे भारतीय ग्रन्थों का भ्रष्ट अनुवाद करवाया गया; पुराणों की ‘मिथक’ कहकर खिल्ली उड़ायी गयी। जर्मनी में पैदा हुआ अंग्रेज़ फ्रेडरिक मैक्समूलर, जिसे वेदों का बड़ा भारी विद्वान् समझा जाता है, वह वास्तव में मैकाले द्वारा वेदों का भ्रष्ट अनुवाद करने के लिए ऑक्सफोर्ड विश्व विद्यालय में भारी वेतन पर नियुक्त किया गया था।बड़े-बड़े पश्चिमी विद्वान् दो-चार भारतीय बातों की प्रशंसा करके चोरी-छिपे अपनी रचनाओं में विष-वमन करते रहे।
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दिनांक ०९अप्रैल,१८६६ को लन्दन में अंग्रेजों ने ‘आर्य-आक्रमण सिद्धान्त’ की कूटनीतिक चाल चली,जिसके अनुसार ‘१५०० ई.पू. में यायावर आर्यों (हिंदुओं) ने मध्य एशिया से आकर भारतवर्ष पर आक्रमण किया था’।इस विचित्र और हास्यास्पद सिद्धांत पर अंग्रेजों ने इतनी चर्चा चलाई कि लोकमान्य टिळक-जैसे बड़े-बड़े राष्ट्रवादी विद्वान् भी भ्रमित हो गये।राष्ट्रीय अस्मिता के इस प्रश्न पर आज भी अधिकांश भारतीय इतिहासकार मूर्ख बने बैठे हैं।
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इसके बाद पाश्चात्य विद्वानों ने सिकन्दर के आक्रमण से भारत का इतिहास प्रारम्भ किया और उसके अनुवर्ती सम्पूर्ण इतिहास को१. प्राचीन (हिंदू-काल),२. मध्यकालीन (मुस्लिम-काल) और ३. आधुनिक (ब्रिटिश काल)—इन ३ खण्डों में बाँटकर समूचे इतिहास को आक्रमणकारियों की विजयगाथाओं से भर दिया।हिंदुओं की गौरवगाथाओं को बारम्बार लुप्त किया गया और इस प्रकार केवल हिंदुओं पर आई आपत्तियों की ही चर्चाकर उसे भारतीय इतिहास के रूप में प्रदर्शित किया गया।भारत के प्राचीन इतिहास के संबंध में उन्होंने पहले प्रत्येक बात पर सन्देह किया और फिर पिछली सभी तिथियों को सन्देह-लाभ प्रदान किया।प्राचीन महापुरुषों के कालखण्ड को अधिक-से-अधिक पीछे ढकेला गया।
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पाश्चात्य पद्धति से अन्वेषण और लेखन करनेवाले इतिहासकार, पुरातत्त्व को ही अन्तिम प्रमाण मानते हैं और उसमें भी उनकी नीयत कितनी साफ़ है,यह बात किसी से छिपी नहीं है।यह बात सही है कि अनेक इतिहासकारों ने पौराणिक दृष्टि से भी भारतीय इतिहास लिखने का प्रयास किया है किन्तु ऐसे इतिहासकार सदैव उपेक्षित ही हुए हैं और उनकी आवाज़ नक्कारखाने में तूती सिद्ध हुई है।
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मेरी मान्यता है कि भारतीय इतिहास का विषय-प्रवर्तन कोई चार-पाँच हज़ार वर्षों के काल-प्रवाह से नहीं, अपितु ‘हिरण्यगर्भ’— आदिअण्ड की संरचना के कालबिन्दु से होता है। ऋषि-मनीषा ने इतिहास और विज्ञान— दोनों को समान धरातल पर देखा और समझा है, वहाँ इन दोनों का प्रवर्तक-बिन्दु एक है। अतः इतिहास वहाँ स्वयं एक विज्ञान है। इसलिए भारतीय परम्परा ने वर्तमान विज्ञान से बहुत आगे बढ़कर विश्व के कालचक्र का स्पर्श किया है और उसके पुरावर्तक तत्त्व के स्वरूप को भली-भाँति पहचाना है।
