असंतुष्ट नेताओं के कारण धरातल में जाता कांग्रेस का भविष्य
नरेंद्र नाथ
अब, जबकि देश में विपक्षी एकता को लेकर फिर से आवाज उठ रही है, इसकी धुरी बनने वाली कांग्रेस गुटबाजी के दलदल में फंसती जा रही है। राष्ट्रीय स्तर पर असंतुष्ट नेताओं की लंबी लिस्ट से पहले से ही परेशान पार्टी में अब पंजाब से लेकर कर्नाटक तक अंदरूनी लड़ाई सिर उठा रही है। इसी गुटबाजी के कारण पार्टी मध्य प्रदेश में सरकार गंवा चुकी है। राजस्थान में अशोक गहलोत की कुर्सी इसी वजह से खतरे में पड़ गई थी। राजस्थान में उपजे उस विवाद का अब तक कोई निपटारा नहीं हुआ है। पार्टी नेतृत्व सचिन पायलट को मनाने के बावजूद आगे का कोई रोडमैप नहीं बना पाया है।
पंजाब में फंसी कैप्टन की कुर्सी
पंजाब में पार्टी के अंदर एक बार फिर से गुटबाजी अपने चरम पर दिखने लगी है। हालांकि पिछले कई सालों से राज्य में यह पार्टी की नियति बनी हुई है, लेकिन अभी पार्टी के लिए चिंता इसलिए बढ़ गई कि महज सात-आठ महीने में वहां विधानसभा चुनाव होने हैं। सीएम अमरिंदर सिंह की अगुआई वाला गुट इस बार बागी नेताओं से सख्ती से निपटना चाहता है, तो उनका विरोधी गुट भी आर पार के मूड में है। बात दिल्ली में शीर्ष नेतृत्व तक आई, लेकिन इससे मामला सुलझने के बजाय उलझ ही गया। कैप्टन ने संदेश दे दिया कि वे राज्य के कैप्टन बने रहेंगे और उन्हें कोई हटा नहीं सकता है। अब वह अगले कुछ दिनों में दिल्ली आकर अपना शक्ति प्रदर्शन भी करने वाले हैं। मालूम हो कि कुछ दिन पहले कैप्टन अमरिंदर सिंह ने प्रशांत किशोर को अपना प्रमुख सलाहकार बनाने का ऐलान किया था। तब माना गया कि वह उनकी चुनावी कैंपेन संभालेंगे। 2017 चुनाव में भी प्रशांत किशोर ने ही उनकी चुनावी कैंपेन की कमान संभाली थी।
अब तक पंजाब में कांग्रेस के पक्ष में सिर्फ एक ही बात है कि विपक्ष बिखरा है। अकाली दल का बीजेपी से गठबंधन टूटने के बाद पार्टी पर गहरा असर पड़ा है। आम आदमी पार्टी का संगठन तो है और हाल के सालों में वोट बैंक भी बना है लेकिन उसके पास अभी तक कैप्टन को काउंटर करने वाला कोई कद्दावर नेता नहीं है। अकाली दल से अलग होने के बाद बीजेपी अभी राज्य में संघर्ष ही कर रही है। यही कारण है कि नवजोत सिंह सिद्धू को अपने पाले में करने के लिए आम आदमी पार्टी पिछले कई सालों से कोशिश कर रही है। पिछले चुनाव से पहले भी जब सिद्धू बीजेपी से अलग हुए थे तब आम आदमी पार्टी ने उनसे संपर्क किया था, लेकिन तब बात नहीं बन सकी थी।
