मन के मंदिर में रोज झाड़ू लगाओ : स्वामी विवेकानंद परिव्राजक
*जैसे आपका भोजन आपको स्वयं ही खाना पड़ता है, तभी भूख मिटती और शक्ति प्राप्त होती है। इसी प्रकार से आपको अपने मन में स्वयं झाड़ू लगानी होगी, तभी उससे मन की शुद्धता और प्रसन्नता प्राप्त होगी।
कुल मिलाकर चार प्रकार का ज्ञान होता है। मिथ्या ज्ञान, संशयात्मक ज्ञान, शाब्दिक ज्ञान, और तत्त्वज्ञान।
1- मिथ्या ज्ञान उसे कहते हैं, जब वस्तु कुछ और हो और व्यक्ति उसे समझता कुछ और हो। जैसे रस्सी को सांप समझना। यह मिथ्या ज्ञान है।
2- संशयात्मक ज्ञान उसे कहते हैं, जब वस्तु समझ में ही नहीं आए। जैसे यह वस्तु रस्सी है, या सांप है, कुछ भी समझ में नहीं आ रहा। कोई निर्णय नहीं हो पा रहा। ऐसी स्थिति में जो ज्ञान होता है, उसे संशयात्मक ज्ञान कहते हैं।
3- शाब्दिक ज्ञान। जब व्यक्ति शब्दों से तो किसी वस्तु को ठीक-ठीक समझ लेता है, जान लेता है, बोल भी देता है, परंतु वैसा आचरण नहीं कर पाता। ऐसी स्थिति वाले ज्ञान को शाब्दिक ज्ञान कहते हैं। जैसे क्रोध नहीं करना चाहिए। यह बात ठीक है। व्यक्ति समझता है, बोलता भी है, परंतु फिर भी इस के अनुकूल आचरण नहीं करता। व्यवहार में फिर भी क्रोध कर ही देता है। ऐसे ज्ञान को शाब्दिक ज्ञान कहते हैं।
4- चौथा है तत्त्वज्ञान। जब शाब्दिक ज्ञान को व्यक्ति अपने आचरण में भी ठीक वैसा ही उतार लेता है, जैसा वह शब्दों से कह रहा था। तो उसके ज्ञान को तत्त्वज्ञान कहते हैं। यही वास्तविक ज्ञान है। ऐसे वास्तविक ज्ञान से ही पूर्ण लाभ होता है। जो व्यक्ति व्यवहार में क्रोध नहीं करता, उसका ज्ञान तत्त्वज्ञान है।
अब ज्ञान की इस व्यवस्था के अनुसार हमें यह भी समझना चाहिए, कि यदि घर में कूड़ा कचरा गंदगी रहेगी, तो घर दूषित रहेगा, और वहां जो भी बैठेगा, उसे सुख शांति आनंद नहीं मिलेगा। और यदि झाड़ू पोंछा लगा कर घर साफ-सुथरा होगा, तो वहां जो भी बैठेगा उसे सुख शांति आनंद मिलेगा। बैठना अच्छा लगेगा। मन प्रसन्न रहेगा।
इसी प्रकार से शाब्दिक ज्ञान तो सभी को है, कि यदि मन में क्रोध घृणा ईर्ष्या अभिमान आदि बुराइयां रहेंगी, तो मन अशुद्ध रहेगा, और उसके प्रभाव से व्यक्ति सारा दिन दुखी रहेगा। और यदि मन में प्रेम दया सरलता नम्रता आदि अच्छे गुण रहेंगे, तब मन शुद्ध रहेगा, और व्यक्ति सारा दिन प्रसन्न रह पाएगा। इसलिए अपने मन को शुद्ध करना ही बुद्धिमत्ता है। मन को कचरा पेटी न बनाएं, फूलों का गुलदस्ता बनाएं।
परंतु जब तक व्यक्ति उस शाब्दिक ज्ञान को तत्त्वज्ञान में न बदल दे, तब तक उस शाब्दिक ज्ञान से कोई विशेष लाभ नहीं होता। केवल 10 20 प्रतिशत लाभ होता है। इसलिए अपने शाब्दिक ज्ञान को वास्तविक ज्ञान में अथवा तत्त्वज्ञान में बदलने का प्रयत्न करना चाहिए।
अब रही बात, कि शाब्दिक ज्ञान को तत्त्वज्ञान में कैसे बदलें? इसका उपाय है, कि उस शाब्दिक ज्ञान को सैकड़ों बार दोहराएं। हर रोज दोहराएं। दिन में दो चार पांच दस बार दोहराएं। ऐसे धीरे-धीरे वह शाब्दिक ज्ञान तत्त्वज्ञान में बदल जाएगा।
दूसरी बात – उस शाब्दिक ज्ञान को थोड़ा-थोड़ा अपने व्यवहार में लाएं। ऐसे व्यवहार में लाते लाते, धीरे-धीरे वह शाब्दिक ज्ञान तत्त्वज्ञान में बदल जाएगा। और आपका जीवन आनन्दित हो जाएगा।
— स्वामी विवेकानंद परिव्राजक, रोजड़, गुजरात।
प्रस्तुति अरविंद राजपुरोहित