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भारतीय चिन्तन-दर्शन में काल और इतिहास दो नहीं, बल्कि इनमें बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव है। यदि काल बिम्ब है तो इतिहास उसका प्रतिबिम्ब है।यदि इतिहास बिम्ब है तो काल प्रतिबिम्ब है।अतएव जो हमारी कालगणना है,वही हमारा इतिहास है; जो हमारा इतिहास है,वही हमारी कालगणना है।हमारी कालगणना और हमारा इतिहास एक है।हमारा इतिहास विगत पाँच या दस या बीस हज़ार वर्षों से एकाएक कहीं से प्रारम्भ नहीं हो गया बल्कि वह कालचक्र के प्रवर्तन के साथ प्रारम्भ हुआ है।भगवान् विष्णु के नाभिकमल पर उत्पन्न ब्रह्मा ने जिस दिन प्रथम बार सृष्टि की सर्जना शुरू की अर्थात् ब्रह्मा के प्रथम परार्ध के प्रथम कल्प के प्रथम मन्वन्तर के प्रथम चतुर्युग के सत्ययुग के प्रथम मास की प्रथम तिथि यानि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा भारतीय-इतिहास का प्रस्थान-बिन्दु है अर्थात् १५नील,५५ खरब,१३अरब,३३ करोड़,२९लाख,४९ हज़ार ११९वर्ष का भारतवर्ष का इतिहास है।इतने वर्षों से हमारा धर्म चला आ रहा है इसलिए इसे सनातन-धर्म कहा जाता है,भारतवर्ष को सनातन हिंदू-राष्ट्र कहा जाता है और वैदिक ग्रन्थों को अनादि-अपौरुषेय कहा जाता है।योगीराज श्री अरविन्द (१८७२-१९५०)ने सनातन-धर्म को ही राष्ट्रीयत्व कहा है और इसलिए सनातन-धर्म में आजतक कोई ‘पैग़ंबर’ नहीं हुआ, जैसा कि विभिन्न सम्प्रदायों में हुए और इसलिए सनातन-धर्म का कोई ‘एक धर्मग्रन्थ’ नहीं है जैसा कि विभिन्ना सम्प्रदायों में हैं और इसलिए हिंदू-समाज किसी ‘एक निश्चित उपासना-पद्धति’ से भी बंधा हुआ नहीं है, जैसा कि विभिन्न सम्प्रदाय एक निश्चित उपासना- पद्धति से बंधे हुए हैं।

यह भारतीय इतिहासलेखन की एक विशेषता ही है कि भारतीय आर्ष- ग्रन्थों में ऐतिहासिक घटनाओं का विवरण सदैव कालक्रम के चौखटे में ही दिया गया है।कहीं भी कालक्रम की उपेक्षा नहीं की गई है।आर्ष-ग्रन्थों में घटनाक्रम की कालबद्ध चर्चा परार्ध, कल्प, मन्वन्तर, युग और संवत्सर में प्राप्त होती है।सम्पूर्ण पुराणों, रामायण, महाभारतादि ग्रन्थों में कालगणना के इन्हीं मापदण्डों को अपनाया गया है।इनके सहारे सृष्ट्युत्पत्ति से लेकर वर्तमान समय तक की भारतीय इतिहास की समयावली प्रस्तुत हो जाती है।यहाँ मैंने पुराण-ग्रंथों के आधार पर भारतीय इतिहास की परम्परागत समयरेखा प्रस्तुत की है।आशा है, इतिहास के जिज्ञासु विद्वान् पक्षपातरहित दृष्टि से इसकी विवेचना करेंगे और इससे लाभ उठायेंगे।
