विश्व के सामने कोरोना वायरस के ‘जनक’ के नाम का खुलासा होना ही चाहिए
भारत डोगरा
कोविड–19 के शुरुआती दौर में इस पर काफी बहस हुई कि यह वायरस आया कहां से। तब कहा गया कि यह समय कोविड–19 का मिलकर सामना करने का है, दोषारोपण या विवाद का नहीं। इस वजह से यह बहस मंद पड़ गई। कुछ प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों के सामूहिक बयान भी प्रकाशित हुए थे कि किसी प्रयोगशाला में कोविड–19 वायरस तैयार करने की कोई संभावना है ही नहीं। लेकिन इसके बाद यह सामने आया है कि जिन वैज्ञानिकों ने ये बयान जारी करवाए थे, उनमें से कुछ वायरस में जेनेटिक बदलाव के अनुसंधान से जुड़े हुए थे। इसलिए विश्व स्वास्थ्य संगठन के जांच दल के चीन जाने से भी इस बहस को नया जीवन मिला। यह भी कहा गया कि यदि विवाद के मुद्दों की सही पड़ताल नहीं की गई तो आगे भी ऐसे अनुसंधान होते रहेंगे, जिनसे गंभीर खतरे पैदा हो सकते हैं। इसलिए विवाद को सुलझाना जरूरी है।
इस विवाद के मूल में इस तरह के अनुसंधान हैं, जो विभिन्न वायरस को कृत्रिम या जेनेटिक ढंग से बदल कर उनकी मनुष्य को हानि पहुंचाने की क्षमता को बढ़ाते हैं। इसे ‘गेन ऑफ फंक्शन’ अनुसंधान भी कहते हैं। यह पहली नजर में लोगों को बहुत खतरनाक लगता है। अनेक वायरस विशेषज्ञ भी ऐसा ही कहते हैं। इसके उलट इन अनुसंधानों से जुड़े वैज्ञानिक कहते हैं कि ऐसी रिसर्च से भविष्य की महामारियों और पशु से मनुष्य तक वायरस पहुंचने की आशंकाओं का पता चलता है। वैक्सीन और इलाज के बारे में भी समझ बनती है। इस बात से कई वैज्ञानिक सहमत नहीं हैं। फिर भी यह तथ्य अपनी जगह है कि इस अनुसंधान के लिए करोड़ों डॉलर के अनुदान नियमित तौर पर अनेक देशों में मिलते रहे हैं।
इस तरह यह विवाद वर्षों से चलता रहा है। वर्ष 2014 में अमेरिका की प्रयोगशालाओं में वायरस से जुड़ी तीन बड़ी दुर्घटनाओं के बाद इस विवाद ने जोर पकड़ लिया और अमेरिकी सरकार ने ऐसे ‘गेन ऑफ फंक्शन’ रिसर्च के कुछ पक्षों पर अस्थायी रोक लगा कर इसकी समीक्षा आरंभ कर दी। रोक लगाते समय कहा गया कि यदि प्रमुख अधिकारियों को जन–स्वास्थ्य या राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से कोई अनुसंधान जरूरी लगे तो इसे जारी रखा जा सकता है। इसका लाभ उठाते हुए एक ऐसे प्रॉजेक्ट को अनुदान जारी रखा गया, जो पहले से ही विवादित थे। इस प्रॉजेक्ट के अंतर्गत अनुदान अमेरिका के एलर्जी और संक्रामक रोगों के राष्ट्रीय संस्थान द्वारा न्यू यॉर्क स्थित संस्थान इकोहेल्थ को दिया जाता था और इकोहेल्थ द्वारा यह अनुदान आगे चीन में वुहान वायरोलॉजी संस्थान को। वुहान वायरोलॉजी संस्थान चीन में कोरोना वायरस अनुसंधान का सबसे बड़ा केंद्र है। यहां एक महिला वैज्ञानिक के नेतृत्व में ऐसा अनुसंधान हो रहा था, जिसमें चमगादड़ से प्राप्त कोरोना वायरसों को जेनेटिक ढंग