देश के नेता बड़ी कूटनीतिक भाषा में देश विरोधी बयान दे जाते हैं और आगे निकल जाते हैं। उन्हें पकड़ने वाला कोई नहीं होता। अभी समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पश्चिमी बंगाल में टीएमसी के ‘गुंडों’ के द्वारा जिस प्रकार हिंदुओं को निशाना बना बनाकर उनके साथ अमानवीय अत्याचार किए गए हैं और जिस प्रकार सोहरावर्दी की ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ की यादों को ताजा कर दिया है ,उस पर नमक छिड़कते हुए कहा है कि पश्चिम बंगाल में चुनी हुई सरकार के साथ चुनाव में करारी हार का बदला भाजपा निचले स्तर पर जाकर ले रही है। यह संघीय ढांचे की मूल भावना की अवहेलना और लोकतंत्र के विरुद्ध भाजपा की साजिश की रणनीति है। उन्होंने कहा कि भारी बहुमत में आई ममता सरकार को परेशान किया जा रहा है। एक छोटे मुद्दे को बेवजह प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाकर भाजपा ने अपनी किरकिरी कराई है।
सोहरावर्दी को भी उस समय अखिलेश यादव की मानसिकता के उनके पूर्वजों ( जिनमें इनके ‘राष्ट्रपिता’ गांधी का नाम सर्वोपरि है ) ने ऐसा ही प्रमाण पत्र दिया था कि वहां पर कुछ भी ऐसा नहीं हुआ है जिसे ‘हिंदू विरोधी’ कहा जा सकता हो। उसका परिणाम यह हुआ कि जब पाकिस्तान बना तो आज के बंगाल का बहुत बड़ा भाग उस समय के पूर्वी पाकिस्तान अर्थात आज के बांग्लादेश में चला गया। लेकिन इन धर्मनिरपेक्ष राजनीतिज्ञों को ना तो अकल आई और न शर्म आई। इतिहास से कुछ सीखने की कोशिश ना तो कभी इन्होंने की है और ना ही करेंगे।
अखिलेश यादव बंगाल में टीएमसी के गुंडों के द्वारा वहां के हिंदू समाज के साथ किए गए अत्याचारों को ‘एक छोटी सी घटना’ कह रहे हैं। जबकि इन्ही के शासनकाल में उत्तर प्रदेश के बिसाहड़ा गांव में अखलाक के साथ हुई वास्तव में ‘छोटी सी घटना’ को इन्होंने इतना बड़ा तूल दिया था कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भी इन्होंने उसकी ओर आकर्षित करने में सफलता प्राप्त की थी। जबकि बाद की घटनाओं ने यह साबित कर दिया कि वह घटना कुछ भी नहीं थी। सच यही था कि वहां पर गाय की हत्या की गई थी। इन्हें हिंदू विरोध करते-करते राष्ट्र विरोध तक जाने में भी कोई शर्म नहीं आती। उत्तर प्रदेश में इनकी पार्टी के समर्थकों / कार्यकर्ताओं को ‘सपा के गुंडे’ के नाम से पुकारा जाता है और पश्चिम बंगाल में टीएमसी के कार्यकर्ता और समर्थकों को भी गुंडे का नाम दे दिया गया है तो कहीं ‘चोर चोर मौसेरे भाई’ वाला धर्म निभाते हुए तो अखिलेश यादव ऐसा नहीं कह रहे हैं? इन गुंडों का शिकार हिंदू हो तो इन्हें ‘एक छोटी सी घटना’ दिखाई देती है। तब ये संविधान के अनुसार देश को चलाने की बात करना भूल जाते हैं। वैसे बड़ी घटना को ‘छोटी सी घटना’ करके आंकना अखिलेश यादव को अपने पिता से विरासत में मिला है । उन्होंने भी एक बार किसी बलात्कारी के लिए कह दिया था कि ‘बच्चे हैं गलती कर ही देते हैं।’ मानो आज उसी तर्ज पर अखिलेश यादव जी कह रहे हैं कि ‘गुंडे हैं, गुंडई कर ही देते हैं।’
वैसे जिस यादव कुल में अखिलेश का जन्म हुआ है वे यादव अपने आपको कृष्ण वंशी कहते हैं और कृष्ण जी ने कभी भी गुंडों, बदमाशों या आतंकवादियों का समर्थन नहीं किया बल्कि उनके विनाश की बात कही थी। ऐसे लोगों को श्री कृष्ण जी ने ढूंढ ढूंढकर मारा और मरवाया था । उन्होंने महाभारत के युद्ध के बीच खड़े होकर यह घोषणा की थी कि यदि ऐसे लोगों के विनाश के लिए मुझे बार-बार भी जन्म लेना पड़े तो मैं लेता रहूंगा। क्या अखिलेश यादव अपने इस महान पूर्वज के इस उद्घोष को अपने नाम के पीछे यादव लगाकर आज लज्जित नहीं कर रहे हैं ? कवि ने क्या कमाल की पंक्तियां लिखी हैं :–
“फरमान कृष्ण का था अर्जुन को बीच रन में।
जिसने हिला दिया था दुनिया को एक पल में।। अफसोस क्यों नहीं है वह रूह अब वतन में ।
सैयाद जुल्म पेशा आया है जबसे हसरत ,
है बुलबुल एक कफ़स में जागे जगन चमन में।।”
सचमुच वह रूह अखिलेश यादव जैसी जमात के नेताओं के कारण ही देश से विदा हो गई है।
राम प्रसाद बिस्मिल और उनके साथियों को फांसी चढ़ाने की वकालत करने वाला वकील सेकुलर गैंग का सरताज और अखिलेश यादव के खासम खास जवाहरलाल नेहरू का साला जगत नारायण ‘मुल्ला’ था। ‘मुल्ला’ उसका उपनाम था और इसी नाम से वह विख्यात था। स्पष्ट है कि आजादी से बहुत पहले इन लोगों के सिर पर धर्मनिरपेक्षता का भूत सवार हो चुका था । उसी के चलते अखिलेश यादव के बाप ने भी अपने आपको मुल्ला मुलायम कहलवाना उचित समझा था, खैर।
उस जगत नारायण मुल्ला ने अभियुक्तों अर्थात मुल्जिमान को अदालत में पेश करने पर मुल्जिमान न कहकर मुलाजीमान ( अर्थात सरकारी नौकर ) भूलवश कह दिया। इस भूल को करते देखकर राम प्रसाद बिस्मिल को आवेश आ गया। देशभक्त और स्वाभिमानी क्रांतिकारी योद्धाओं को अपने लिए मुल्जिमान कहना तो अच्छा लगता था पर मुलाजिमान कहना अच्छा नहीं लगता था। क्योंकि वह अंग्रेजों के नौकर नहीं थे बल्कि उन को मारने वाले अभियुक्त थे । तब उन्होंने अपना आवेश मुल्ला पर झाड़ते हुए और उसे सावधान करते हुए कहा :–
मुलाजिम हमको ना कहिए बड़ा अफसोस होता है ।
कि हम यहां अदालत के अदब से तशरीफ लाए हैं।। बदल देते हैं हम मौजे हवादिस को अपनी जुर्रत से,
कि हमने आंधियों में भी चिराग अक्सर जलाए हैं।।
कृष्ण वंशी यदुवंशी अखिलेश को भी आज जी यही चाहता है कि “यादव इनको न कहिए बड़ा अफसोस होता है …. कि ये देश से हिंदुत्व को मिटाने के लिए यहां तशरीफ़ लाए हैं ?
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत
मुख्य संपादक, उगता भारत