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(नील वर्ष पूर्व)
१५.५५२१९७२९ ब्रह्मा के श्रीमुख से छह अंगों,चार पादों और उनके क्रमसहित एक लाख मंत्रोंवाले वेद और सर्वशास्त्रमय शतकोटि विस्तृत पुराण का प्राकट्य।ब्रह्मा द्वारा रचित होने के कारण वेद को ‘अपौरुषेय’ कहा गया है अर्थात् इसकी रचना किसी पुरुष-विशेष (मानव) द्वारा नहीं हुई।गुरु द्वारा शिष्यों को मौखिक रूप से कंठस्थ कराने के कारण वेद को ‘श्रुति’ की संज्ञा दी गयी।
१५.५५१३३३२९४९११९ ब्रह्माजी द्वारा पृथ्वी आदि महाभूतों तथा अन्य तत्त्वों की उत्पत्ति।ब्रह्माजी द्वारा प्रथम दस मानस-पुत्रों (ऋषियों)—नारद, भृगु ,वसिष्ठ,प्रचेता,पुलह,क्रतु, पुलस्त्य,अत्रि,अंगिरस(अंगिरा)और मरीचि का सृजन; देवताओं, दानवों, ऋषियों, दैत्यों, यक्ष, राक्षस, पिशाच, गन्धर्व, अप्सरा, असुर, मनुष्य, पितर, सर्प एवं नागों के विविध गणों की सृष्टि एवं उनके स्थान का निर्धारण। अपने शरीर को दो भागों में विभक्तकर स्वयम्भुव मनु एवं शतरूपा का निर्माण।इन्हीं प्रथम पुरुष और प्रथम स्त्री की सन्तानों से संसार के समस्त जनों की उत्पत्ति हुई। मनु की सन्तान होने के कारण ही वे ‘मानव’ या ‘मनुष्य’ कहलाए। स्वयम्भुव मनु को आदि भी कहा जाता है, जिसका अर्थ होता है प्रारम्भ। सभी भाषाओं में मनुष्यवाची शब्द मैन, मनुज, मानव, आदम, आदमी आदि सभी शब्द ‘मनु’ शब्द से प्रभावित हैं। ऋषियों द्वारा पृथ्वी पर जाकर वेद और पुराणों का पठन-पाठन प्रारम्भ और पृथिवी पर मानव-सभ्यता का प्रारम्भ
१५.५५०९०१२९४९११९(ब्रह्मा के दूसरे अहोरात्र की रात्रि) पृथिवी पर प्रथम बार नैमित्तिक प्रलय प्रारम्भ
१५.२४११५७२९४९११९ ब्रह्मा का दूसरा वर्ष प्रारम्भ
१४.३०८०३७२९४९११९ ब्रह्मा का ५वाँ वर्ष प्रारम्भ
१२.७५२८३७२९४९११९ ब्रह्मा का १०वाँ वर्ष प्रारम्भ
११.१९७६३७२९४९११९ ब्रह्मा का १५वाँ वर्ष प्रारम्भ
१०.५७५५५३७२९४९११९ रुद्र द्वारा ब्रह्मा के पाँचवें मुख का छेदन
9.6424372949119 ब्रह्मा का २०वाँ वर्ष प्रारम्भ
8.0872372949119 ब्रह्मा का २५वाँ वर्ष प्रारम्भ
6.5020372949119 ब्रह्मा का ३०वाँ वर्ष प्रारम्भ
4.9768372949119 ब्रह्मा का ३५ वाँ वर्ष प्रारम्भ
3.4216372949119 ब्रह्मा का ४० वाँ वर्ष प्रारम्भ
1.8664372949119 ब्रह्मा का ४५ वाँ वर्ष प्रारम्भ

(खरब वर्ष पूर्व)
93.33172949119 ब्रह्मा का 48वाँ वर्ष प्रारम्भ
62.22772949119 ब्रह्मा का 49वाँ वर्ष प्रारम्भ
31.12372949119 ब्रह्मा का 50वाँ वर्ष प्रारम्भ
1.27252949 ब्राह्मकल्प में जगन्माता द्वारा मुर दैत्य और नरकासुर का वध
1.22007605119 विष्णुकल्प के उत्तम मन्वन्तर में भगवती दुर्गा द्वारा महिषासुर-वध

