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कविता

नशा

 

क्या नशा करके मिलता बताओ ज़रा।
लाभ दो-चार हमको गिनाओ ज़रा।।

वंश परिवार की सारी इज्ज़त गई।
बीवी विधवा की जैसी बेइज्ज़त भई।
पूर्वजों को मिलीं गालियाँ- फब्तियाँ-
माटी में मान अब ना मिलाओ ज़रा।।

क्या नशा करके मिलता बताओ ज़रा।
लाभ दो-चार हमको गिनाओ ज़रा।।

बाप- माई की मुश्किल दवाई हुई।
बाल-बच्चों की मुश्किल पढ़ाई हुई।
दूध में कितना पानी मिलाएँ, कहो-
बाप का फ़र्ज़ थोड़ा निभाओ ज़रा।।

क्या नशा करके मिलता बताओ ज़रा।
लाभ दो-चार हमको गिनाओ ज़रा।।

खेत तालाब गैया व बछिया बिकी।
आज बीवी पे तेरी नज़र है टिकी।
अब चटौना का चम्मच हुआ लापता-
क्या से क्या हो गए हम दिखाओ ज़रा।।

क्या नशा करके मिलता बताओ ज़रा।
लाभ दो-चार हमको गिनाओ ज़रा।।

साँस की डोर तेरी सिकुड़ने लगी।
मौत आकर बगल में अकड़ने लगी।
इस नशे ने है लूटा हमारा चमन-
‘है जहर हर नशा’ ये सुनाओ ज़रा।।

क्या नशा करके मिलता बताओ ज़रा।
लाभ दो-चार हमको गिनाओ ज़रा।।

वक्त-बेवक्त तुम तो चले जाओगे।
हाथ में दे कटोरा भले जाओगे।
लोग रोटी के बदले में तन देखेंगे-
हे अवध अब तो काबू में आओ ज़रा।।

क्या नशा करके मिलता बताओ ज़रा।
लाभ दो-चार हमको गिनाओ ज़रा।।

डॉ अवधेश कुमार अवध
8787573644

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