इस बार भी जब वह पार्टी से नाराज हुए तो उनके अगले कदम पर सबकी नजर गई। सिद्धू गांधी परिवार के करीबी बताए जाते हैं। इस बार उन्हें भरोसा दिलाया गया कि उन्हें पार्टी में उचित जगह मिलेगी। लेकिन पार्टी सूत्रों के अनुसार इस बार गुटबाजी अलग स्तर तक चली गई है जहां दोनों पक्ष कम से कम अभी किसी तरह के समझौते के मूड में नहीं हैं। पार्टी का यह भी मानना है कि इसका कोई खास असर नहीं पड़ेगा। पिछली बार कैप्टन अमरिंदर सिंह के दबाव के बावजूद पार्टी ने उन्हें अपना सीएम उम्मीदवार घोषित नहीं किया था लेकिन चुनाव के बीच पार्टी ने उन्हें नेता के रूप में प्रॉजेक्ट कर दिया। इस टूट को रोकने के लिए इस बार नेतृत्व क्या पासा फेंकता है, वह भी अगले कुछ दिनों में पता चल जाएगा।
कर्नाटक में भी शुरू हुई रार
कर्नाटक में विवाद ऐसे समय शुरू हुआ, जब वहां येदियुरप्पा की अगुवाई वाली सत्तारूढ़ बीजेपी में भी घमासान है। सूत्रों के अनुसार पार्टी में चल रही उठापटक के बीच राज्य के पूर्व सीएम और कद्दावर नेता सिद्धारमैया पार्टी की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिलने अगले हफ्ते आ रहे हैं। इस मीटिंग में वह खुद को अगले विधानसभा चुनाव में सीएम पद के लिए उम्मीदवार घोषित करवाना चाहते हैं। इतना ही नहीं, वह राज्य में पार्टी अध्यक्ष के लिए एमबी पाटिल का नाम सुझा रहे हैं। उनका तर्क है कि अगले चुनाव में येदियुरप्पा बीजेपी का चेहरा नहीं होंगे, जो लिंगायत समुदाय के सबसे बड़े नेता माने जाते हैं। ऐसे में लिंगायत समाज के एमबी पाटिल को अगर पार्टी प्रदेश अध्यक्ष बनाती है तो यह समुदाय कांग्रेस की ओर लौट सकता है। इनका फॉर्म्युला है कि मौजूदा पार्टी अध्यक्ष डीके शिवकुमार को कोई दूसरी भूमिका दी जाए। लेकिन केंद्रीय नेतृत्व उनकी बात को मानने को तैयार नहीं है। पार्टी ने पिछले दिनों रणदीप सुरजेवाला को कर्नाटक की जिम्मेदारी दी थी। अभी तक वह इस मसले पर खुलकर स्टैंड लेने को तैयार नहीं हैं। उनका कहना है कि अभी चुनाव में देरी है, तब तक यह मामला सुलझा लिया जाएगा। कर्नाटक में विधानसभा चुनाव 2023 के फरवरी-मार्च में होना है।
मौजूदा विवाद के पीछे कर्नाटक में प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार के नेतृत्व में शुरू हुई वह कैंपेन है, जिसमें परोक्ष रूप से उन्हें सीएम उम्मीदवार के रूप में प्रॉजेक्ट किया जा रहा है। इस पर सिद्धारमैया गुट ने कड़ी आपत्ति जताई है। मामले ने इसलिए जोर पकड़ा, क्योंकि कैंपेन उसी एजेंसी के माध्यम से की जा रही है जिसने असम में कांग्रेस का चुनाव प्रचार संभाला था। ऐसे में वहां संदेश गया कि केंद्रीय नेतृत्व के इशारे पर ऐसा हो रहा है। हालांकि पार्टी सूत्रों के अनुसार अभी इस बारे में कुछ भी तय नहीं हुआ है और कैंपेन चुनाव से संबंधित नहीं है। लेकिन अब जब बात उठ ही गई है तो सिद्धारमैया गुट आर-पार के मूड में है। उसे लगता है कि अगर चीजें अभी साफ नहीं हुईं, तो अंतिम समय में इस कारण नुकसान उठाना पड़ सकता है। सिद्दारमैया मानते हैं कि अगले विधानसभा चुनाव में राज्य में कांग्रेस के लिए बेहतर मौका हो सकता है, लेकिन इन मौकों को भुनाने से पहले अपने घर को दुरुस्त करना होगा।