(अरब वर्ष पूर्व)
45.172949 मार्कण्डेयकल्प में शुम्भ-निशुम्भ की उत्पत्ति
10.612949 ब्रह्मा के 50वें वर्ष की अन्तिम सृष्टि (नृसिंहकल्प) के प्रथम सत्ययुग में देवताओं द्वारा वरुण को जल का राजा बनाया गया
1.972949119 ब्रह्मा के 51वें वर्ष के प्रथम मास का प्रथम दिन (‘श्वेतवाराह कल्प’, ब्रह्मा का 18,001वाँ कल्प) प्रारम्भ; मनु : स्वायम्भुव मनु, पत्नी : शतरूपा; इन्द्र : विश्वभुक् (विष्णुभुक्); सप्तर्षि : मरीचि, अत्रि, अंगिरस, पुलस्त्य, क्रतु, वसिष्ठ, पुलह
1.972949 भगवान् विष्णु का वराह-अवतार
1.955885119 ब्रह्मा द्वारा सृष्टि-निर्माण पूर्ण, ‘सृष्टि-संवत् 1’ प्रारम्भ
1.955885119 स्वायम्भुव मनु के ज्येष्ठ पुत्र प्रियव्रत के रथ की लीक से सप्तद्वीपों और सप्तसागरों (सप्तसिंधु) की उत्पत्ति
1.9557 जम्बूद्वीपाधिपति आग्नीध्र ने जम्बूद्वीप के 9 विभाग किए
1.9556 ऋषभदेव के पुत्र भरत के नाम पर अजनाभवर्ष का नाम ‘भारतवर्ष’ पड़ा
1.662773119 स्वारोचिष मनु से द्वितीय मन्वन्तर का प्रारम्भ; इन्द्र : विद्युति; सप्तर्षि : ऊर्ज, स्तम्भ, वात, प्राण, पृषभ (ऋषभ), निरय, परीवान्
1.354325119 उत्तम मनु से तृतीय मन्वन्तर का प्रारम्भ; इन्द्र : विभु; सप्तर्षि : महर्षि वसिष्ठ के सातों पुत्र— कौकुनिधि, कुरुनिधि, दलय, सांख, प्रवाहित, मित एवं सम्मित
1.045877119 तामस मनु से चतुर्थ मन्वन्तर का प्रारम्भ; इन्द्र : प्रभु; सप्तर्षि : ज्योतिर्धामा, पृधु (पृथु), काव्य, चैत्र, अग्नि, वनक, पीवर।
1.0458 भगवान् विष्णु का नृसिंह-अवतार
1.0458 भगवान् विष्णु द्वारा गजेन्द्र-उद्धार

(करोड़ वर्ष पूर्व)
73.7429119 रैवत मनु से पञ्चम मन्वन्तर का प्रारम्भ; इन्द्र : शिखी; सप्तर्षि : हिरण्यरोमा, वेदश्री, ऊर्ध्वबाहु, वेदबाहु, सुधामा, पर्जन्य, महामुनि
42.8981119 चाक्षुष मनु से छठे मन्वन्तर का प्रारम्भ; इन्द्र : मनोजव; सप्तर्षि : सुमेधा, विरजा, हविष्यमान्, उत्तम, मधु, अतिनामा एवं सहिष्णु
42.89 भगवान् विष्णु का कच्छप-अवतार एवं क्षीरसागर के मन्थन से चन्द्रमा सहित १४ रत्नों की उत्पत्ति
४२.८९ दक्ष प्रजापति द्वारा नवीन प्रजा का सृजन
१२.०५३३११९ वैवस्वत मनु से सप्तम मन्वन्तर का प्रारम्भ; भगवान् विष्णु का मत्स्य-अवतार; इन्द्र : ओजस्वी (ऊर्जस्वी); सप्तर्षि : काश्यप, अत्रि, वसिष्ठ, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि एवं भरद्वाज
१२.०५३३ वैवस्वत मन्वन्तर के प्रथम सत्ययुग में ब्रह्मा द्वारा उत्पलारण्य में विशाल वारुण यज्ञ का अनुष्ठान
१२.०५६१ वैवस्वत मनु के ज्येष्ठ पुत्र इक्ष्वाकु से सूर्यवंश और पुत्री इला से चन्द्रवंश का प्रारम्भ
११.७५०९३ प्रथम त्रेतायुग में इन्द्र-वृत्र-युद्ध