से बदलकर उनकी मनुष्य को हानि पहुंचाने की क्षमता को बढ़ाया जा रहा था। फिर इसे मनुष्य की कोशिकाओं के आधार पर परिवर्तित चूहों पर आजमाया जा रहा था जिससे पता चले कि मनुष्य में अधिक संक्रमण करने की क्षमता वाला कोरोना वायरस कैसे ज्यादा खतरनाक बन सकता है। चूंकि इसके लिए अनुदान अमेरिका से ही मिल रहा था, इसलिए इसके अमेरिका में उपलब्ध रेकॉर्ड के आधार पर इसकी पुष्टि की जा सकती है।
जैसे ही दिसंबर 2019 में कोविड–19 फैलने की खबर आई तो चीन और अमेरिका दोनों में ऐसे वायरस अनुसंधान से जुड़े वैज्ञानिक और अधिकारी गहरी चिंता में पड़ गए कि अब दोष उन पर आ सकता है। उन सबने मिलकर, एकजुट होकर यही कहा कि वुहान वायरस अनुसंधान की प्रयोगशाला में कोई दुर्घटना नहीं हुई है। चमगादड़ के कोरोना वायरस का प्रसार वुहान के उस ‘वेट’ बाजार में हुआ है, जहां जंगली पशुओं का मीट बेचा जाता है। इस तरह कुछ समय के लिए यह विवाद थम गया।
बाद में जब कोविड–19 का कहर बहुत बढ़ गया और संदेह उत्पन्न करने वाली कई अन्य संभावनाएं नजर आईं तो नए सिरे से यह विवाद जोर पकड़ने लगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी माना कि इस विवाद के कुछ पहलुओं की अभी और जांच होनी बाकी है। सचाई को सामने लाने में एक अवरोध यह है कि गेन ऑफ फंक्शन अनुसंधान से विश्व के अनेक प्रमुख वायरस विशेषज्ञ जुड़े हैं और उन्हें लगता है कि प्रयोगशाला की दुर्घटनाओं वाला मुद्दा जोर पकड़ गया तो उनके अपने अनुदान खतरे में पड़ जाएंगे। दूसरी ओर अन्य वैज्ञानिक मानते हैं कि सचाई को सामने लाना जरूरी है नहीं तो भविष्य में ऐसी और दुर्घटनाएं हो सकती हैं। चूंकि वुहान में कोविड–19 के वायरस से बहुत मिलता–जुलता अनुसंधान हो रहा था और वहीं से कोविड–19 के संक्रमण की शुरुआत हुई, इसलिए इस संभावना को उठाना जरूरी है कि प्रयोगशाला में दुर्घटना में अति खतरनाक वायरस लीक हो गया हो। प्रयोगशालाओं से वायरस लीक होने के दर्जनों मामले पहले भी हो चुके हैं जिनकी सीमित सूची उपलब्ध है। इतना ही नहीं, उपलब्ध रेकॉर्ड यह भी बताते हैं कि वुहान की प्रयोगशाला में सब जरूरी सावधानियां नहीं अपनाई जा रही थीं।
कोविड–19 के उद्गम का सही पता लगे, इससे जुड़े सभी रेकॉर्ड उपलब्ध हों तो इसके इलाज और बचाव के बेहतर उपाय उपलब्ध होंगे और भविष्य में ऐसी महामारी की आशंका रोकने के लिए जरूरी कदम उठाने में भी मदद मिलेगी। चूंकि वुहान का विवादास्पद अनुसंधान हो तो चीन में रहा था, लेकिन अनुदान अमेरिका का था। इसलिए दोनों ही जगह से वायरस लीक थिअरी पर परदा डालने की कथित तौर पर कोशिश हो रही है। फिर भी भारत जैसे तमाम देशों में कोविड से तबाह परिवार तो यही चाहते हैं कि जो भी हो, सचाई जरूर सामने आए। विज्ञान के हित में भी सचाई का सामने आना जरूरी है।
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