११.७५०९(भाद्रपद शुक्ल द्वादशी) प्रथम त्रेतायुग में भगवान् विष्णु का वामन-अवतार
११.७५०९ प्रथम त्रेतायुग में भगवान् विष्णु का दत्तात्रेय-अवतार
११.६६४५ प्रथम द्वापर में ब्रह्मा द्वारा वेदों का संपादन
११.२३२५ दूसरे द्वापर में प्रजापति द्वारा वेदों का संपादन
११.२३२५ दूसरे द्वापर में महान् सम्राट् शौनहोत्र
१०.८००६ तीसरे द्वापरयुग में शुक्राचार्य द्वारा वेदों का संपादन
१०.३८६५ चौथे द्वापरयुग में बृहस्पति द्वारा वेदों का संपादन
०९.९३६५ ५वें द्वापरयुग में सूर्य द्वारा वेदों का संपादन
९.५०४५ ६ठे द्वापरयुग में यम द्वारा वेदों का संपादन
९.०७२५ ७वें द्वापरयुग में इन्द्र द्वारा वेदों का संपादन
८.६४०५ ८वें द्वापरयुग में महर्षि वसिष्ठ द्वारा वेदों का संपादन
८.२०८५ ०९वें द्वापरयुग में सारस्वत द्वारा वेदों का संपादन
७.९९२५ १०वें त्रेतायुग में ब्रह्मा द्वारा प्रभास क्षेत्र में सोमनाथ-ज्योतिर्लिंग की स्थापना और सभामण्डप का निर्माण
८.७७६५ १०वें द्वापरयुग में त्रिधामा द्वारा वेदों का संपादन
७.३४४५ ११वें द्वापरयुग में त्रिशिख (कृषभ) द्वारा वेदों का संपादन
७.३० १२वें सत्ययुग में ब्रह्मा के पुत्र पुलस्त्य ऋषि के क्रोध द्वारा(रावण के पिता) विश्रवा की उत्पत्ति
६.९१२५ १२वें द्वापरयुग में सुतेजा द्वारा वेदों का संपादन
६.४८०५ १३वें द्वापरयुग में धर्म (अन्तरिक्ष) द्वारा वेदों का संपादन
६.०४८५ १४वें द्वापरयुग में वर्णी द्वारा वेदों का संपादन
५.६०२९ १५वें त्रेतायुग में सूर्यवंशीय सम्राट् मान्धाता का शासन
५.६१६५ १५वें द्वापरयुग में त्रय्यारुण द्वारा वेदों का संपादन
५.४००५ १६वें सत्ययुग में महर्षि दीर्घतमा
५.४००५ १६वें सत्ययुग में चन्द्रवंशीय दुष्यन्त-शकुन्तलापुत्र भरत
५.१८४५ १६वें द्वापरयुग में धनञ्जय द्वारा वेदों का संपादन
४.७५२५ १७वें द्वापरयुग में कृतुञ्जय द्वारा वेदों का संपादन
४.३२०५ १८वें द्वापरयुग में जय द्वारा वेदों का संपादन
३.८८५५११९ १९वें त्रेता और द्वापर की सन्धि में भगवान् विष्णु का परशुराम-अवतार
३.८८८५ १९वें द्वापरयुग में महर्षि भरद्वाज द्वारा वेदों का संपादन
३.४५६५ २०वें द्वापरयुग में महर्षि गौतम द्वारा वेदों का संपादन
३.०२४५ २१वें द्वापरयुग में हर्यात्मा (उत्तम) द्वारा वेदों का संपादन
२.५९२५ २२वें द्वापरयुग में वाजश्रवा (नारायण) द्वारा वेदों का संपादन
२.१६०५ २३वें द्वापरयुग में तृणबिन्दु (सोम मुख्यायन) द्वारा वेदों का संपादन
१.८१४९ २४वें त्रेता के अन्त और द्वापर के आदि में महर्षि वाल्मीकि द्वारा वेदों का संपादन, ‘रामायण’ एवं ‘योगवासिष्ठ’ (महारामायण) की रचना
१.८१४९११९ २४वें त्रेता और द्वापर की सन्धि में भगवान् विष्णु का रामावतार
१.८१३८ राम के पुत्र कुश का शासन
१.२०६५ २५वें द्वापरयुग में शक्ति (अर्वाक्) द्वारा वेदों का संपादन
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(लाख वर्ष पूर्व)
८६.४५ २६वें द्वापरयुग में पराशर ऋषि द्वारा वेदों का संपादन
४३.२५ २७वें द्वापरयुग में जातुकर्ण द्वारा वेदों का संपादन
३८.९३११३ (वैशाख शुक्ल तृतीया) २८वें सत्ययुग का प्रारम्भ
२१.६५११३(कार्तिक शुक्ल नवमी) २८वें त्रेतायुग का प्रारम्भ
२१.६५ २८वें त्रेतायुग में ‘सूर्यसिद्धान्त’ की रचना
८.६९११९ २८वें द्वापरयुग का प्रारम्भ
२.२१११९ २८वें द्वापरयुग के तृतीय चरण की समाप्ति के समय संवरण के पुत्र राजा कुरु द्वारा धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र की स्थापना
२.२१११३-२.९११३ कुरु का शासन
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(ईसा पूर्व)
३५३८-३१३८ द्रोणाचार्य
लगभग ३५००-३००० २८वें द्वापर के अन्त में भगवान् विष्णु के २०वें अवतार महाभारतकार महर्षि कृष्णद्वैपायन वेदव्यास द्वारा वेदों एवं पुराणों का संपादन; ‘महाभारत’, ‘ब्रह्मसूत्र’ एवं ‘अध्यात्मरामायण’ की रचना
३३००-२१३२ मगध में बार्हद्रथ राजवंश (११६८ वर्षों में २५राजा)
३३००(अनुमानित) जैन-वाङ्मय में वर्णित २३वें तीर्थंकर अरिष्टनेमिनाथ
३२२९ धर्मराज युधिष्ठिर का जन्म
३२२८ २८वें द्वापरयुग के अन्त में भगवान् विष्णु का श्रीकृष्णावतार, ‘श्रीकृष्ण-संवत्’ का प्रारम्भ; भीम एवं दुर्योधन का जन्म; भगवान् श्रीकृष्ण द्वारा शकट-भंजन
३२२८-३२१८ भगवान् श्रीकृष्ण का व्रज में निवास
३२२७ अर्जुन का जन्म;भगवान् श्रीकृष्ण द्वारा त्रिणिवर्त-वध
३२२३ भगवान् श्रीकृष्ण द्वारा अघासुर-वध
३२२२-३१२२ महात्मा विदुर
३२२१ (कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से सप्तमी) भगवान् श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन धारणकर इन्द्र का गर्वभंग
३२१८ (कार्तिक शुक्ल चतुदर्शी) मथुरा में धनुष-यज्ञ
३२१३ (फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा) पाण्डु का निधन
३१९३ (फाल्गुन शुक्ल अष्टमी, रोहिणी नक्षत्र) पाण्डवों का हस्तिनापुर से वारणावत जाने के लिए प्रस्थान
३१९० (पौष शुक्ल एकादशी, रोहिणी नक्षत्र) द्रौपदी-स्वयंवर
३१५५-३१३८ अभिमन्यु
३१५३ भीमसेन द्वारा जरासन्ध-वध, मगध में सिंहासन पर जरासन्ध-पुत्र सहदेव का अभिषेक
३१५२ इन्द्रप्रस्थ में राजसूय-यज्ञ
३१५२-३१३९ कौरवों एवं पाण्डवों के मध्य द्यूत-क्रीड़ा,पाण्डवों को १२ वर्षों का वनवास एवं १ वर्ष का अज्ञातवास
३१३९ (मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी) भगवान् श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को भगवद्गीता का उपदेश,
३१३9-३१३८ कुरुक्षेत्र में महाभारत-युद्ध,
३१३८ (माघ शुक्ल अष्टमी) भीष्म पितामह का स्वर्गारोहण; (चैत्र शुक्ल प्रतिपदा) धर्मराज युधिष्ठिर का शासन प्रारम्भ, ‘युधिष्ठिर-संवत्’ का प्रवर्तन
३१३८-३१०२धर्मराज युधिष्ठिर का शासन
३११८ नागों की माता कद्रू द्वारा सौ वर्ष बाद जनमेजय के नाग-यज्ञ में नागों को भस्म होने का शाप,
३१०२ (माघ शुक्ल पूर्णिमा,१८ फरवरी ,शुक्रवार) भगवान् श्रीकृष्ण का स्वर्गारोहण, २८वें कलियुग का प्रारम्भ,
३१०२ द्वारका नगरी का पतन,
३१०२ पाण्डवों का परीक्षित को राजगद्दी सौंपकर हिमालय प्रस्थान,
३१०२-३०४२ परीक्षित का शासन,
३०२ वज्र यदुवंश का राजा बना,
३०७१ (भाद्रपद शुक्ल नवमी) शुकदेव मुनि ने राजा परीक्षित को भागवतमहापुराण की कथा सुनानी प्रारम्भ की,
३०४२-२९५८ जनमेजय का शासन
३०१८ (भाद्रपद कृष्ण पञ्चमी) जनमेजय का नागयज्ञ स्थगित
२९०२(आषाढ़ शुक्ल नवमी) महर्षि गोकर्ण ने धुन्धुकारी को भागवत की कथा सुनानी प्रारम्भ की
२८७२ (कार्तिक शुक्ल नवमी) सनकादि ने भागवत की कथा सुनानी प्रारम्भ की
२१४२-२०४२ जैन-वाङ्मय में वर्णित २३वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ
२१३२-१९९४ मगध में प्रद्योत- राजवंश(१३८ वर्षों में ५राजा)
२१०२ कश्यप-पुत्र कण्व मुनि का जन्म
१९९४-१६३४ मगध में शिशुनाग -राजवंश(३६० वर्षों में १० राजा)
१९००(अनु.) भूगर्भिक परिवर्तनों के कारण सरस्वती नदी राजस्थान के मरुस्थल में लुप्त
१८८७-१८०७बौद्ध-वाङ्मय में वर्णित २८वें बुद्ध सिद्धार्थ गौतम
१८६४-१७९२ जैन-वाङ्मय में वर्णित २४वें तीर्थंकर वर्द्धमान महावीर
१७४८ शिशुनाग-वंश के ८वें राजा उदीयन (उदायी, उदयाश्व) द्वारा कुसुमपुर (पाटलिपुत्र) नगर की स्थापना
१६३४-१५३४ मगध में नन्द-राजवंश (१०० वर्षों में ९ राजा)
१५३४-१२१८ मगध में मौर्य-राजवंश (३१६ वर्षों में १२ राजा)
१६३४-१५०० चन्द्रगुप्त मौर्य का शासन
१५००-१४७२ बिन्दुसार का शासन
१४७२-१४३६ अशोक का शासन
१२९४-१२३४ कनिष्क का शासन, इसी काल में आयुर्वेदाचार्य चरक हुए
१२३४-९१८ मगध में शुंग राजवंश(३०० वर्षों में १० राजा)
९१८-८३३ मगध में कण्व राजवंश (८५ वर्षों में ४ राजा)
८३३-३२७ मगध में आंध्र राजवंश (५०६ वर्षों में ३२ राजा)
५५७-४९२ कुमारिल भट्ट
५०९-४७७ आद्य जगद्गुरु शंकराचार्य
४३३-४१८ आन्ध्रवंशीय नरेश गौतमीपुत्र श्रीशातकर्णि का शासन
३२७-८२ मगध में गुप्त राजवंश ( २४५ वर्षों में ७ राजा)
३२७-३२० चन्द्रगुप्त का शासन
३२६ सिकन्दर का आक्रमण
३२०-२६९ समुद्रगुप्त का शासन
१०२ सम्राट शकारि विक्रमादित्य का जन्म
९७-८५ विक्रमादित्य की तपश्चर्या
९६ (चैत्र शुक्ल अष्टमी) महान् खगोलविद् एवं गणितज्ञ वराहमिहिर का जन्म
६२-५७ भर्तृहरि का शासन
५७ (चैत्र शुक्ल प्रतिपदा,२२ फरवरी) शकारि विक्रमादित्य द्वारा ‘विक्रम संवत्’ का प्रवर्तन
५७ ई.पू.-४३ ई. सम्राट् शकारि विक्रमादित्य का शासन
५५ हरिस्वामी द्वारा शतपथब्राह्मण पर भाष्य-रचना
३५ भर्तृहरि का स्वर्गारोहण
३४ कालिदास द्वारा ‘ज्योतिर्विदाभरण’ की रचना
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(ईसवी सन्)
४३ भरतखण्ड में १८ राज्यों की स्थापना
४३-५३ विक्रमादित्य के पुत्र देवभक्त का शासन
५४-११४ विक्रमादित्य के पौत्र शालिवाहन का शासन
७८ (चैत्र शुक्ल प्रतिपदा,३मार्च) शालिवाहन द्वारा ‘शालिवाहन-संवत्’ का प्रवर्तन
४७६-५५० आर्यभट्ट I
४९९ आर्यभट्ट I द्वारा ‘आर्यभट्टीयम्’ की रचना
५६९-६०३ उदयपुर-नरेश गुहिल
५९८-६६८ ब्रह्मगुप्त
६०६-६४७ सम्राट् हर्षवर्धन का शासन
६३८ भारतवर्ष पर प्रथम मुस्लिम-आक्रमण
७३४-७५३ उदयपुर-नरेश कालभोज (बाप्पा रावल)
७३६-७५४ इन्द्रप्रस्थ (दिल्ली) के तोमर वंश के संस्थापक राजा अनंगपाल
१११४-११८५ भास्कराचार्य II
११७९-११९२ दिल्ली के चौहानवंशीय नरेश पृथ्वीराज III चौहान
११९२ तराईन के युद्ध में मुहम्मद शहाबुद्दीन गोरी के हाथों पृथ्वीराज III चौहान की पराजय
११९२-१७५७ सम्पूर्ण भारतवर्ष पर विभिन्न मुस्लिम-राजवंशों का शासन (५६५ वर्ष)
१७५७-१९४७ ब्रिटिश शासन(१९० वर्ष)
१८५७-१८५९ महान स्वाधीनता संग्राम,
१९४७ (१४-१५ अगस्त)भारतवर्ष का विभाजन
१९४७-१९६४ अफगानी मुस्लिम मौ०नेहरू का शासन,२७/५/१९६४-०९/६/१९६४ श्री गुलजारी लाल नंदा का कार्यवाहक प्रधानमंत्री काल,
१९६४-१९६६ श्री लालबहादुर शास्त्री का प्रधानमंत्री काल,
११/१/१९६४-२५/९/१९६६ श्री गुलजारी लाल नंदा का कार्यवाहक प्रधानमंत्री काल,
१९६६-१९७७ श्रीमती इंदिरा गाँधी (मैमुना बेगम) का प्रधानमंत्री काल,
१९७७-१९७८ श्री मोरारजी देसाई का प्रधानमंत्री काल,
१९७८-१९८० चौ० चरण सिंह का प्रधानमंत्री काल,
१९८०-१९८४ इंदिरा गाँधी(मैमुना बेगम)का प्रधानमंत्री काल,
१९८४-१९८९ श्री राजीव गाँधी का प्रधानमंत्री काल,
१९८९-१९९० श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह का प्रधानमंत्री काल,
१९९०-१९९१ श्री चंद्रशेखर का प्रधानमंत्री काल,
१९९१-१९९६ श्री पी०वी०नरसिंह राव का प्रधानमंत्री काल,
१६/५/९६-०१/६/९६ श्री अटल बिहारी वाजपेयी का प्रधानमंत्री काल,
१९९६-१९९७ श्री एच०डी०देवगौड़ा का प्रधानमंत्री काल,
१९९७-१९९८ श्री इंद्र कुमार गुजराल का प्रधानमंत्री काल,
१९९८-१९९९ श्री अटल बिहारी वाजपेयी का प्रधानमंत्री काल,
१९९९-२००४ श्री अटल बिहारी वाजपेयी का प्रधानमंत्री काल,
२००४-२०१४ सरदार मनमोहन सिंह का प्रधानमंत्री काल,
२०१४-२०२१ हिंदू प्रधानमंत्री श्री दामोदरदास मोदी का शासन।

✍🏻गुँजन अग्रवाल,सम्पादक-दी कोर

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